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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • आयतन / अनायतन

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    आयतन/अनायतन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

    1. जहाँ आकर हम शरण पाते हैं, वह आयतन है।
    2. सम्यकदर्शनादि  गुणों का घर अथवा धारण करने का जो निमित है, उसको आयतन कहते हैं।
    3. जो सम्यक्त्वादि गुणों से विपरीत मिथ्यात्व आदि दोषों में धारण करने का निमित्त है, वह अनायतन है।
    4. गलत मार्ग और गलत मार्ग को मानने वाले एवं मिथ्या मार्ग का व्याख्यान करने वाले शास्त्र और उसकी मानने वाले सेवक अनायतन कहलाते हैं।
    5. तीन मूढ़तायें अनायतन के स्रोत हैं।
    6. जो कर्म निर्जरा में सहायक नहीं है, सम्यकदर्शन रूप धर्म में कारण नहीं है, उन्हें धर्म रूप मानकर चलना या लौकिक मान्यताओं को धर्म मानकर करना मूढ़ता है।
    7. चरकादि ग्रन्थ के माध्यम से जानकारी प्राप्त कर साधुओं को औषधि दान किया और उनका रोग ठीक भी हो गया तो उस ग्रन्थ को धर्म-शास्त्र मान लेना मूढ़ता में आवेगा।
    8. जिनका आधार लेने से हमें मोक्षमार्ग में दृष्टि प्राप्त होती है, वह आयतन है।
    9. वीतराग जो बने हैं, वे निश्चय के अनायतन नहीं हो सकते, बल्कि हमारी जो आत्मा रागद्वेष मय है, वह निश्चय से अनायतन स्वरूप हो सकती है।

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