गाय विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- मनुष्य हमेशा से पशुओं का पालन करता आया है लेकिन यह बात ध्यान रखना कि पशुओं के माध्यम से मनुष्य की अपनी आजीविका चलती है। आप उन्हें पाल नहीं रहे बल्कि उनके माध्यम से आपका जीवन पल रहा है।
- वैश्य वही है जो कृषक होता है। कृषक जो खेती के माध्यम से गौ का पालन करता है। उससे वणिक्रवृत्ति अर्थात् व्यापार लेन-देन करता है।
- आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज कहते थे-उसका भाग्य खुल गया जिसके यहाँ प्रात:काल ऑगन में गाय रंभाती है।
- पहले के लोग गर्व का अनुभव करते थे क्यों? क्योंकि गौ रव अर्थात् गायों की रंभाने की आवाज तथा बैलों की रव यानि आवाज/ध्वनि को सुनते थे अत: गौरव गौरव का अनुभव करते थे पूर्व के लोग।
- रंभा और श्री है यह गाय। श्री यानि लक्ष्मी, सरस्वती की माँग नहीं करते वह तो रहेगी ही।
- हम जब छोटे थे आचार्यश्री जी तो चौखट पर शुभ-लाभ लिखा मिलता था। इसका क्या अर्थ हैं? तो शुभ अर्थात् बुद्धि अच्छी हो तो लाभ यानि लक्ष्मी भी अच्छी होगी।
- दया धर्म का पालन करोगे तो सरस्वती और लक्ष्मी दोनों को प्राप्त करोगे।
- गाय-बछड़ा जहाँ पलते हैं वहीं बुद्धि अच्छी मिलती है।
- वत्स से वात्सल्य शब्द की उत्पत्ति हुई है।
- किसी मनुष्य के समान वात्सल्य की बात नहीं कही गौ वत्स सम कहा है।
- वह गौ अपनी जीभ के द्वारा वत्स को चाटती है तो वह निरोग और निर्भीक हो जाता है। उसका मन और तन उसके द्वारा पलते हैं, आपके द्वारा नहीं पलते हैं।
- आज अल्कोहल का ही उपयोग औषध बनाने में ज्यादा होता है जबकि औषध की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए दूसरे प्रयोग भी हो सकते हैं।
- अहिंसा धर्म की सुरक्षा, रक्षा के लिए ही भारतीय चिकित्सा में गौ-मूत्र का महत्व है। विदेशों में भी गौमूत्र का उपयोग हो रहा है।