उपवास विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- अकेले उपवास करने से ही सब कुछ नहीं होता प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रसन्नता से सब सहन करते चलो इससे साता का बंध होता है। असाता की निर्जरा होती है भले ही रोज-रोज आहार करके आयें और उपवास करने के बाद भी आर्तध्यान बना रहे तो उपवास की सार्थकता नहीं।उपवास करने के बाद आर्तध्यान न हो तो उपवास की सार्थकता है अन्यथा नहीं।
- विहार और उपवास से स्वास्थ्य संतुलित रहता है इसलिए इन दोनों का अच्छे से अभ्यास करते रहना चाहिए।
- तप कर्म निर्जरा के लिए कारणभूत है। गुस्से में उपवास आदि करना तप को शस्त्र बनाना है। इसलिए तप उपवास आदि को धोखा आदि का साधन शस्त्र मत बनाया करो।
- उपवास का अर्थ है हम आत्मा के पास रहें।
- जो जल उपवास करता है वह सल्लेखना के लिए बहुत उपयोगी है। वही सल्लेखना में सक्षम हो सकता है।
- उपवास के बाद ठण्डा रस आदि नहीं लेना चाहिए क्योंकि रस आदि लेने से किडनी पर सीधा प्रभाव पड़ता है, अनुकूल ज्यादा लेने पर प्रतिकूल हो जाता है।
- मन और इन्द्रियों को अपने पास रखना, भोग की ओर न जाने देने का नाम उपवास है।
- उपवास का अर्थ है-मन आत्मा के पास आ जाता है यानि कि मन भी आत्मा के अनुरूप कार्य करने लगता है।
- सम्यकज्ञान कितना दृढ़ है यह उपवास आदि करने से ज्ञात होता है अनुभव भी तभी आता है शरीर और आत्मा का सम्बन्ध कैसा किस रूप में है।
- उपवास करते हुए भी समता में कमी नहीं आनी चाहिए। कषाय के उपशमन के लिए ही उपवास किये जाते हैं।
- वैज्ञानिकों ने भी कहा है-उपवास के दिन शरीर में एक विशेष ग्रंथी खुलती है जिससे शरीर में से रोग निष्कासित होते हैं एवं शरीर में ताजगी आती है इसलिए पन्द्रह दिन में एक उपवास करने को कहा है।
- मदोन्मत्त हाथी को भी उपवास से वश में किया जाता है फिर मन को भी वश में करना है तो उपवास करिये ।
Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव