उपकार विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- गुरु दिशाबोध देकर शिष्य पर उपकार करते हैं, लेकिन शिष्य गुरु आज्ञा का पालन करके गुरु पर उपकार करते हैं।
- जो कम से कम अपनी गलती बता देता है, उसका बहुत महान् उपकार मानना चाहिए। जो बड़े हैं और यदि अपनी गलती बता देते हैं तो उन्हें अपना मित्र मानना चाहिए नहीं तो कैसे दोष निकलेंगे?
- अपने द्वारा किसी को तकलीफ न हो ये सबसे बड़ा उपकार है। उपकार की परिभाषा हमको सिखाना नहीं।
- जैसा हमारे बड़े कह गये हैं वैसा ही करना, वैसा ही चलना यह हमारा उन बड़ों के प्रति उपकार है।
- अपनी आत्मा, अपने लिए, अपने द्वारा, अपने का उपकार करती है यह निश्चय उपकार है।
- अध्यात्म और आचारपरक महान् ग्रन्थों को लिखकर आचार्यों ने हमारे ऊपर महान् उपकार किया है। कल्याण करने के लिए दिशा-बोध दिये गये हैं, बड़े-बड़े शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद भी अनुभूति के नाम पर हम कुछ नहीं कर पाये।
- भगवान ने हमें मार्ग बताया यह उनका उपकार है और भगवान ने जो मार्ग बताया उस मार्ग पर निर्दोष रीति से चलना भगवान् के ऊपर हमारा उपकार है।
- गुरु की आज्ञा का पालन करना गुरु के ऊपर उपकार है।
- परोपकार से बढ़कर भी यदि कोई चीज है तो वह है ‘स्व' के ऊपर उपकार करना।
- दु:खी व्यक्ति को सुखी बनाना ही उपकार है। चाहे वह ‘स्व' हो या पर।
- किसी के साथ रागद्वेष, मोह नहीं करना। केवल यदि करना है तो उपकार के भाव करना। वह भी मेहरबानी नहीं कर्तव्य समझ के करना।
- जिसके ऊपर उपकार किया जा रहा है उसको दीन-हीन बनाने के लिए उपकार नहीं करना और स्वयं भी अभिमान नहीं करना।
- उपकार करना कर्तव्य है कर लिया। नहीं करते तो अपने में रहो, इसमें कोई बाधा नहीं लेकिन रागद्वेष नहीं करो।
- भगवान का उपकार भी उसी को प्राप्त हो सकता है जो अपना उपकार करने में स्वयं तत्पर और तल्लीन है।