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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • इन्द्रिय

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    इन्द्रिय विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. व्यापार इन्द्रियाँ नहीं करती आत्मा व्यापार करती है। इन्द्रियाँ व्यावृत होती हैं, इन्द्रियों का व्यापार बुद्धिपूर्वक होता है। आँखों की पलक का झपकना, नाड़ी का फड़कना, श्वसन क्रिया, रक्त संचार का होना अबुद्धिपूर्वक है।
    2. नेत्र और कर्णन्द्रिय बहिर्मुखी होने के लिए सरल साधन है।
    3. इन्द्रियाँ नियत स्थान और नियत विषयी ही होगीं, किन्तु मन का कोई नियत स्थान और विषय नहीं।
    4. संपूर्ण शरीर में नहीं बल्कि शरीर की सतह पर स्पर्शन्द्रिय है।
    5. मन और इन्द्रिय का व्यापार आकुलता का प्रतीक है।
    6. पंचेन्द्रियों के विषयों में रस लेने वालों को स्वानुभव प्रत्यक्ष नहीं होता। स्वानुभव प्रत्यक्ष का अनुभव करने के लिए इन्द्रिय विषय कषायों से ऊपर उठना अनिवार्य है।
    7. सौधर्म इन्द्र इन्द्रिय के विषयों से ऊपर नहीं उठ पाता, इसलिए उसे जौंक की उपमा दी है। जिस प्रकार जौंक गाय के स्तन के पास रहकर भी दूध न पीकर खून ही पीती है।
    8. पंचेन्द्रिय जीवों में जो देखने में आती है वह आनपान कहलाती है। जो एकेन्द्रिय एवं त्रस विकलेन्द्रिय हैं, उनकी श्वसन क्रिया देखने में नहीं आती, वह श्वासोच्छवास कहलाती है।
    9. अपने स्वरूप को छोड़कर जब आत्मा बाहर आती है तो इन्द्रिय व्यापार होता है।
    10. पंचेन्द्रिय में विषय आकर्षण के विषय इसलिए बने हैं क्योंकि ये संसारी प्राणी के लिए स्पष्ट एवं प्रत्यक्ष हैं।
    11. संसार का पंचेन्द्रिय सुख श्वान की हड़ी चबाने जैसा ही है।
    12. पंचेन्द्रिय विषयों की ओर जो रास्ता जाता है वह बड़ा खतरनाक है। वह नरक रूपी गड्डे में गिरा देता है।
    13. इन्द्रिय सुख को सुख मानना महान् अपराध है।
    14. अंधों में भी महान् अंधा वह है जो इन्द्रिय विषयों में आसक्त रहता है।
    15. विषयाशत की इन्द्रियाँ और मन वस्तु के स्वरूप को नहीं जान पाती।
    16. इन्द्रिय के विषयों में सुख ढूंढना रेत को पेलकर तेल निकालने जैसा है। जीवन की इच्छा रखकर विष का पान करना है। ये सब मोह के कारण हुआ करते हैं।
    17. जो पंचेन्द्रियों के विषयों में लगा है, वह समझना ततूरी (गर्मी से संतप्त भूमि) में भटक रहा है, उसे कभी भी शांति नहीं मिल सकती।
    18. पंचेन्द्रियों का व्यापार आपकी मानसिकता का परिचायक है।
    19. यह जीव स्वयं इन्द्रिय और मन का दास बनकर उनकी पूर्ति करता रहता है, इसलिए दु:खी बना रहता है।
    20. आप इन्द्रियों के दास बने हुए हैं, इसलिए बरसात में आप वाटरप्रूफ पहनते हो, सर्दी में एयरटाइट पहनते हो और गर्मी में एयर कंडीशनर। इसलिए आपके जीवन में पापों का ही विकास हो रहा है। आप इन्द्रिय और मन के नौकर मत बनो, गर पाप से बचना चाहते हो तो इनको वश में करो।
    21. रूप को देखने वाली, आँखें महत्वपूर्ण नहीं हैं, बल्कि जो स्वरूप को दिखावें, वे ही आँखे महत्वपूर्ण हैं।
    22. इन्द्रिय व्यापार करने से पाप का बंध होता है।
    23. पंचेन्द्रिय में विषय हमेशा अपकारक ही होते हैं।
    24. यदि स्त्री आपका एक बार अपकार कर दे तो आप उसे छोड़ देते हो, लेकिन इन पंचेन्द्रिय के विषयों को क्यों नहीं छोड़ देते ? जबकि ये हमेशा ही अपकार करते रहते हैं।
    25. जीव के पास इन्द्रिय रूपी पाँच खिड़कियाँ हैं, जिनमें से विषय चोर आते रहते हैं और मन सिंहद्वार के समान है, विषय रूपी चोरों को रास्ता दिखाता रहता है।
    26. पंचेन्द्रिय रूपी विषयों से यदि यह वैराग्य सम्पदा लुट जाती हो तो उन्हें वश में करो, वरन् स्वयं की एवं धर्म की बदनामी होगी।
    27. पंचेन्द्रिय निग्रह किये बिना जो ध्यान करना चाहता है वह सिर से पहाड़ तोड़ना चाहता है, लेकिन पहाड़ नहीं फूटेगा, बल्कि सिर ही फूट जायेगा।
    28. साधु को, ज्ञानी को इन्द्रिय रूपी चोरों से हमेशा बचकर रहना चाहिए, क्योंकि उनके पास सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान, सम्यकचारित्र रूपी रत्न हैं।
    29. इन्द्रिय चोर चारों ओर घूम रहे हैं और मन इनका मुखिया है, जो इन्हें रास्ता बताता है।
    30. पंचेन्द्रिय सुख से आत्मा कभी तृप्त नहीं होती बल्कि संतप्त होती है।
    31. संसार में पंचेन्द्रिय और मन में विषयों के अलावा और है ही क्या ? जिसके इस काल में ये विषय और नाम की कामना छूट गई समझो वह इस काल में केवली से कम नहीं।
    32. जो पंचेन्द्रिय विषयों से ऊब जाता है, ऊपर उठ जाता है वह सम्यकद्रष्टि हो जाता है।
    33. पंचेन्द्रिय विषयों के त्याग बिना अमूर्त आत्मतत्व का ध्यान नहीं किया जा सकता।
    34. इन्द्रिय विषयों को छोड़े बिना जो व्यक्ति आत्मा के ध्यान की बात करता है, लगता है उसे वात का रोग हो गया है।
    35. इन्द्रिय सुख-भोग और मोक्ष का उपाय-योग दोनों एक साथ नहीं हो सकते।
    36. पंचेन्द्रिय विषयों से नफरत मत करो, बल्कि उनसे बचकर युक्तिपूर्वक कर्म की निर्जरा करो।
    37. इन्द्रिय सुख को तुच्छ कहा है, तुच्छ का अर्थ महत्वहीन और इसी महत्वहीन सुख के लिए संसार में घोर संघर्ष चलता रहता है क्योंकि भोग्य सामग्री सीमित है और एक-एक व्यक्ति की इच्छाएँ असीमित हैं।
    38. जो इन्द्रिय सुख में आनंद लेता है वही एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय जीवों का घात करता है और मरण कर स्वयं एकेन्द्रिय आदि पर्यायों में जन्म ले लेता है।
    39. स्पर्शन्द्रिय में हाथी, रसना इन्द्रिय में मछली, घ्राणेन्द्रिय में भौंरा और चक्षु इन्द्रिय में पतंगा एवं कर्णन्द्रिय में हरिण अपने प्राण गंवा देते हैं। जब एक-एक इन्द्रिय के विषय सुख में फँसकर ये प्राणी अपने प्राण गँवा देते हैं तो यह पंचेन्द्रियों के विषयों में जो आसक्त है उसकी क्या दशा होगी
    40. संसार में किसी भी गति में खोजो पंचेन्द्रिय के विषय वे ही मिलेंगे, क्योंकि प्रत्येक इन्द्रिय के विषय नियत हैं।
    41. पंचेन्द्रिय विषयों को बार-बार भोगा है, लेकिन फिर भी अज्ञानी को यह विश्वास नहीं होता कि मैंने इन विषयों को बार-बार भोगा है, इसलिए उन्हें छोड़ नहीं पाता। जिन्होंने इन्द्रियों को नहीं जीता उनके जप, तप निष्फल हैं।
    42. यदि इन्द्रिय और मन वश में हो गया फिर मुक्ति दूर नहीं।

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