संग्रहित धन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार.
- संग्रह धन का हो या किसी अन्य चीज का वह किसी काम का नहीं होता।
- जिस प्रकार नदियाँ लगातार प्रवाहित होकर अपने जल से जीव जन्तुओं की प्यास बुझाती हैं, उसी प्रकार समुद्र, झील या स्थिर जल पीने योग्य नहीं होता। इसी प्रकार धन का संग्रह भी खारा होकर किसी योग्य नहीं रहता।
- धन का प्रवाह होना चाहिए। इसे परहित, धर्म, स्वास्थ्य, शिक्षा परदान करना चाहिए। जिससे धन मीठा रहे और बढ़े।
- आज प्रचलन में जो धन तेरस है वो वास्तव में ध्यान तेरस है उसी को आज धन तेरस कहते हैं क्योंकि तेरस के दिन महावीर भगवान् ने योग निरोध किया था इसलिए ये ध्यान तेरस है।
- संग्रह वृत्ति पालकों में होती है, बालकों में नहीं।