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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • विषय कषाय

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    विषय कषाय  विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. विषय कषायों में व्यतीत किये गये क्षण अंधकार पैदा करते हैं।
    2. क्रोध का अर्थ है कि दूसरों के द्वारा किए गये अपराध की सजा स्वयं को देना।
    3. कषाय से बचना चाहते हो तो एक सूत्र है-दूसरे के बारे में मत सोचो । सहपाठी से बचो तो कषायें उद्वेलित नहीं होंगी। उन्हें ध्यान का विषय मत बनाओ, अपने बारे में चिन्तन करो। दूसरे के बारे में सोचो तो उसकी अच्छाई के बारे में सोचो।
    4. राग, द्वेष, क्रोध, कषाय अपने पर होता ही नहीं, दूसरे पर ही होता है। उसने दूसरे को नीचे नहीं दिखाया अपने धर्म को ही नीचे दिखाया है। जैसे दूसरे को गंदगी लगाओगे तो अपना हाथ तो गंदा होगा ही।
    5. कषाय के माध्यम से धर्मात्मा की अवहेलना नहीं करनी चाहिए। धर्मात्मा को मन, वचन, काय से चोट पहुँचाओगे तो धर्मको भी चोट पहुँचेगी अपना मानसिक स्तर गिर जावेगा। धर्म कहीं बाजार में नहीं मिलता धर्मात्मा में ही धर्म मिलता है। धर्म के दर्शन धर्मात्मा के बिना नहीं हो सकते। व्यक्ति का धर्म उससे भिन्न नहीं, उसी में है।
    6. राग, द्वेष उत्पन्न करने वाले कारणों की ओर वर्तमान में जाने वाले उपयोग को रोकना महान् पुरुषार्थ है।
    7. धर्मामृत पीते जाओ कषाय रूपी विष समाप्त होता चला जावेगा।
    8. कषायों का वमन करते ही मन शांत हो जाता है, हल्कापन आ जाता है।
    9. जो व्यक्ति कषाय को नियंत्रित रखता है वह साधक कहलाता है।
    10. कषाय के ऊपर कषाय करो उसके लिए कमर कसो।
    11. कषाय को पी जाना बहुत बड़ा संयम है, इससे कभी अधीर नहीं होगे। उसका परिणाम सल्लेखना के लिए अच्छा होता है।
    12. काया वृद्ध होने के बाद कषाय भी वृद्ध होना चाहिए।
    13. जो कमजोर होता है वह गुस्सा करता है जो बलजोर होता है वह गंभीर होता है।
    14. जब भी राग द्वेष होगा अध्यवसाय होगा तो पुद्गल को लेकर के होगा जीव को लेकर के नहीं।
    15. रागद्वेष और विषय कषाय ही आत्मा को बंधन में डालने वाले हैं। एक मात्र विरागता ही मुक्ति को प्रदान करने वाली है।
    16. आप लोग धन के अभाव में दरिद्रता मानते हैं पर वास्तविक दरिद्रता तो वीतरागता के अभाव में होती है। राग, द्वेष और विषय कषाय ही दरिद्रता के कारण हैं।
    17. पर से प्रीति और भीति नहीं रखना ही राग द्वेष से रहित होना है।
    18. राग की गति संसार की ओर और वैराग्य की दृष्टि मुक्ति की ओर है। मोह के प्रबल प्रभाव के कारण संसारी प्राणी मुक्त नहीं हो पा रहा।
    19. प्रभु सम बनने का एक उपाय राग द्वेष को छोड़े।
    20. हमने आज तक राग के माध्यम से विश्व को ठुकराया है लात मारी है और जो ज्ञेय पदार्थ हैं/ मिट्टी है, पुद्गल है/जड़ है/अचेतन है उसे गले लगाया है। चेतन का बहिष्कार किया है।
    21. भगवान् महावीर का उपासक वही है जो नमस्कार करता है चेतन को और बहिष्कार करता है अचेतन को ।
    22. आज एयर कंडीशन मकानों में चेतन बन्द है। अचेतन जड़ जिसके पास कोई संवेदन नहीं है उसमें चेतन बन्द है।
    23. जिसे मान कषाय पर विजय पाना आ जाता है वह निश्चय से पूज्य बन जाता है।
    24. जिसने कषायों को जीत लिया उसे ऋद्धि सिद्धि की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। नहीं तो, कितनी ही सरस्वती की आराधना करो उससे ऋद्धि सिद्ध की उपलब्धि नहीं होती।
    25. कषायों पर पूर्ण विजय प्राप्त किए बिना केवलज्ञान की उपलब्धि नहीं होती।
    26. यदि संसार की फेरी से बचना चाहते हो तो इन राग-द्वेष, मोह के संस्कारों से अपने को बचाने का प्रयास करो।
    27. आप अपने क्रोध, मान, माया, लोभ को शान्त करना चाहते हो तो उन्हें देखो, जो शान्त हैं। चूँकि प्रभु की कषायें शान्त हो चुकी हैं अत: प्रभु का स्मरण करने से आपकी कषायें अपने आप शान्त हो जायेंगी।
    28. जो क्रोधादि कषाय को पी लेगा उसकी शक्ति बढ़ जायेगी और जो कषाय करेगा उसे वह क्रोधादि कषाय पी जायेगी, उसकी शक्ति समाप्त हो जायेगी।
    29. यदि कषाय शांत हो और मन प्रसन्न हो तो विष खाने पर भी पेट में जाकर अमृत बन सकता है। और यदि कषाय काम कर रही तो अमृत भी विष का काम करता है।
    30. क्रोध कषाय रूपी बारूद को शीत करना चाहते हो तो क्षमा रूपी नीर लाओ।

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