हृदय विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- आँखें कान दो, दो हैं, हाथ पैर भी दो, दो हैं क्योंकि सम्बन्ध के लिए दो आवश्यक हैं। धर्म (राष्ट्र समाज) के लिए देखने सुनने से कुछ नहीं होता।
- हे प्रभु! मैं प्रार्थना करता हूँ इन दो-दो अक्षर वाले अंग वालों को तीन अक्षर वाला अंग हृदय दे दो। किसी भी चीज में आनंद मात्र सुनने देखने से नहीं आता। हृदयंगम होने पर आता है। धर्म भी जब हृदयंगम होता है तभी उन्नति का कारण बनता है। हमने आज तक हृदय से कार्य नहीं किया, यदि हृदय से कार्य किया होता तो दर-दर नहीं भटकना पडता।
- जिसका हृदय टूट जाता है वही मनमाना कार्य करने लगता है।
- हृदय के अभाव में शरीर के सभी अंग कोई महत्व नहीं रखते। शव की भाँति इस भारत का हृदय नहीं है बाकी सब ठीक है। स्मृति मनोयोग के माध्यम से बनी रहती है।
- धर्म का हृदय अच्छाईयाँ हैं, हृदय के साथ श्वांस लीजिए।
- आज देश में स्वतंत्रता का हृदय से कोई उपयोग नहीं हो रहा है, इसलिए शांति नहीं मिल रही है।
- आचरण, नकल से नहीं हृदय के साथ विश्वास के साथ किया जाता है।
- हृदय शून्य क्या नहीं कर सकता ? हृदय शून्य वही है, जिसको अहिंसा पर आस्था नहीं है। हृदय में सत्य, अहिंसा के प्रति आस्था है तो राम, महावीर भगवान से हमारा सम्बन्ध आज भी निश्चित रूप से है, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए।
- हम भगवान के सामने हाथ जोड़ते हैं अब हृदय जोड़ना चाहिए। हृदय कैसे जुड़ा है वह दिखाने से नहीं देखने से ज्ञात होता है।
- हृदय को मध्य कहा है वह दोनों छोर तक अपना सम्बन्ध रखता है।
- हृदय से सम्बन्ध होता है तो आँखों से आँसू आने लगते हैं।
- सौन्दर्य आँखों से दिखता है, पवित्रता मन से दिखती है।
- श्रुतकेवली के चरणों से साक्षात् सम्बन्ध हो जाता है तो दर्शनमोहनीय का दूरीकरण, क्षय हो जाता है। क्षायिक सम्यक दर्शन प्राप्त हो जाता है।
- आँखों में पानी तभी आता है जब हृदय में कुछ पिंच (चुभे) हो। दूसरे का पत्थर-सा हृदय पिघला देते हो और खुद का मोम का है तो भी नहीं पिघलता।
- वस्तुतत्व को हम दिमाग से सोचते तो हैं पर दिल से, हृदय से उसे स्वीकार नहीं कर पाते।
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