गुरु विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- हमें गुरु बनना है, अपने आपको गुरु समझना नहीं है।
- गुरु प्रत्यक्ष में हो या न हो पर गुरु के प्रति विनय होनी चाहिए।
- गुरु के प्रति आत्म समर्पण करने पर ही (विद्या) फल की प्राप्ति होगी।
- जब भोगों का अन्त होता है, तभी योग के चिह्न प्रादुभूत होते हैं।
- वीतरागी मुनि जहाँ भी जाते हैं, तो समझ लो उस जगह के जीवों का उद्धार होने वाला है। महाराज के द्वारा परमार्थ की कमाई होगी, अर्थ की कमाई नहीं।
- जिस प्रकार दीपक, रात भर अंधकार से जूझता रहता है इसी प्रकार पंचमकाल के अंतिम समय तक सम्यग्दृष्टि से लेकर भावलिंगी सप्तम गुणस्थानवर्ती मुनि महाराज भी संवर तत्व के माध्यम से लड़ते रहेंगे।
- मैं अर्थात् अहंकार को मिटाने का यदि कोई सीधा उपाय है तो गुरु के चरण-शरण।
- आज कोई भी पिता अपने लड़के के लिए कुछ दे देता है तो बदले में कुछ चाहता भी लेकिन गुरु की गरिमा देखो कि तीन लोक की निधि दे दी और बदले में किसी चीज की आकांक्षा नहीं है।
- जैसे वर्षा होने से कठोर भूमि भी द्रवीभूत हो जाती है उसी प्रकार गुरु की कृपा होते ही भीतरी सारी की सारी कठोरता समाप्त हो जाती है और नम्रता आ जाती है।
- गुरुदेव की कृपा से अनंतकालीन विषाक्तता निकलती चली जाती है। हम स्वस्थ हो जाते हैं। आत्मस्थ हो जाते हैं, यही गुरु की महिमा है।
- मरुभूमि को हरा-भरा बनाने के समान जीवन को भी हरा-भरा बनाने का श्रेय गुरुदेव को है।
- गुरु उसी को बोलते हैं जो कठोर को भी नम्र बना दे।
- गुरु का हाथ और साथ जब तक नहीं मिलता तब तक कोई ऊपर नहीं उठ सकता।
- युगों-युगों से पतित प्राणी के लिए यदि दिशाबोध और सहारा मिलता है तो वह गुरु के माध्यम से ही मिलता है।
- गुरु हमारे जीवन का सृष्टा होता है, गुरु हमारे जीवन का प्रकाश होता है, गुरु की प्राप्ति से हमारी अपूर्णता पूर्ण हो जाती है। अत: गुरु की प्राप्ति ही गुरुपूर्णिमा है।
- गुरु वही होता है जो सबका होता है।
- गुरु कृपा से सब कुछ मिलता है अत: गुरु सेवा, गुरु आज्ञा कभी नहीं भूलना।