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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • गुरु

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    गुरु  विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. गुरु महाराज के सान्निध्य में ही जीवन का रहस्य उद्धाटित होता है।
    2. अपनी चिकित्सा करने वाले चिकित्सक गुरु ही होते हैं।
    3. अज्ञान को दूर करने वाले गुरुदेव ही हुआ करते हैं।
    4. गुरु की वाणी जीवन जीने की सामग्री है। गुरु के द्वारा दिये गये सूत्र जीवन जीने में तरीके हैं।
    5. गुरु जमाने के अनुसार नहीं बल्कि सिद्धान्तानुसार चलने को कहते हैं।
    6. एकलव्य ने मूर्ति में भी गुरु की स्थापना करके उनकी विद्या को प्राप्त कर लिया था। यह शिक्षा सभी को अनुकरणीय है।
    7. गुरु विश्व को महान् ज्योति प्रदान करते हैं।
    8. गुरुदेव डॉक्टर जैसे करुणावान होते हैं। विवेक के साथ करुणा होती है।
    9. गुरु के वचन हमारी जीवन रूपी गाड़ी की यात्रा में पेट्रोल के समान हैं।
    10. गुरु के वचन अनुभव भरे होते हैं, बोध नहीं ये शोध वाक्य हैं।
    11. सब कुछ भूल जाना लेकिन गुरु के वचन नहीं भूलना वरन् जीवन में सफलता प्राप्त नहीं हो सकती।
    12. गुरुओं का भीतरी पक्ष, निष्पक्ष हुआ करता है।
    13. गुरु का जीवन वह सांचा है जिसमें हम अपने को ढालकर उन्नत बन सकते हैं, उन जैसे बन सकते हैं।
    14. गुरु कभी किसी को वचन नहीं देते मात्र प्रवचन देते हैं।
    15. ज्ञान रूपी अंजन सलाखा से हमारी आँखें खोलने का प्रयास गुरु करते हैं। लेकिन जब हमारी आँखों में ज्योति विद्यमान हो तब यह गुरु की ज्ञान रूपी अंजन सलाखा काम करती है।
    16. गुरु के संकेत ऐसे होते हैं कि हम यदि एक ही संकेत पर अमल करें तो हमारा बेड़ा पार हो जावेगा।
    17. गुरु को खेवटिया, तारणहारा कहा है लेकिन उनके अनुसार चलने से तन्मय होने से पार हो सकते हैं।
    18. गुरु की वाणी को जीवन में नहीं उतारते तो वह वाणी कागज के फूल के समान है, जैसे कागज के फूल से नासिका तृप्त नहीं होती वैसे ही सुनने मात्र से जीवन तृप्त नहीं होता। यदि जीवन में अमल करते हैं तो जीवन फूल की तरह महक उठता है।
    19. गुरुओं के दर्शन से, उनकी कृपा से जो अनादिकाल से सम्यकदर्शन प्राप्त नहीं हुआ था, वह प्राप्त हो जाता है मोक्षमार्ग का रास्ता मिल जाता है और यात्रा प्रारम्भ हो जाती है। गुरु ऐसे मंत्र देते हैं कि जिनको अपनाने से जीवन में विकास प्रारम्भ हो जाता है। गुरुओं का लक्ष्य मात्र सम्बोधित करने का नहीं होता फिर भी सम्बोधित करते हैं यह उनकी अनुकम्पा है।
    20. ज्ञान गुरु नहीं होता, अनुभव ही गुरु होता है।
    21. भले ही ज्ञान आत्मा का स्वभाव है लेकिन गुरु के बिन ज्ञान नहीं हो सकता।
    22. गुरु की वाणी रूपी चाबी से अनंतकालीन मोह रूपी जंग लगा ताला भी खुल जाता है।
    23. गुरु की पाठशाला के बाद ही प्रयोगशाला में प्रवेश किया जाता है।
    24. शरीर और आत्मा का मेल हल्दी और चूना के मेल जैसा है। उसे गुरु की वाणी रूपी रसायन से ही पृथक् किया जा सकता है।
    25. गुरुत्वाकर्षण के अभाव में प्राणी गिर जाता है मोह माया के आकर्षण से आत्मा पतन को प्राप्त होता है।
    26. विषयों की बाढ़ में बहती जनता को ‘गुरु' ही हितोपदेश के माध्यम से बाहर निकालते रहते हैं।
    27. गुरु कहते हैं, "तेरी दो आँखें, तेरी ओर हजार सतर्क हो जा"।
    28. यदि आप गुरु के रूप में हैं तो दूसरों के दोषों को भी दूर करें।
    29. जो छोटे-छोटे दोषों को भी बढ़ा-चढ़ा कर बता देता है, वह गुरु है। सरसों को सुमेरु पर्वत के रूप में बताने वाला खल अच्छा है, दोष को ढकने वाले गुरु की अपेक्षा।
    30. गुरु की कठोर उक्तियाँ ही आपके जीवन को फूल की तरह खिला सकती हैं।
    31. सूर्य का उदय होना अनिवार्य है, वरन् अंधकार ही अंधकार होगा, इस धरा पर। वैसे ही गुरु के वचन अनिवार्य हैं, वरन् सभी जीव अंधकार में ही जीवन निकाल देंगे।
    32. शिष्य का मन फूल की बोड़ी (कलिका) के समान होता है, उन्हें गुरु रूपी सूर्य खिला देते हैं।
    33. गुरु यदि जिस समय अमृत को जहर कहते हैं तो वह जहर है और जिस समय जहर को अमृत कहते हैं तो वह अमृत है, यही श्रद्धान संसार से पार लगायेगा।
    34. एक शिष्य बहुत से गुरु न बनावे, लेकिन एक गुरु बहुत शिष्य बना सकते हैं। गुरु यदि शिष्य के अनुसार पीछे-पीछे चलने लगे तो उन्हें नहीं अपनाना, यह मेरा आदेश है।
    35. गुरुओं की आराधना करने से जगत् में सम्मान, भोग, कीर्ति प्राप्त होती है।
    36. तपस्वियों (गुरुओं) की स्तुति करने से भक्त की कीर्ति स्वर्गों तक पहुँच जाती है, देवता भी उसका गुणगान करते हैं।
    37. गुरु कहते हैं कि शरीर की दासता को छोड़कर आत्मा की सेवा करनी चाहिए।
    38. "नौका पार दे, सेतु हेतु मार्ग में गुरु साथ दे।" अर्थात् नाव एवं पुल नदी पार कराने में हेतु होते हैं, लेकिन गुरु तो मंजिल तक साथ देते हैं।
    39. हमारा हमेशा अधोपतन हुआ है, क्योंकि हम गुरु के आकर्षण को, संकेत को नहीं समझ सके।
    40. हमारे भीतर विद्यमान भगवत् सत्ता का उद्घघाटन गुरुदेव के माध्यम से ही होता है।
    41. जिनका वर्तमान उज्वल हो चुका है, उनके माध्यम से हम अपने वर्तमान को सुधार लें तो अपना भविष्य भी उज्ज्वल हो जायेगा।
    42. गुरु जो कह रहे हैं, उसे करो अपने मन से कुछ मत करो, ऐसा करने से इच्छा का निरोध अपने आप हो जावेगा।

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