तप त्याग विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- गर्भ और जन्म कल्याणक में देवों के द्वारा होने वाली रत्नों की वर्षा से आपके घर की दरिद्रता भले ही मिट जाती है लेकिन मोक्षमार्ग में दरिद्रता तभी मिटेगी जब हम त्याग और तप की ओर बढ़ेंगे, वीतराग होंगे।
- त्याग के पहले जागृति पर अपेक्षणीय है, निजी संपत्ति की पहचान जब हो जाती है तब विषय सामग्री निरर्थक लगती है और इसका त्याग सहज सरलता से हो जाता है।
- तप दोषों की निवृत्ति के लिए परम रसायन है। मिट्टी भी तप कर ही पूज्य बनती है, अग्नि की तपन को पास करके ही वह पात्र के रूप में उपयोगी बन जाती है।
- सामान्य रूप से त्याग की आवश्यता हर क्षेत्र में है। रोग की निवृति के लिए, स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए, जीवन जीने के लिए और इतना ही नहीं मरण के लिए भी त्याग की आवश्यता है।
- त्याग तपस्या के बिना ना तो आज तक समाज का उद्धार हुआ है, न आगे होगा।
- तप उसी का होता है जिसने व्रत ले रखे हैं, जो अव्रती है आचारसंहिता का पालन नहीं करता, उसका स्वाध्याय, स्वाध्याय नहीं है और निर्जरा का कारण भी नहीं है।
- मुझे आप लोगों के निर्वाह के बारे में चिंता नहीं, निर्माण के बारे में चिंता है। आपका निर्माण धन के द्वारा नहीं होने वाला है, धन के त्याग में ही आपका निर्माण होने वाला है और आप मानते हैं कि हमारे जीवन का उद्धार धन के राग से होगा। ये गलत धारणा है।
- किसी भी आम के पेड़ ने स्वयं आज तक आम नहीं खाये। यदि कोई व्यक्ति उसके सारे आम तोड़ लेता है तो भी ठीक, क्योंकि उसने त्याग करना ही अपना धर्म बना लिया है। इन पेड़ पौधों से तुम त्याग करना सीखो।
- त्याग के बिना तपस्या का कोई मार्ग नहीं माना जाता और त्याग के बिना तपस्या नहीं की जाती है, तो मार्ग अधूरा रहता है।
- जो लोभ कर्म हमारे आत्म प्रदेशों पर मजबूती से चिपक गया है, जिससे हमारी स्वर्ग और मोक्ष की गति रुक गयी है, उस लोभ-कर्म को तोड़ने का काम यही त्याग धर्म करता है।