साधना विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- हमेशा अपने मन, वचन, काय तीनों योगों की चंचलता या प्रवृत्तियों से विराम लेकर बारबार अपने उपयोग को विश्राम में रखने का ध्येय होना चाहिए। यह बहुत बड़ी साधना है।
- पुण्य के फल मीठे हों, फिर भी वियोग बुद्धि हो, इसी का नाम साधना है।
- शरीर को सिर पर मत बैठाओ, उसको नीचे अपने अण्डर में रखने का संस्कार डालना चाहिए अन्यथा ये कभी अपनी साधना सहयोगी नहीं बन सकता। बिल्कुल जैसा आदेश दें वैसा ही ये करे ऐसी साधना हो। तीन घंटे सामयिक में बैठने को कह दो तो चुपचाप ये बैठ जाये।इतना सीधा इसे बनाना चाहिए कि वो अपने पर हावी न हो जाये।
- कष्ट सहन करना चाहिए उस समय सही कर्मों की निर्जरा होती है। प्रतिकूलता में यदि न डिगे तो यह सबसे बड़ी साधना होती है, प्रतिकूलता में सहन करना चाहिए।
- मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना से किसी को तकलीफ न हो ये ही साधना है।
- अपनी मानसिकता संभालना चाहिए यही साधना है।
- रत्नत्रय ही जीवन है, इसी की साधना करना है इसी की चर्चा करना है और कुछ नहीं करना।
- पूजा-प्रशंसा के शब्द सुनकर भी यदि जीवन में मान नहीं आता तो समझना बहुत बड़ी साधना है। मान को काठिन्य बोलते हैं मृदु का उल्टा। प्रशंसा सुनकर मान नहीं आना यह मानसिक साधना है, यह प्रौढ़ होती जाती है तो शारीरिक साधना अपने आप प्रौढ़ होती चली जाती है।
- जैस-मानसिक साधना प्रधानमंत्री है और शारीरिक साधना कलेक्टर जैसी है। प्रधानमंत्री आ गया तो वे सब भी आ ही जायेंगे।
- बुद्धि पूर्वक गलत नहीं सोचना, अशुभता की ओर जाने वाले मन को रोकना एक बहुत बड़ी साधना है। खाली बैठना बहुत कठिन है।
- हमें ज्ञेय परायण नहीं ज्ञान परायण बनना है। ज्ञान परायण यानि ज्ञायक संवेदन की ओर जाना यही साधना का फल है।
- शरीर से अन्य काम तो लेना पर वासना को भूल जाना महान् साधना है।
- साधना करने से ही शास्त्रों में वर्णित बातें समझ में आयेंगी मात्र पढ़ने से नहीं।
- मन को गुलाम बनाना सबसे बड़ी साधना है।
- साधना में देखा-देखी मत करो देखकर करो।
- बाधाओं को सहन करने वाला निरंतर साधना करने वाला व्यक्ति ही अन्त में सफल होता है।
- कषायों को जीतना वस्तुत: साधना का एक मात्र फल है।
- जिस प्रकार युवावस्था की कमाई को मनुष्य वृद्धावस्था में आराम से भोगता है। उसी प्रकार युवावस्था की धर्म-साधना का उपयोग वृद्धावस्था में किया जाता है।
- छत्र-छाया उन्हीं को मिलती जिन्होंने संयम के माध्यम से साधना की।
- काया की कंचन बनाने का एकमात्र साधन साधना है।
- जिस तरह दुकान चलाने के लिए धन-दौलत, नौकर-चाकर आदि आवश्यक है इसी प्रकार वीतरागता अर्जित हेतु कुछ साधना की आवश्यकता होती है।
- अनंत काल से प्रभु भीतर सोया है उसे साधना के बल पर एक बार जगा लें तो इस देह के बंधन से हम मुक्त हो सकते हैं।
- छोटी-छोटी बात का संकल्प लेकर भी हम अपने जीवन में साधना कर सकते हैं और आत्मा को पवित्र बना सकते हैं।
- साधर्मियों के वचनों को सुनने की साधना करना चाहिए।
- तेल डालना अलग और ग्रीस चिपकाना अलग होता है, गाड़ी को अधिक परिश्रम नहीं हो ऐसी गति से चलाना चाहिए सतत निरंतर। हमेशा-हमेशा सफलता का मुख देखती रहती हमारी साधना। यदि इस प्रकार अपनी गाड़ी को चलाते हैं।
- सफलता का कारण निरंतर साधना और परिश्रम है।
- भागदौड़ी छोड़कर एक गति पर आओ। हाइट जब रुक जाती है तो गति अच्छी आती है अर्थात् बल और आस्था बढ़ती जाती है।
- स्वार्थ को छोड़े बिना परमार्थ की साधना संभव हो नहीं सकती।
- जो शरीर को साधना का साधन बना देते हैं वे शरीर को सजा देते हैं, और जो शरीर को वासना का गुलाम बना देते हैं वे शरीर को सजाते हैं। अत: शरीर को साधना का साधन समझो वासना का नहीं।
- साध्य की प्राप्ति के लिए साधना आवश्यक है।
- जिन्होंने साधना में अपना चित्त लगाया है, उन्हें बाहरी साधन विचलित नहीं कर सकते हैं।