विसंवाद विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- ऐसी साधना करने वाले विरले ही मिलते हैं जो दो शब्द सुन करके और उसके प्रतिकार के लिए कोई भी उपाय नहीं करते हैं बल्कि शांति के साथ सुनते हैं और ऐसा मानते हैं कि आज सौभाग्य का दिन है, आज दीवाली हो गई, मिठाई बंट गई।
- जिसका मन इस साधना में लगा हुआ है उसके लिए किसी भी प्रकार का प्रतिकूल वातावरण नहीं होता। वह हर परिस्थिति में शांत रहता है।
- कोई भी शब्द कानों में आने के उपरान्त उसमें लहर नहीं आना चाहिए बिना लहर आए ही वह शब्द चले जाना चाहिए। लेकिन कान में क्या ललाट पर भी झुर्रियाँ आने लग जाती हैं।
- यदि साधर्मी के साथ विसंवाद करेंगे तो अचौर्य महाव्रत के लिए पंचक आ गया। पंचक का मतलब ग्रहण लग गया और यदि साधमों के साथ विसंवाद नहीं करते हैं तो समझ लेना पंचम गति के लिए कदम उठ गया क्योंकि ये अवसर है।
- विसंवाद साधर्मी के साथ होता है, विधर्मी के साथ तो कभी विसंवाद होता ही नहीं। एक पढ़ा लिखा है और एक अनपढ़ है तो उसके साथ भी विसंवाद नहीं होता है लेकिन जब दोनों पढ़ेलिखे होते हैं तब विसंवाद होता है।
- यदि साधर्मियों के द्वारा किए गये अनादर को सहन करने की क्षमता नहीं है तो आज मोक्षमार्ग में बहुत कठिनाई है।
- विसंवाद वस्तुतः रागद्वेष के कारण हैं और रागद्वेष अज्ञान के कारण होते हैं और यही संसार के कारण हैं। ज्ञानी उससे बच जाता है।
- दूसरा यदि हमारी निंदा करता है तो समझो हमारी ख्याति, हमारा यश फैला रहा है। ऐसा न हो तो दुनिया के सामने विशेषता आती ही नहीं।
- विरोध न हो तो विकास होता नहीं।
- हमारी शक्ति विरोध करने में खर्च हो रही है, अपना समर्थन करने में नहीं।
- एक बार अगर किसी ने कुछ कह दिया तो उसको याद रखते हैं और हम बार-बार कहते हैं तो भी नहीं सुनते।
- चौबीस घंटे साधर्मी विसंवाद छोड़ो। इसको लिखो नहीं लखो।