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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • संयम

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    संयम विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार.

     

    1. जैसे सड़क पर चलने वाले हर यात्री की सड़क के नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है उसी प्रकार मोक्षमार्ग में चलने वाले के लिए नियम-संयम का पालन अनिवार्य है।
    2. संयम के द्वारा प्रतिक्षण असंख्यातगुणी कर्म निर्जरा होती रहती है।
    3. जिसने संयम की ओर कदम बढ़ाये उसके लिए बिना माँगे ऐसा अपूर्व पुण्य का संचय होने लगता है जो असंयमी के लिए कभी संभव नहीं।
    4. संयम वह है जिसके द्वारा अनंतकाल से बंधे संस्कार भी समाप्त हो जाते हैं।
    5. संयमी व्यक्ति ही कर्म के उदय रूपी थपेड़े झेल पाता है।
    6. जिसके भीतर संयम के प्रति रुचि है वह तो संयमी के दर्शन मात्र से ही अपने कल्याण के पथ को अंगीकार कर लेता है।
    7. संयम ऐसा होना चाहिए जो जीवन में सुगंधी पैदा कर दे।
    8. संयम के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में आदि से लेकर अन्त तक पुष्पवृष्टि के द्वारा अभिषिक्त होता रहता है।
    9. संयमी व्यक्ति के जीवन में कभी विषाद या विकलांगता या दीनता- हीनता नहीं आती। वह तो राजाओं से बढ़कर अर्थात् महाराजा बनकर निश्चिंतता को पा लेता है।
    10. संयमी व्यक्ति हमेशा खुश रहता है ध्यान रखना सुख नहीं रहता खुश रहता है।
    11. संयमी का चंचल खुश रहते है जीवन भर खुश रहता है। सभी खुद महकता है और उस खुशहाली का कारण उत्तम संयम ही है।
    12. जीवन में संयम के साथ सुगंध तभी आती है जब हम संयम को प्रदर्शित नहीं करते बल्कि अंतरंग में प्रकाशित करते हैं। संयम वह है जिसके द्वारा जीवन स्वतंत्र और स्वावलंबी हो जाता है।
    13. संयम दर्शन की वस्तु है उसे प्रदर्शन की वस्तु नहीं बनाना।
    14. संयोग-वियोग में जो समता परिणाम बनाये रखता है तथा अनुकूलता और प्रतिकूलता में हर्ष-विषाद नहीं करता ऐसा संयमी व्यक्ति ही सच्चा स्वाध्याय करने वाला होता है।
    15. संयम के मार्ग पर चले तो स्वर्ग चरणों में होगा।
    16. समय का सदुपयोग करना संयमी का विशेष गुण है।
    17. संयम पूर्वक प्रत्येक घडी असंख्यात गुणी निर्जरा करते हुए समय का सदुपयोग करना ही कल्याणकारी है और इसी में मनुष्य जीवन की सार्थकता है।
    18. हमें संयम की भूमिका नहीं भूलना चाहिए। करोड़ जिह्वा की कथा से व्यथा का अंत नहीं होता किन्तु संयम वैराग्य की एक कथा से सारसमझ में आ जाता है असार संसार की वास्तविकता प्रकट हो जाती है।
    19. आपको यदि अपना सर्वागीण विकास करना है तो बगैर प्रतीक्षा किये एक के बाद एक कदम संयम के साथ आगे बढ़ी।
    20. असंयमी से कभी भी संयमी को शिक्षा लेने की भावना भी नहीं करना चाहिए।
    21. जिन्होंने अपने जीवन में संयम की कोई गंध भी नहीं सुंघी और वहाँ पर आप संयम लेकर के जाओ और कुछ सीखो पढ़ो तो क्या होगा उसका? उसको अभिमान होगा।
    22. आप असंयमी को तो नमोऽस्तु करोगे नहीं विनय करेंगे नहीं तो काय की शिक्षा लेना?लेकिन आज विनय के बिना जो शिक्षा ली जा रही है उसी के परिणाम सामने आ रहे हैं।
    23. स्पर्धा भी यदि करना है तो संयम की करो, ये सबसे उत्तम विवेक का काम है। तत्वज्ञान का लाभ है।
    24. जो निराकुल अवस्था को प्राप्त करना चाहता है, वह संयम अवश्य ही हाथ में लेता है संयम साधन है निराकुल अवस्था को प्राप्त करने के लिए।
    25. इस हाथ आप संयम धारण करो और उस हाथ सुख प्राप्त करो ऐसा है संयम। संयम सुख का झरना है।
    26. याद रखें, यदि कोई चुल्लू के बराबर संयम से डर रहा है तो इसका मतलब है उसने अभी सागर पिया ही नहीं है।
    27. संयम के आते ही निर्जरा चालू हो जाती है।
    28. जैसे सड़क पर चलने वाले हर यात्री को सड़क के नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है उसी प्रकार मोक्षमार्ग में चलने वाले के लिए नियम-संयम का पालन अनिवार्य होता है।
    29. संयमी का पूरा जीवन ही उपदेशमय हो जाता है।
    30. जैसे गाड़ी सीखने के उपरान्त भी संयम और सावधानी की बड़ी आवश्यकता है, ऐसे ही सम्यक दर्शन और सम्यक ज्ञान हो जानने के उपरान्त भी संयम की बड़ी आवश्यकता है।
    31. आत्मा का विकास संयम के बिना संभव नहीं है।
    32. संयम वह सहारा है जिससे आत्मा उर्ध्वगामी होती है। पुष्ट और सन्तुष्ट होती है।
    33. संयम को ग्रहण कर लेने वाले की दृष्टि में इन्द्रिय के विषय हेय मालूम पड़ने लगते हैं।
    34. सम्यक दृष्टि  संयम को सहज स्वीकार करता है। इसलिए वह सब कुछ छोड़कर भी आनन्दित होता है।
    35. हमेशा संयम का ध्यान रखना। असंयमी के बीच बैठकर भी असंयम का व्यवहार नहीं करना।
    36. संयम से व्यक्ति का स्वयं बचाव होता है और दूसरे का बचाव भी हो जाता है।
    37. जिसकी संयम में रुचि गहरी है वह स्वप्न में भी अपने को संयमी ही देखता है। संयम के माध्यम से ही आत्मानुभूति होती है।
    38. संयम के माध्यम से ही हमारी यात्रा मंजिल की ओर प्रारम्भ होती है और मंजिल तक पहुँचाती हैं।
    39. यात्रा पद तो संयम का ही है। देशसंयम और सकल संयम ही पथ बनाते हैं क्योंकि चलने वाले से ही पथ का निर्माण होता है बैठा हुआ व्यक्ति पथ का निर्माण नहीं कर सकता।
    40. असंयम के संस्कार अनादि काल से है तभी तो आज तक आप कभी भी भूल के भी स्वप्न में दीक्षित नहीं हुए होंगे। कभी मुनि महाराज बनने का स्वप्न नहीं देखा होगा। हाँ महाराजों की आहार देने का स्वप्न अवश्य देखा होगा।
    41. जिसका मन अभी दिन में भी भगवान् की पूजा, भक्ति और संयम की ओर नहीं लगता वह रात्रि में स्वप्न में भगवान् की पूजा करते हुए या संयम पूर्वक आचरण करते हुए स्वयं को कैसे देख पायेगा?
    42. बंधुओ अगर अपना आत्म कल्याण करना हो तो संयम कदम-कदम पर अपेक्षित है।
    43. संयम का एक अर्थ इन्द्रिय और मन पर लगाम लगाना भी है। और असंयम का अर्थ बेलगाम होना है।
    44. बिन ब्रेक की गाड़ी और बिना लगाम का घोड़ा जैसे अपनी मंजिल पर नहीं पहुँचता उसी प्रकार असंयम के साथ जीवन बिताने वाले की मंजिल नहीं मिलती।
    45. संयमरूपी तटों के माध्यम से हम अपने जीवन की धारा को मंजिल तक ले जाने में सक्षम होते हैं।
    46. कर्म के वेग और बोझ को सहने की क्षमता असंयमी के पास नहीं है वह तो जब चाहे तब जैसे कर्म का उदय आया वैसा कर लेता है।
    47. जो मन पर लगाम लगाने का आत्म पुरुषार्थ करता है वही संयमी हो पाता है और वही कर्म के उदय को, उसके आवेग को झेल पाता है।
    48. आप अपने जीवन को ऊपर उठाना चाहते हो तो संयम की छाँव में आओ। उसी की सेवा करो उसी को जीवन में आधार बनाओ बाकी कषाय को बाहर निकालने की कोशिश करो।
    49. धर्म का अंकुश कषाय पर रखा जा सकता है संयम के माध्यम से।
    50. ज्ञेय पर कंट्रोल की आवश्यकता नहीं है, पर ज्ञाता पर कंट्रोल की जरूरत है। ज्ञान पर कंट्रोल टेढ़ी खीर है।
    51. संयम का अर्थ है प्राण और इन्द्रियों को कंट्रोल में रखना।
    52. दया का मतलब प्राणी संयम और दमन का मतलब इन्द्रिय संयम है।
    53. बाहर की ओर जो शक्ति जा रही है, उसको रोकना संयम है।
    54. द्रव्येन्द्रिय पर तो अज्ञानी भी कंट्रोल कर लेता है, पर भावेन्द्रिय पर कंट्रोल करने वाला ज्ञानी ही होता है।
    55. द्रव्य संयम दूसरों पर कंट्रोल और भाव संयम स्वयं पर कंट्रोल है। द्रव्य संयम में मान रहता है, भाव संयम में मान नहीं रहता।
    56. द्रव्य संयम एक प्रकार से ऊपर का फोटो है और भाव संयम अन्दर का एक्सरा है। वह अन्दर की कमी बताता है।
    57. संयम लब्धि स्थान में मरण नहीं है संयमासंयम में भी मरण नहीं है संयम की यह विशेषता है।
    58. जिस समय मरण होता है उस समय संयम नहीं होता।
    59. भावों में संयम रखने से पाप को पुण्य रूप हम परिवर्तित कर सकते हैं।
    60. कर्म के उदय को भूलोगे तो असंयम में आ जाओगे।
    61. यदि किसी को बोध की बात आप करना चाहते हैं तो संयम के बिना यह संभव नहीं, अनुकंपा/वात्सल्य के बिना ये संभव नहीं, उसके पास जो व्यक्तित्व है उसको पहचाने बिना संभव नहीं।
    62. सम्यक दर्शन को सुचारु रखने संयम का आधार श्रेष्ठ है।
    63. अनंत सुख को प्राप्त करने संयम को हम जीवन बना सकते हैं।
    64. कर्म ही एक मात्र तंत्र हो ऐसा नहीं है भावों के माध्यम से संयम के साथ हम उसे परिवर्तित कर सकते हैं।
    65. संयम की ओर आकृष्ट होंगे तो श्रुतज्ञान अद्भुत-अद्भुत होगा।
    66. संयमी एक दूसरे के पूरक बनकर आगे बढ़ते जायेंगे तो किसी को कोई सुरक्षा की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
    67. असंयमी को भी संयम की ओर बढ़ने का उपदेश दिया जाता है किन्तु संयमी के साथ असंयमी भी साथ रहने लगे तो गड़बड़।
    68. संयम का अर्थ ही है आपकी परीक्षा।
    69. संयमासंयम आते ही यशस्कीर्ति प्रकृति का बंध शुरू हो जाता है यशकीर्ति तो हो पर यशस्कीर्ति में मन न हो तभी तुम्हारी परीक्षा है। वीतरागता क्या है यह तभी परीक्षा हो जायेगी।
    70. वीतरागता और समता में भी अंतर है तीनलोक की संपदा होने पर भी अपना पराया न मानकर वस्तु स्थिति मात्र है वही समता है वीतरागी।
    71. औदारिक शरीर के आधार से संयम पलता है यदि उसी को ही परिमाण नहीं देंगे तो संयम कैसे पलेगा? यह शरीर संयम का साधन है तो इस शरीर में काम के सर्प कीड़े आदि रहते हैं। यदि काम रूपी सर्प बलिष्ठ होता है तो वो निश्चित रूप से काटता है।
    72. शरीर का इतना ही साथ देना चाहिए जो हमारे अंदर बैठे काम रूपी सर्प आदि हमें काट नहीं सकें उनसे बचने के लिए हमें वैसा आहार करना चाहिए।
    73. गुरुओं से पूछे बिना जो अपने मन से काम करता है, असंयमियों से सलाह लेता है तो असंयम के भाव उत्पन्न होने लगते हैं।
    74. हमने संयम से वैराग्य चाहा भोग मिले, ये तो संयम की सजा हो गई। ऐसा नहीं समझना चाहिए किन्तु वहाँ पर भी चैत्य वंदना क्षेत्रों में तीर्थ वंदना नन्दीश्वर, पंचमेरु आदि की वंदना का सहज सुलभ योग बनता है उसमें झुकाव ज्यादा रहता है पूर्व संयमी का, भोगों की अपेक्षा।
    75. इन्द्रिय विषयों की उपेक्षा बिना उपेक्षा संयम नहीं आ सकता।
    76. पंचेन्द्रिय विषय विष हैं इसलिए संयम की ओर कदम जाना महत्वपूर्ण है।
    77. संयमी को असंयमी से कुछ चाह नहीं रखना चाहिए। असंयमी से चाह रखने पर संयम का महत्व कम होता है।
    78. संयम की विराधना न करते हुए चलते हैं वे अतिथि हैं।
    79. संयम में बंधे रहो यही कल्याण का रास्ता है। बाकी बंधन संसार के ही कारण हैं।
    80. शील संयम के साथ ज्ञान का कोई विरोध नहीं है बल्कि मैत्री है, क्योंकि शील के बिना पंचेन्द्रिय के विषय ज्ञान को नष्ट कर देंगे। ज्ञान की रक्षा ज्ञान के द्वारा नहीं होती बल्कि शील संयम के द्वारा होती है।
    81. जिनके पास शील है वह सुशील माना जाता है उसका ही मनुष्य जीवन सार्थक माना जाता है।
    82. हमें अपने संयम के द्वारा कर्मों की बाढ़ को संयमित करना है।
    83. ज्ञाता दृष्टा बनना ही सबसे बड़ा संयम है।
    84. संयम से साधना में सफलता मिलती है।
    85. जहाँ संयम नहीं वहाँ अशांति है।
    86. बगैर संयम का जीवन कागज के फूल की तरह जिसमें सुगंध नहीं होती।
    87. संयम मनुष्य जीवन को संतुलित बनाता है।
    88. जिसके द्वारा समाज का पतन हो रहा है, जिसके द्वारा शिक्षण का पतन हो रहा है, जिसके द्वारा भविष्य बिगड़ता जा रहा है, जिसके द्वारा साहित्य दीमक खाने लगा है जिन्हें पढ़ने वाला कोई नहीं ऐसा साहित्य सामने आ रहा है ऐसी चर्चा आती जा रही है कि इस स्थिति में हम संयम की बात नहीं करेंगे तो जीवन समाज का उत्थान कैसे होगा?
    89. दुनियादारी की बात सारे के सारे सुना रहे रेडियो, टी.वी., टेप रिकार्डर आ गये सब आया लेकिन सब कुछ असंयम के लिए संयम का कोई आविष्कार हो तो बता दीजिये।
    90. मुक्ति का पथ संयम की आराधना से पूर्णता को प्राप्त होता है।
    91. आत्मबोध के होने पर संयम बोझ नहीं हो सकता। जो संयम को बोझ मानते है उन्होंने आत्मा के वैभव को सही-सही नहीं समझा।
    92. संयमरूपी बन्धन कोई बन्धन नहीं होता वरन सांसारिक गति विधियों से मुक्त होने के लिए यह एक अनिवार्य साधन होता है। आपके विचारों की एवं आचरण की गाड़ी संयमरूपी पटरी पर ही चलना चाहिए। यदि गाड़ी नियम/संयम रूपी पटरी से नीचे उतर गई तो फिर आप चला नहीं सकेंगे।
    93. गृहस्थ को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि वह पटरी पर है या नहीं। अन्यथा बहुत सारे एक्सीडेंट होने की संभावनायें रहती हैं। अत: संयमरूपी पटरी पर सावधानी से चलें।
    94. पटरी से अर्थात् संयम एवं समय के बंधन से नीचे मत उतरिये।
    95. संयम ही मनुष्य जीवन की निकटवर्ती पर्याय है।
    96. जीवन का प्रारम्भ मनुष्य पर्याय में संयम अंगीकार करने पर ही होता है।
    97. संयम का पालन अहिंसा धर्म के लिए होता है।
    98. मनुष्य होकर संयम से डरना पागलपन है।
    99. सीता का नियम था कि मैं राम के अलावा किसी पर पुरुष से सम्बन्ध नहीं रखेंगी और रावण का नियम था कि स्त्री की इच्छा के बिना मैं उसे हाथ नहीं लगाऊँगा इस संयम के कारण दोनों बच गये।
    100. यथोचित संयम धारण करके ही जीवन का निर्वाह करना चाहिए, इस बात को ध्यान से सुनना, इसे रंग पंचमी के रंग के समान यूँ ही नहीं उड़ा देना।
    101. रावण ने असंयम को नहीं छोड़ा इसलिए परिवार को ही नहीं सभी के जीवन के लिए कंटकाकीर्ण बन गया। असंयम भाव कषाय के बिना नहीं हो सकता।
    102. संयम कदम के समान है। जैसे कदम के सहारे बिना, न चल सकते है, न बैठ सकते है और न खड़े हो सकते हैं, वैसे ही बिना संयम के जीवन चल नहीं सकता।

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