आत्महित विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- ‘"आत्महित" की तरंगें हमारे जीवन में आज तक नहीं उठीं, यदि अब उठ रहीं हों तो समझना यह एक अभूतपूर्व घटना है।
- आत्महित चाहने वाले को विषय-कषायों से हमेशा बचना चाहिए, संसार में सबसे बड़ा हित यदि कोई है तो वह है "आत्महित"।
- जो आत्महित नहीं कर सकता वह पर का हित भी नहीं कर सकता।
- परहित में लगा हुआ व्यक्ति स्वहित में लगा है ऐसा समझना चाहिए, क्योंकि परोपकार से भी स्वोपकार होता है।
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