अविवेक विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- संसार के जो कार्य होते देखता है, यह जीव बिना परिणाम जाने उसे करने लगता है, यह एक "अविवेक" है।
- यह शरीर काराग्रह है कि कालाग्रह, काराग्रह से प्रेम करना एक "अविवेक" है।
- भगवान के सामने सांसारिक वस्तुओं की माँग करना एक अविवेक ही है।
- विवेक के अभाव में ही संसारी प्राणी पर वस्तु को अपना मान बैठता है।
- परमार्थ को छोड़कर मात्र अर्थ (धन) में ही जीवन गँवाना अविवेक माना जाता है।