शासन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- जिसे जिनशासन के प्रति गौरव-आस्था नहीं, उसके पास चारित्र नहीं।
- जैनशासन में सागर और अनगार दो पन्थ है। अविरत सम्यक दृष्टि का कोई पन्थ नहीं होता वह तो मात्र उन दोनों पन्थों का उपासक हुआ करता है।
- अपनी मान प्रतिष्ठा के लिए आज ऐसे-ऐसे घृणित कार्य किये जा रहे हैं, जिनसे कि जिनशासन और देश को अपार क्षति हो रही है।
- प्रजा पर शासन चलाना मामूली चीज है, पर अपने ऊपर शासन चलाना टेढ़ी खीर है।
- संसारी जीव प्राय: करके हुकुम (शासन) की ओर बहुत जल्दी दौड़ जाता है, वह समझने लगता है कि मैं सबसे ऊपर हूँ, पर उससे ऊपर आकाश भी तो है।
- हमें जिनशासन मिला है यह बहुत महत्वपूर्ण है। हमें उसका सदुपयोग करना चाहिए, इसका दुरुपयोग मत करो।
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