तपस्वी/साधु विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- तपस्वियों को प्रणाम करने से उच्च गोत्र का बंध होता है, साधु बनने योग्य संस्कारित परिवार में उत्पन्न होता है।
- तपस्वियों मुनिराजों की पूजा करने वालों को हर जगह सम्मान प्राप्त होता है।
- तपस्वियों की स्तुति करने से भक्त की कीर्ति स्वर्गों तक पहुँच जाती है। देवता भी उसके गुणगान करते हैं।
- तपस्वियों की दृष्टि में हमेशा आत्मतत्व रहता है।
- जिसे यहाँ अर्थात् मुनि अवस्था में बेचैनी हो गई तो हम उन्हें चैन कहीं से लाकर के नहीं दे सकते हैं।
- साधु माने सजनता का व्यवहार करने वाला, भलाई करने वाला, साधुवाद का प्रणेता।
- कल्याण मार्ग पर आना, साधुमार्ग पर आना है। जो साधु के चरणों में आ जाता है, उसे कुछ शेष नहीं रह जाता है।
- साधु 'सा' माने छह 'धु' माने धोता। छह कर्मों को धोकर साधना में लगने वाला साधु है।
- साधु-सन्तों से जन-जन का जब तक सम्पर्क नहीं होता, उनके आसपास के मार्ग से जब तक साधुओं का विहार नहीं होता तो जनता को भी संस्कारित होने का अवसर नहीं मिलता।
- श्रमणों के पास आने के लिए श्रम तो करना पड़ता है किन्तु भ्रम दूर हो जाता है।
- गुरुओं से कुछ नहीं मिलता ऐसा नहीं है बल्कि उनसे जो मिलता है वह दुनिया में कहीं नहीं मिलता।
- अपनी इन्द्रियों पर जो लगाम लगाकर ज्ञान, ध्यान और तप में व्यस्त रहता है वह तपस्वी माना जाता है।
- अपने सिर दर्द को गौण कर अन्य की पीड़ा दूर करने वाला त्यागी कहा जाता है।
- वही शिष्य गुरु बनता है जो गुरु की एक-एक बात को जीवन में उतार लेता है। ऐसा ही शिष्य गुरु के गौरव की वस्तु बनता है।
- कैसा भी कर्म का उदय आ जाये अब अनुकूल हो या प्रतिकूल परन्तु विश्वास तो यह है कि अब नियम से कूल किनारा मिलेगा। इसी को कहते हैं श्रामण्य।
- श्रमणता पाने के उपरांत किसी भी प्रकार की कमी अनुभूत नहीं होना चाहिए।
- वैराग्य में कमी आ जाये तो अनित्य भावना का स्मरण कर लीजिए अपने आप ही शांति हो जायेगी।
- गुरु महाराज हमें वह रास्ता दिखाते हैं जो भव-भव में काम आता है।
- वैराग्य जो धारण करता है उसके लिए परिणमन के माध्यम से और द्रव्य की वस्तुस्थिति देखने से भी घबराहट नहीं होती है। ये ही उसका स्वरूप है।
- गर्म जल भी आग को बुझा देता है क्योंकि आग बुझाना उसका गुण धर्म है ऐसे ही संत से किया गया अनुराग भी पाप कर्मों का नाश करता है।
- जैसे आप लोग एयरकंडीशन में से बाहर नहीं आना चाहते वैसे ही मुनि अपने अभेद स्नत्रयरूपी एयरकंडीशन से बाहर नहीं आना चाहते।
- आप लोग कहते हो साधुओं की चर्या कितनी कठिन है और हम सोचते हैं कि आप लोग कैसे कठिन पेपर को हल करते होंगे।
- हमारे पास २२ परीषह हैं। तो आप लोगों के पास २२०० से भी अधिक परीषह हैं। आप लोगों से हम प्रशिक्षण लेना चाहते हैं।
- गुरु और प्रभु के सामने माँग नहीं होती बिना माँगे ही सब कुछ मिलता है।
- गुरु कृपा से बाँस में से भी श्वाँस निकलती है तो सुरीली बाँसुरी बनती है।
- गुरु वचन पालन करने के लिए हैं। सुनने के लिए मात्र नहीं हैं। संकेत की ओर जाना चाहिए यही गुरुओं के वचनों की सार्थकता है।
- गुरु की कुशलता इतनी है कि शब्द के अर्थ की ओर दृष्टि चली जाये तो वह हमेशा-हमेशा के लिए छप जायेगा।
- गुरु कभी भी डॉटे तो बुरा नहीं मानना, क्योंकि अपने को ही डाँटा जाता है, पराये को नहीं।
- सब लोगों के सामने एक को इसलिए डॉटा जाता है ताकि आगे सभी अपनी गलतियों को सुधार लें।
- शिष्य और शीशी को डॉट अवश्य लगाओ। उपयोग करो, अच्छी तरह और साधन को सुरक्षित रखो, ताकि जीवनपर्यत के बाद भी वह काम करता रहे।
- मोक्षमार्ग सम्बन्धी डॉट मुक्ति जब तक नहीं मिलेगी तब तक काम करती रहेगी।
- हम आलस्य करते हैं तो गुरु कान पकड़कर प्रेरित करते हैं। गुरु से ही प्रेरणारूप निमित्त कारण उत्पन्न होता है बाकी सब उदासीन आश्रम में रहते हैं।