इच्छा विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- भोगों की इच्छा रखने से आगे मिलने वाले भोग भी नहीं मिलते।
- इच्छाएँ अनंत हैं और पदार्थ सीमित हैं, अत: इच्छाएँ कभी पूर्ण नहीं हो सकती।
- तप रूपी अग्नि के माध्यम से ही इच्छाओं को जलाया जा सकता है।
- इच्छा का परिमाण ही परिग्रह का परिमाण है।
- संसारी प्राणी इच्छा का विकास तो कर सकता है लेकिन इच्छा का निरोध भव्य पुरुष ही कर सकता है।
- दृष्टि का समयक् हुए बिना इच्छाओं का निरोध नहीं हो सकता।
- जो इच्छा/चाह को छोड़ता है, उसके चरणों में दुनियाँ आना चाहती है।