भाग्य विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- पुरुषार्थ पर घमण्ड नहीं करना चाहिए, भाग्य को भी मानना चाहिए। क्योंकि पूर्वकृत् कर्म तीव्रता से उदय में आ जाते हैं तो किया हुआ पुरुषार्थ भी कार्यकारी नहीं होता।
- सम्यक्त्व और संयम के लिए जिस समय दरवाजे खुल जाते हैं, वह समय सबसे भाग्यशाली माना जाता है।
- प्रमादी का भाग्य कभी नहीं फलता।
- भाग्य भरोसे बैठने वालों को वही वस्तु मिलती है जो पुरुषार्थी लोग छोड़ जाते हैं।
- प्रबल भाग्य वाले को ही रत्नत्रय की उपलब्धि होती है।
- गुरु का समागम भाग्यशाली को ही प्राप्त होता है।
- भाग्यशाली उसे मत मानो जिसके पुण्य का उदय है, बल्कि उसे मानो जो पुण्य के कार्यों में लगा हुआ है और पाप से बचा हुआ है।
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