आयतन/अनायतन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- जहाँ आकर हम शरण पाते हैं, वह आयतन है।
- सम्यकदर्शनादि गुणों का घर अथवा धारण करने का जो निमित है, उसको आयतन कहते हैं।
- जो सम्यक्त्वादि गुणों से विपरीत मिथ्यात्व आदि दोषों में धारण करने का निमित्त है, वह अनायतन है।
- गलत मार्ग और गलत मार्ग को मानने वाले एवं मिथ्या मार्ग का व्याख्यान करने वाले शास्त्र और उसकी मानने वाले सेवक अनायतन कहलाते हैं।
- तीन मूढ़तायें अनायतन के स्रोत हैं।
- जो कर्म निर्जरा में सहायक नहीं है, सम्यकदर्शन रूप धर्म में कारण नहीं है, उन्हें धर्म रूप मानकर चलना या लौकिक मान्यताओं को धर्म मानकर करना मूढ़ता है।
- चरकादि ग्रन्थ के माध्यम से जानकारी प्राप्त कर साधुओं को औषधि दान किया और उनका रोग ठीक भी हो गया तो उस ग्रन्थ को धर्म-शास्त्र मान लेना मूढ़ता में आवेगा।
- जिनका आधार लेने से हमें मोक्षमार्ग में दृष्टि प्राप्त होती है, वह आयतन है।
- वीतराग जो बने हैं, वे निश्चय के अनायतन नहीं हो सकते, बल्कि हमारी जो आत्मा रागद्वेष मय है, वह निश्चय से अनायतन स्वरूप हो सकती है।