एकान्त/अनेकान्त विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- समाजवाद तो सिद्ध परमेष्ठी में है या निगोदिया जीव में है, जो एक साथ अनंत रहते हैं।
- एकान्त से ज्ञान विकल्प का कारण है, ऐसा नहीं है बल्कि संयत ज्ञान विकल्प से छूटने का कारण है। संयत ज्ञान रक्षक है, पाप कर्म के उदय में ही किसी भी जीव को पाप करने के भाव होते हैं, इसलिए एकान्त से किसी को भी पापी नहीं समझना चाहिए।
- अनेक यानि बहुत नहीं किन्तु एक नहीं है।
- एक एकान्त का निषेधक अनेकान्त है, अनेकान्त यानि बहुत नहीं, बल्कि एक नहीं ऐसा अर्थ निकालना चाहिए।
- छाछ में जो नवनीत के गोले का ऊपर का थोड़ा-सा भाग दिख रहा है, इतना ही नहीं इससे बारह आना अंदर छाछ में डूबा है यह स्वीकारना अनेकान्त है।
- कारण के सदृश ही कार्य होता है, ऐसा एकान्त नहीं है।
- संसारी प्राणी दृष्टि में अनेकान्त तो नहीं रखता लेकिन उसे अकेले में, एकान्त में चैन नहीं मिलती पर की ओर ही जाता है।
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