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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • वात्सल्य

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    वात्सल्य विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. जिस व्यक्ति में साधमीं भाइयों के प्रति करुणा वात्सल्य नहीं कोई विनय नहीं, वह मात्र सम्यक दृष्टि होने का दम्भ भर सकता है, सम्यक दृष्टि नहीं बन सकता।
    2. ज्ञानधर्म के लिए है, ज्ञान के लिए धर्म नहीं धर्म आत्मा को उन्नति की ओर ले जाने वाला है, यदि वह ज्ञान दया धर्म के साथ कनेक्टेड संबंधित होकर दयामय हो जाता है तो वह ज्ञान हमारे लिए हितकारक सिद्ध होगा।
    3. दान, पूजा, स्वाध्याय, जप, तप भी वही सार्थक है, जिसमें करुणा का भाव घुला हो। वही शास्त्र और वही सिद्धान्त सच्चा है, जिसमें जीव रक्षा का उपदेश हो।
    4. जिस प्रकार बिना जड़ मूल के फल-फूल कुछ भी नहीं होते उसी प्रकार इस दया के अभाव में धर्म और धर्म के नेता हो ही नहीं सकते।
    5. दया धर्म का मूल है। मूल को भूलकर छाया की आकांक्षा बड़ी भारी भूल है।
    6. जिसका मूल मजबूत हो उसे ही फल-फूल छाया मिल सकती है।
    7. जीवों की रक्षा के लिए धर्म कहा गया है न कि परिग्रह की रक्षा को।
    8. जीव हत्या के इस अंधकार में विकास के प्रकाश की आशा व्यर्थ है।
    9. सुख-सुविधाओं के लिए चेतन धन का संहार समूची मानवता के लिए कलंक है अभिशाप है।
    10. दूध की नदिया जिस देश में बहती थी उस देश में पशुओं के खून की नदिया बह रही हैं, क्या यही विकास है |
    11. हमारा खान-पान, बोल-चाल, वस्त्र, वेश-भूषा भी शाकाहारी अहिंसक होने का परिचय देती है। तभी तो खादी की चादरें लिपटा कर गाँधी जी महात्मा कहलाने लगे।
    12. कर्म निर्जरा में यदि श्रद्धान है तो वह निर्जरा किसके माध्यम से होगी ये प्रयोग करना है।
    13. सम्यक दर्शन को पुष्ट करने के लिए हमें वात्सल्य अंग को नहीं भूलना। अपने आप को भले ही भूल जाये।
    14. हमें भूखा प्यासा नजर आ जाये बस अध्यात्म पिला दें, समय हमारा व्यर्थ नहीं जाना चाहिए।
    15. पूंजी अच्छे से लगाओ और व्यापार करो।
    16. जैसे गाय बछड़े पर स्नेह करती है इसी प्रकार साधर्मियों पर स्नेह रखना प्रवचन वत्सलत्व है।
    17. वात्सल्य एक स्वाभाविक भाव है। साधर्मी को देखकर उल्लास की बाढ़ आना ही चाहिए।
    18. प्रवचन वात्सल्य का उतना ही अधिक महत्व है जितना प्रथम दर्शन विशुद्धि भावना का है।
    19. साधर्मी में वात्सल्य रखने वाला अवश्य ही तीर्थंकर प्रकृति का बंध करेगा।
    20. साथ वालों के साथ औचित्यपूर्ण व्यवहार ही होना चाहिए, किन्तु आज देखने में आता है कि सजातीय भाइयों में प्रेम ओझल सा हो गया है।
    21. हम हाथी के साथ चल सकते हैं लेकिन साथी के साथ नहीं। दूध, पानी को मिला सकता है, विजातीय होने पर भी, पर हम तो सजातीय को भी नहीं मिला पाते।
    22. प्रवचन वत्सलत्व का अर्थ है, साधर्मियों के पति करुणाभाव।
    23. साधर्मियों से हमारी लड़ाई और विधर्मियों से प्रेम ही हमारे पतन का कारण है।
    24. चेतन की कीमत करो जड़ की ही ज्यादा कीमत मत किया करो। जड़ तो जड़ होता है, उसमें संवेदना नहीं होती उस पर कितना भी उपकार करें तो भी उसमें प्रेम वात्सल्य नहीं होता। प्रेम वात्सल्य तो जीवित प्राणी में ही होता है। वात्सल्य भाव को गौवत्स सम कहा है, गौवत्स के वात्सल्यमय दृश्य को देखकर लोग कहते हैं कि ये मांगलिक शकुन है, इसे देख लिया तो अब हमारा कार्य सानंद सम्पत्र होगा।
    25. वात्सल्य का उत्पादन करने वाली जननी गाय है।
    26. आज बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी मात्र मनुष्य को सुखी बनाने में लगे हैं, प्राणी मात्र को सुखी बनाने की दृष्टि नहीं है प्राणी मात्र के प्रति करुणा दया के भाव नहीं हैं।
    27. जहाँ पर विवेक बुद्धि सुरक्षित है वहाँ दया धर्म है।
    28. जब दया धर्म ही जीवन में नहीं तो आत्मा की बात कहाँ से आयेगी।
    29. दया धर्म ही मूल्यवान सम्पदा है, जिससे अनंतकाल की दीन दरिद्रता समाप्त हो जाती है।

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