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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • संकल्प-विकल्प

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    संकल्प-विकल्प विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार.

     

    1. यदि संकल्प-विकल्प को तोड़ने का आपने संकल्प नहीं लिया तो आपको श्रुतज्ञान व संकल्प-विकल्प तोड़ देंगे......तुड़वाओ......तुड़वाना है तो। अपने ही हाथों अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना.......मुहावरा बोलते हैं ना आप लोग।
    2. इस संकल्प व विकल्प को जिसने इष्ट व अनिष्ट की कल्पना के लिए कारण माना उसको वह छोड़ देगा।
    3. दुनिया की ओर मत देखो संकल्प व विकल्प के स्रोत को देखो।
    4. संकल्प-विकल्प का स्रोत श्रुतज्ञान है।
    5. मन विकल्प का शस्त्र है।
    6. अपनी नींव ये डालों की हमें संकल्प विकल्प ज्यादा करना नहीं है। नहीं करना है तो.....होंगे नहीं....नहीं समझे.... |
    7. नींव अच्छी होनी चाहिए कच्ची नहीं। बार-बार उसको खोले ना.....उसकी रिपेरिंग नहीं होती है। दीवाल की तो रिपेरिंग हो सकती है नींव की आज तक रिपेरिंग किसी ने नहीं करवाई।
    8. आज संकल्प विकल्प के कारण विज्ञान घाटे में है। आज आठ वर्ष के बालक की दौड़-धूप ज्यादा है उसके मस्तिष्क में क्या-क्या भरा है? पता नहीं, हम नहीं कह सकते।
    9. पहले के लोग संतोषी होते थे इसका अर्थ यह है कि-हमें ज्यादा संकल्प और विकल्प नहीं करना चाहिए।
    10. पहले के लोग घाटे में नहीं, घाटे में आज का युग है। चाहे पढ़ा-लिखा हो.कुछ भी हो।
    11. आज जो संकल्प विकल्प होते हैं वो पहले नहीं होते थे। आज चाहे ७-८ वर्ष का बच्चा हो. वो भी इतने ही संकल्प विकल्प करता है, जितने कि ८० साल का बुड़ा भी नहीं करता।
    12. विषय व कषायों की अपेक्षा से आज का लड़का भले आठ वर्ष का हो वह बड़े-बड़े कार्य कर देगा, हैरान कर देगा घर में और ८० साल के दादाजी संतोष के साथ बैठ करके वह आराम के साथ घर चला रहे हैं। उनको विकल्प है ही नहीं।
    13. संकल्प और विकल्पों को तोड़ने का जो संकल्प नहीं कर रहा है पुरुषार्थ नहीं कर रहा है वो बावला है। वो परीक्षा में तीन काल में नम्बर सही नहीं पा सकेगा।
    14. कुछ लोगों को निर्विकल्प रहना बीमारी सी लगती है इसलिए वे हमेशा किसी न किसी विकल्प में पड़े रहते हैं।
    15. संसार में यदि सबसे बड़ा कार्य है तो वह संकल्प-विकल्प नहीं करना।
    16. संकल्प-विकल्प से प्रशम भाव नहीं रहता विषम भाव बन जाता है।
    17. संकल्प-विकल्परूपी अग्नि ईधन के अभाव में समाप्त हो जाती है फिर चित्त शांत हो जाता है। पर संपर्क रूपी ईधन से बचो।
    18. योगीगण संकल्प-विकल्प से दूर होने के लिए वन का आश्रय ले लेते हैं।
    19. पुराण ग्रन्थों में पढ़ा है जो कोई भी विद्या सिद्ध करते हैं वे जंगल में ही करते हैं। मन की एकाग्रता के लिए एकांत आवश्यक है। संकल्प लेकर बैठ जाओ एकांत वहीं है।
    20. संकल्प-विकल्प ही संसाररूपी जंगल में पटक देते हैं।
    21. मन में ही विकल्पों का ताँता उत्पन्न होता हैं।
    22. आगे कौन क्या साथ देगा यह सोचने वालों आप घबराओ नहीं, आप घबराते क्यों हो? आपके साथ आपका संकल्प तो रहेगा। संकल्प के अलावा संसार में कोई साथ नहीं है।
    23. परिचय विकल्पों का घर है।
    24. उपयोग की खुराक मात्र संवेदन है, बुद्धि की खुराक विकल्प है।
    25. जो स्वागत के साथ विदाई की बात जानता है वह न स्वागत गान से हर्षित/प्रभावित होता है और न ही मृत्यु गीत से उदास/दुखित होता है।
    26. आकुलता नहीं करना यही मोक्षमार्ग है।
    27. जिसके पास वैराग्य की कमी है उसे आकुलता सताती है।
    28. आप यदि सुख चाहते हैं, कर्मों को काटना चाहते हैं से सर्वप्रथम संकल्प-विकल्प छोड़ दो क्योंकि अन्य कोई संसार में भटकाने वाला नहीं है।
    29. संकल्प विकल्प संसार वृद्धि के लिए कल्पवृक्ष हैं, कामधेनु हैं। जैसे कल्पना करने से वस्तु की प्राप्ति कल्पवृक्ष से हो जाती है, इसी प्रकार संकल्प-विकल्प करोगे तो निश्चितरूप से संसार का ही विकास होगा।
    30. आप लोगों का संसार से मुक्त होने का संकल्प है संसार से मुक्त होना चाहते हो तो संकल्प व विकल्प कम कर दो पहले पूर्ण समाप्त तो नहीं कर पाओगे।
    31. संकल्प विकल्प को कम करते जाना यही एक मात्र आत्मिक साधना मानी जाती है।
    32. संकल्प रखो विकल्प आये तो चाटा मारो ।
    33. संकल्प की दुकान पर विकल्प नहीं आना चाहिए या तो संकल्प की दुकान खोलो या विकल्प  की खोलो ।
    34. संकल्प एक ही है उपसर्ग अलग-अलग है।
    35. संकल्प सम्यक दर्शन का प्रतीक है। विकल्प मिथ्यादर्शन का प्रतीक है।
    36. क्षायिक सम्यक दृष्टि भी भूल जाता है क्योंकि उसने संकल्प किया नहीं।
    37. कोई भी दुकान हो माल एक ही रखना ट्रेडमार्क एक नम्बर का दो नम्बर का नहीं।
    38. ग्रहण करना और छोड़ना विकल्प का कारण है।
    39. संकल्प के लिए जागृति की आवश्यकता होती है तथा दिशा के चयन की।
    40. दुनिया में विकल्प नहीं है, विकल्पों के माध्यम से दुनिया होती है, जब विकल्प हमारे नहीं हो सकते तो हम विकल्प के कैसे हो सकते हैं ये ही अध्यात्म है। हम इस विकल्प में ही पड़कर अपना सारा समय खराब करते रहते हैं।

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