उपवास व्रत विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- साइंस ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि उपवास के दिन ऐसा दरवाजा खुलता है जिससे ऐसा अमृत निकलता है जो शरीर को हर तरह की ऊर्जा शक्ति देता है। उपवास नहीं बनता है तो जिन्होंने अनशन उपवास किया हो या बीमार अंतराय आदि-आदि जो हैं उनकी वैय्यावृत्ति कर लो ।
- जिस दिन से व्रत लिया उसी दिन से कषाय सल्लेखना प्रारम्भ हो जाती है।
- व्रतों की पाँच पाँच भावनाओं को भाने से व्रतों की वैराग्य की सुरक्षा है, जो भावना हमें अच्छी लगनी चाहिए वही खराब लग रही है इसका मतलब क्या? वैराग्य की कमी से ये सब हो रहा है।
- जिस प्रकार सोने का मूल्य देश विदेश सब जगह है हर जगह सोना बिक सकता है उसी प्रकार अणुव्रत रूपी निधियाँ होने से सुरलोक अवश्य प्राप्त होगा।
- अणुव्रतों का क्षेत्र बहुत विस्तृत है महाव्रतों को तो मनुष्य ही धारण कर सकता है लेकिन अणुव्रतों को तो तिर्यच भी धारण कर सकता है।
- अणुव्रत भी आजीवन ही होता है भले ही चौदस मात्र का त्याग करें लेकिन जीवन पर्यंत चौदस को हिंसा का त्याग होगा।
- भीतर के भावों की अभिव्यक्ति के लिए बोलना होता है।
- ज्यादा नहीं बोलना सम्यक्त्ता का प्रतीक माना जाता है।
- अणु का अर्थ पाँचों ही व्रत होना अनिवार्य हैं ऐसा नहीं। मूल अहिंसा को बताने के लिए ही प्रसिद्धि (चांडाल) का उदाहरण दिया है।
- देशव्रती के एक के प्रति लगाव हो सकता है लेकिन हम महाव्रती है तो किसी एक तरफ नहीं होना चाहिए सबके होकर रहना चाहिए और सबके हित की बात को सोचना चाहिए।
- चिंतन, लेखन, मनन अब बहुत हो गया अब कुछ साधना की बात कर लेना चाहिए। जो शक्ति यह संसारी प्राणी अन्य स्थानों पर लगा देता है वो शक्ति यदि संकल्प में लगा देता है तो उसका फल वह सही पा जाता है।
- संकल्प शक्ति आहार से नहीं बढ़ती है वो तो प्रयोग के माध्यम से बढ़ती है।
- आज संकल्प शक्ति का प्रयोग नहीं होने से चिंतन का विषय नहीं बन पा रहा है, चिन्तन का विषय बन जाता है।