धर्मध्यान विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- धर्म ध्यान बहुत दुर्लभ है। स्वाश्रित है तो भी निमित्त दृष्टि होने से ये दुर्लभ होता जा रहा है। उपादान की ओर दृष्टि रखें। कर्मोदय की ओर दृष्टि रखें तो धर्मध्यान सहज सुलभ हो जायेगा।
- ज्यादा नाता रिश्ता हो जाये तो धर्मध्यान नहीं हो पायेगा। नाते रिश्ते से बच कर रहो धर्मध्यान करना है तो।
- दूसरों के निमित से आर्त्तध्यान नहीं करना चाहिए। आर्त्तध्यान रौद्रध्यान से बचने का पुरुषार्थ ही धर्मध्यान है। आर्त्तरौद्र ध्यान के साधनों से बचने का प्रयास करना चाहिए।
- धर्म ध्यान खेल नहीं लेकिन ज्ञानी के लिए यह बांये हाथ का खेल है।
- जो जो धर्मध्यान कर रहा है वह हमारा सहयोगी बन रहा है, हमारे शासन का सहयोगी बन रहा है। जो कोई भी धर्मध्यान करता है उससे मैं बहुत प्रसन्न रहता हूँ। उसी से प्रभावना होती है। उसी से संघ में समाज में खुशबू फेलने की भाँति वातावरण अच्छा बनता है।
- हम धर्मध्यान दूसरे के लिए नहीं कर रहे हैं अपने लिए कर रहे है चाहे रोग सहन करें, चाहे अन्य कोई कार्य करें इसमें दूसरों की कोई कमी मत देखो।
- हओ हाँ कहना सीखो इसी में धर्मध्यान है, इसी में कल्याण है अन्यथा किसी का धर्मध्यान नहीं हो सकेगा।
- जितना बड़ों को निर्विकल्प रखोगे उतना धर्म ध्यान होगा। गिरता हुआ है यह काल उसी में कुछ करना है। किसी भी बात को पहले बड़ों से कह दो एकदम निर्णय करना अच्छा नहीं है। बड़ों को विचार करके कहना पड़ता है।
- निष्प्रयोजन कोई भी चीज अपने पास नहीं रखना ये रौद्रध्यान के आइटम है उनका संरक्षण करना करवाना। ये सब रौद्रध्यान का विषय है। बनती कोशिश इन सब चीजों को टालने का प्रयास करना चाहिए। इन सबसे बचेंगे तब कहीं धर्मध्यान में लग पायेंगे।
- विपाक विचय धर्मध्यान के साथ जीना सीखो। देखो सीता के कर्म का उदय सास, माँ, पिता, भाई आदि किसी ने भी साथ नहीं दिया। ऐसा चिंतन करके अपने मन को शांत करना चाहिए। सीता ने कर्मोदय समझकर जीवन जिया। धर्मध्यान करना है तो जन संपर्क छोड़िए।
- जितना अनुशासन पक्का होगा उतना ही धर्मध्यान होगा।
- स्वास्थ्य खराब हो जाता है उस समय धर्मध्यान छूट जाता है तब मालूम पड़ता है। जब स्वास्थ्य अच्छा रहता है तो सब धर्मध्यान करना भूल जाते हैं इसलिए जब स्वास्थ्य अच्छा रहता है तो अच्छे से धर्मध्यान कर लेना चाहिए।
- अपने लिए जिससे धर्म साधन हो वह कार्य करना चाहिए।
- धर्मध्यान का उद्देश्य कभी भूलना नहीं चाहिए।
- कर्म का उदय आता है तब विचार करना कि भाग्य के अनुसार मिलता है यह विपाक विचय धर्मध्यान है। बस इतना करोगे तो विकल्प नहीं होगे।
- इस विचार से एक कर्मों की निर्जरा कर रहा है, एक नवीन कर्मों का बंध कर रहा है मोती चुगो कोई मना नहीं करेगा।
- पर की वेदना को देखकर रोना धर्मध्यान है और अपने स्वार्थ के लिए रोने को आचार्यों ने रौद्रध्यान कहा है।
- पर की पीड़ा को देखकर दु:खी होने वाले को धर्मप्रेमी कहा जाता है। धनप्रेमी दूसरों के लिए नहीं रो सकता।
- अपने दु:ख को भूलकर रहने से आर्त्तध्यान से बचा जा सकता है और पर के दु:ख में दु:खी होकर रक्षा करने से धर्मध्यान होता है।
- दूसरों के धर्मध्यान में बाधक नहीं बनना चाहिए।
- आर्त रौद्रध्यान तो मुफ्त मिलते हैं, लेकिन धर्मध्यान प्रयास से बहुत कम मिलते हैं खदान में एक हीरे की कणिका जैसा।
- यदि दृष्टि में वासना न हो तो धर्मध्यान में सहयोग देने के लिए ही विवाह होते हैं। पुराण ग्रन्थों को पढ़ने से ज्ञात होता है कि विवाह वासना पूर्ति के लिए नहीं होना। विवाह वासना को सीमित करने एवं धर्म संतान परंपरा के लिए है।
- अपने बारे में सोचो, अपने अनर्थों के बारे में सोचो दूसरों के भले के बारे में सोचो यह अपायविचय धर्मध्यान है। दूसरे के बुरे के बारे में सोचना दुध्यान है। रोओ पर दूसरे के दु:ख को देखकर दूसरे की समृद्धि देखकर नहीं।
- संसार के बाजार में धर्मध्यान मिलना कठिन है रौद्रध्यान तो मुफ्त में मिलता है। जिससे ममत्व हो, खतरा हो, रौद्रध्यान हो उससे ममत्व छोड़ दो।
- कर्मकाण्ड को मुखाग्र करने से कुछ नहीं होगा कर्म का उदय हमारा ही है ये विपाक विचय धर्मध्यान है।
- अपने किए हुए अनर्थ के बारे में सोचकर रोओ, प्रतिकूलता के बारे में सोचकर मत रोओ तो वह धर्मध्यान हो जायेगा।
- अपने किए हुए जो अनर्थ है और उसके द्वारा जो पाप बंध हो गया, भगवान् वो कब ठीक होगा? कैसे दूर होगा? कैसे धुलेगा? ऐसा सोचना भी अपायविचय धर्मध्यान होगा।
- हमें तो धर्मध्यान के लिए कुछ न कुछ अवसर मिल रहा है लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जिनके लिए कोई अवसर नहीं मिल पाते हैं, उन्हें भी धर्मध्यान का अवसर प्राप्त हो उनका दु:ख दूर हो इस प्रकार से सोचना ये बहुत अच्छा धर्मध्यान माना जाता है।
- संयोग-वियोग होते रहते हैं लेकिन जब तक संयोग बना रहता है तब तक धर्मध्यानमय जीवन व्यतीत करना चाहिए।
- करोड़ों बार स्रोत पढ़ने के बाद भी भक्त्तामर का अखण्ड पाठ जीवन पर्यन्त भी करोगे तो भी उतना फल नहीं मिलेगा जितना कि आप पाँच मिनट बैठकर सब जीव सुख का अनुभव करें, इस प्रकार के धर्मध्यान करने से पा सकते हैं।
- बाहर की ओर चेतना नहीं जाने देना यही आकिंचन्य धर्म है, बाकी तो मात्र अभिनय है।
- जब तक तेरा मेरा लगा है तब तक आकिंचन्य को नहीं अपना सकता है जो इनको छोड़कर अपने आप में तल्लीन होता है, वह आकिंचन्य धर्म को अपनाता है।
- संयोग वियोग में आर्तरौद्र ध्यान होता है और योग में धर्मध्यान होता है।
- संयोग के दु:खों से वियोग कराने वाला योग होता है। जो परमात्म से मिला दे वह योग है।
- चिंता को आर्त्तध्यान कहा है और चिंतन को स्थिरता का अभाव कहा है।
- अपने लिए तो सब रोते है लेकिन जो रो रहा है उसके लिए रोने वाले कम हैं उस पर रोओ दूसरों के लिए रोओ तो अपाय विचय धर्मध्यान हो जायेगा। ये तो हम करते नहीं।
- सराग और वीतराग धर्मध्यान बताया है आगम में ये धर्मध्यान करो।
- ब्रेन को शांत रखो बिल्कुल फ्रिज जैसा ठण्डा रखें। माइंड से कम काम लो। माइंड से उतना ही काम लेना जितनी क्षमता है जबरदस्ती नहीं।
- माइंड लगाओ अपायविचय धर्मध्यान में, विचारों से यदि सबका कल्याण हो सब सुखी हों यह सोचे तो बहुत अच्छा है।
- आर्त्तध्यान रौद्रध्यान की पहचान कराओ उसे छुड़ाओ, फिर धर्मध्यान का शिविर लगाओ।
- मोक्षमार्ग में आर्त रौद्र ध्यान न हो यह ध्यान रखो। धर्मध्यान क्या है? आर्त-रौद्र नहीं करना बस। धर्मध्यान न हो कोई बाधा नहीं लेकिन आर्त्तध्यान की पहचान कर लो आर्त-रौद्रध्यान की कमी करना भी धर्मध्यान की ओर है। आर्त रौद्रध्यान कम करते जायें और साथ ही जो धर्मध्यान कर रहे हैं उनकी प्रशंसा करना प्रारम्भ कर दीजिये।
- धर्मध्यान करना नहीं आता ऐसा नहीं जब आर्त्तध्यान कर सकते हो तो धर्मध्यान भी कर सकते हो ।