अज्ञान विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- स्वर्ण कभी भी बाह्य पदार्थ के सम्पर्क में जंग नहीं खाता बल्कि लोहा ही जंग खाता है, वैसे ही ज्ञानी कभी पर पदार्थों से मोहित नहीं होता, बल्कि अज्ञानी होता है।
- विषयों में आकर्षण 'अज्ञान' का प्रतीक है।
- अज्ञान का अर्थ है - कषाय के वशीभूत हो जाना, परिग्रह के पीछे पड़ जाना।
- जब सूर्य अस्ताचल की ओर जाता है तो वह प्रकाश का त्याग कर पाताल में डूब जाता है, फिर अंधकार का साम्राज्य हो जाता है। वैसे ही जो संयम की उपेक्षा कर असंयम का स्वागत करता है, वह रसातल की ओर चला जाता है, उसका ज्ञान 'अज्ञान' रूप हो जाता है।
- विपरीत धारणा को छोड़ देने से मन हल्का हो जाता है।
- मन दूसरे को समझाना चाहता है, स्वयं को नहीं यह एक सबसे बड़ा अज्ञान है।
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