काल विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- अनन्तकाल हो गया हमें कषाय मार्गणा में रहते हुए, अभी तक हम निष्कषाय नहीं हो पाये।
- यदि काल द्रव्य नहीं है तो घड़ी क्यों बाँधते हो।
- काल द्रव्य को विज्ञान ने समय के रूप में स्वीकारा है लेकिन निश्चय काल के बारे में विज्ञान मौन हो जाता है।
- कुछ लोग काल द्रव्य को नहीं मानते, लेकिन घड़ी हाथ में बाँधते हैं, यही तो काल द्रव्य को मानना हो गया।
- जीव और पुद्गल के माध्यम से काल की उत्पत्ति नहीं होती बल्कि काल की पहचान होती है।
- जो काल परिणाम, क्रिया, परत्व (निकट) अपरत्व (दूर) लक्षण वाला है, वह व्यवहार काल कहलाता है और जो वर्तना लक्षण वाला है, वह निश्चय काल कहलाता है।
- धर्म के क्षेत्र में काल पर आधारित रहकर चलना ठीक नहीं है, वरन् हम अपने आपको निर्दोषी मानने लगेंगे।
- आज दु:खमा काल में सुख नहीं मिल सकता, सुख प्राप्ति की भूमिका बन सकती है।
- अतीत के कथन करते समय वर्तमान की अनुभूति छूट जाती है।
- आस्था को मजबूत करने के लिए यह दु:खमा काल वरदान सिद्ध होता है। आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कहा करते थे कि यह कौन-सा काल है पंचमकाल, इसका नाम दु:खमा काल है तो सुख नहीं दु:ख ही मिलेगा ऐसा श्रद्धान रखो।
- जिस काल में कर्म को बीमारी आ जाती है, वह समाधिकाल, स्वकाल है, इसलिए काल को हेय कहा है।
- जीव और पुद्गल के अभाव में काल को पहचाना ही नहीं जा सकता है।
- स्थान से स्थानांतर जाने रूप क्रिया कालाणु में नहीं होती।
- कब, तब ये काल के संकेत करने वाले शब्द हैं।
- कार्य काल के द्वारा नहीं होता काल में भी नहीं होता बल्कि काल का सहयोग लेकर होता है, उसके अस्तित्व में होता है, लेकिन परिणमन कार्य में ही होता है, काल में नहीं।
- आगम ग्रन्थों में कर्म चेतना, कर्मफल चेतना और ज्ञान चेतना का वर्णन तो मिलता है, लेकिन काल चेतना का वर्णन नहीं मिलता, इससे सिद्ध होता है काल कर्ता नहीं हो सकता, वह तो मात्र परिणमन में सहयोगी होता है।
- काल द्रव्य के बिना शेष पाँच द्रव्य अस्तिकाय होते हैं।
- संसार में अशांति का कारण पर का कर्ता बनना है।
- आपकी क्रियाएँ आपकी रुचि को बता देती है।
- जितना परिग्रह कम रहेगा उतना ही कर्तृत्वपन से दूर होगा।