लक्ष्य विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- वे व्यक्ति ही अपने लक्ष्य को पा सकते हैं जो अपने लक्ष्य प्राप्ति के साधनों के अलावा अन्य किन्हीं पदार्थों से न चिपके हों।
- निर्वाण का लक्ष्य रखकर ही हमारी दृष्टि प्रत्येक कार्य को करने में हो ताकि हमें एक दिन लक्ष्य प्राप्त हो।
- मंजिल पर पहुँचने के लिए उपयुक्त स्थान का टिकट लेना ही पर्याप्त नहीं है वरन् उपयुक्त गाड़ी में बैठना भी आवश्यक है।
- जो क्रियाएँ मंजिल की तरफ नहीं ले जाती वह भटकन की कारक है।
- जब तक रोग का निदान नहीं होगा, तब तक रोगी का रोग दूर नहीं होगा। उसी प्रकार हमें भी लक्ष्य को पहले देखना होगा।
- रोग का निदान न होने पर जीरा की जगह हीरा भी खिला दे तो भी उसका प्रयोजन सिद्ध नहीं होता।
- हमें लक्ष्य कमल के फूल के समान कीचड़ से अलग होने का बनाना है।
- लक्ष्य अर्थ संग्रह का नहीं पर गुणों के संग्रह का हो।
- सच्चा साधक वह है जो प्रत्येक श्वांस में लक्ष्य को सामने रखता है और लक्ष्य के विपरीत बाधक कारणों से अपने को बचाकर गंतव्य की ओर निरंतर गतिशील रहता है।
- यदि हम अपने लक्ष्य को याद रखें तो हमको समय की ओर देखने की आवश्यकता नहीं पड़ सकती, क्योंकि लक्ष्य स्वयं एक समय है।
- लक्ष्य को देखो समय को नहीं।
- हमारा जीवन लक्ष्य को निर्धारित करने पर पवित्र बन सकता है समय को नहीं।
- जो किसी कार्य में अत्यधिक डूबा हो उसे लोग पागल कहते हैं। यहाँ पागल का मतलब है मुक्ति। इसलिए दुनिया में जब तक अपने लक्ष्य के लिए पागल नहीं बनोगे उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता।