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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • शांति/संतोष

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    शांति/संतोष विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. जिस घर में शांति होती है वहाँ भगवान् रहते हैं।
    2. शांति के लिए अंदरूनी परिवर्तन चाहिए बाहरी नहीं।
    3. लालची पूरी दुनिया पाने पर भी भूखा रहता है। मगर संतोषी एक रोटी से ही पेट भर लेता है।
    4. संतोषी व्यक्ति पुष्ट हो जाता है थोड़े से भी भोजन से किन्तु जिह्वा असंतोषी है।
    5. पेट कहता है इण्ड (समाप्त) लेकिन जिह्वा कहे एण्ड (और), और अधिक कौर/ग्रास खाया तो परिणाम भयंकर।
    6. पेट भरते हैं जीवन चलाने के लिए ओर पेटी भरते हैं जीवन चढ़ाने के लिए।
    7. पेट आधा घंटे में भर जाता है और पेटी जीवन भर में नहीं भरेगी।
    8. आज जितने सुविधा के साधन जुटाये जा रहे हैं, उतना ही व्यक्ति में तृष्णा और असन्तोष बढ़ रहा है।
    9. सहजता की ओर आ जाओ तो शांति मिलती है विभाव की ओर जाओ तो शांति चली जाती है। 
    10. अनन्त की परिभाषा यही है कि सब कुछ दे दे तो भी संतुष्ट न हो।
    11. सर्प के विष से तो एक बार ही मरना हो सकता है पर तृष्णारूपी विष प्याली के द्वारा अनंतबार,अनंतभव, अनंतमृत्यु होती है। आत्मा के अनंत स्वभाव का इससे अंत हो जाता है।
    12. संतोष के बिना मनुष्य जीवन मिलता नहीं और संतोष के बिना मनुष्य जीवन में सफलता भी नहीं मिलती है। संतोष वहाँ जहाँ प्रेम है और जहाँ प्रेम नहीं वहाँ तो फिर प्रेत है।
    13. अपने जीवन में अनेकान्त को उतारें। नहीं तो अपने पास शान्ति नहीं, क्लान्ति रहेगी, समता का अभाव रहेगा।
    14. अपने जीवन में वह क्रांति लाओ जो क्लांति को मिटा दे और शांति को प्राप्त करा दे।
    15. जो दूसरे के अवगुण देखता है और दूसरे को सुखी देखकर ईर्ष्या करता है वह कभी तृप्ति सुख और शांति का अनुभव नहीं कर सकता।
    16. आत्म सन्तुष्टि यदि नहीं है तो फलश्रुति भी मैं नहीं मानता हूँ। किसान सबसे ज्यादा संतोषी होता है। वह अपनी फसल के ऊपर खेत में ताला नहीं लगाता, पशु पक्षी भी इसका आनंद लेते हैं।

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