एकता विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- केवल एक के नहीं, एक-दूसरे के पूरक होने पर ही संघ चलेगा।
- एकता से घनिष्ठता रखना किसी एक से नहीं।
- संघ में सर्वप्रथम एकता होनी चाहिए। एकता हो गई तो विनय वात्सल्य भाव अपने आप आता है। एकता के अभाव में अहंकार पनपता है। एकता के अभाव में एक की तरफ झुकाव होता है।
- सभी को एकता के साथ रहना चाहिए। एकता से बड़े-बड़े काम हो जाते हैं।
- एकता हो तो बिगड़ा हुआ काम भी बन जाता है और यदि एकता न हो तो बनता काम भी बिगड़ जाता है। इसी का नाम शक्ति है। एकध्वनि होना चाहिए, एक स्वर होना चाहिए।
- यदि हजार लोग भी हों और एक ध्वनि हो तो लाखों लोग सुनकर प्रभावित हो जाते हैं।
- एकता से वात्सल्य आ ही जाता है। एकता ही सबसे बड़ा नियम है।
- संकीर्णता को मिटाकर एकता, वात्सल्य को अपनाना चाहिए।
- बंधी मुट्ठी में रहस्य होता है। जिस समाज में सभी लोग संगठित होकर रहते हैं वह प्रशंसनीय समाज होती है। संगठन के बिना समाज का क्या अस्तित्व? अत: सभी लोग संगठित होकर कार्य करें और अपनी समाज की शोभा बढ़ायें।
- सामूहिक कार्य की सफलता के लिए सामूहिक सद्भावनाओं की आवश्यकता होती है।
- बँद-बूंद के मिलने से सागर बनता है। जल बिन्दुओं के समूह का नाम सागर होता है। सागर बाद में बूंद पहले है।
- अकेले शून्य का महत्व नहीं होता संख्या का होना आवश्यक है।
- अहिंसा को हम संख्या के रूप में रखें तो आगे कार्य सानंद सम्पन्न होते चले जायेंगे।
- हमारे पास विचारों में एकता और विशाल दृष्टिकोण हो तो आज भी वह राम राज्य आ सकता है।
- सामूहिक कार्यक्रम के कारण सभी की सावधानी सजगता बनी रहती है वह आगे बढ़ने से रुक नहीं सकता।
- समूह में रहते हुए एक दूसरे के पूरक बने रहते हैं।
- समूह में व्रतों के प्रति आनंद आता है। एक-दूसरे के पूरक बनते हैं। मैं किसी का कर्ता नहीं हूँ वस्तु का ही परिणमन देखने में आता है।
- एक कार्य यदि एक हजार व्यक्ति मिलकर करते हैं तो कितना अनुपात बढ़ गया।