चिन्तन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- चिन्तन आज खो सा गया है, चिन्तन के स्थान पर चिंता होने से बच्चे आज घबड़ा रहे हैं।
- चिन्तन में गहराई, प्रौढ़ता, गंभीरता आ जाती है।
- महत्वपूर्ण बिन्दु उसमें आ जाये तो वो कहलाता है चिंतन।
- अनुप्रेक्षा-इसमें विस्तार नहीं होता और उसका सार सामने आ जाता है। उदाहरण के मध्यम से बहुत दिन बाद भी विषय वस्तु याद रहती है।
- स्वाध्याय मात्र से कर्म निर्जरा नहीं होती है। इसका फल तो वो है कि कर्मास्त्रव रुके, तब ही कर्म निर्जरा होती है।
- पढ़ना ही स्वाध्याय है, यह बात ठीक नहीं होती है। तत्व चिन्तन आदि करना भी स्वाध्याय है।
- आर्त-रौद्र ध्यान नहीं कर रहा है और शांति से बैठा है, तो यह भी सबसे बड़ा स्वाध्याय है।
- स्वाध्याय तो करो लेकिन कौन करा रहा है ये भी देखो।
- स्वाध्याय तो कर रहा है, लेकिन आवश्यकों का पालन नहीं कर रहा है, तो वह सही स्वाध्याय नहीं कर रहा है।
- आवश्यकों का पालन करना तो स्वाध्याय का फल है।
- दिन भर यदि अपनी प्रशंसा करता है तो प्रतिक्रमण के माध्यम से अपनी निंदा भी अच्छे ढंग से कर लेना चाहिए। प्रतिक्रमण में स्वाध्याय कूट-कूट कर भरा हुआ है।
- मैं पापी हूँ, मायावी हूँ इसकी तो माला भी फेर लेना चाहिए। इस प्रकार हमारे द्वारा सोचा जाये तो आँखों से आँसू आ जायें पश्चाताप होना चाहिए।
- अर्थ को समझते हुए प्रतिक्रमण करना ये सबसे बड़ा स्वाध्याय है।
- एक आचार्य प्रणीत ग्रंथ का स्वाध्याय हमेशा चलना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के ग्रन्थों से वैराग्य, संवेग बना रहता है।
- जो वैराग्यशील होते हैं उनको अच्छे अध्यात्म ग्रन्थों का अध्ययन करा देना चाहिए या कर लेना चाहिए। प्रारम्भ में यदि न्याय ग्रंथ लगा देते हैं तो उसकी तर्कणा बढ़ जाती है। उसकी भाषा समिति भी बिगड़ जाती है।
- स्वाध्याय का फल कर्मों की निर्जरा करना और अशुभ कर्मों से अपने को सदा बचाये रखना है नहीं तो स्वाध्याय निरर्थक है।