भारत का इतिहास विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- पहले के लोग पढ़े-लिखे कम थे लेकिन विवेक के साथ कार्य करते थे।
- भारतीय इतिहास पढ़ने से ज्ञात होता है कि भारत में सब तरह का अनाज, कपास आदि सबका उत्पादन होता था तथा वह सब जगह अन्य देशों में निर्यात हो जाता था और बदले में क्या लेते थे? वे बदले में सोना, चाँदी, हीरा-मोती, माणिक आदि लेते थे। निराश्रित होकर अर्थात स्वावलम्बी जीवन पहले के लोग जीते थे यह महत्वपूर्ण बिंदु हैं।
- आज तो धन ज्यादा खर्च करने पर भी अच्छा ही माल मिले इसके बारे में कुछ कह नहीं सकते। महँगी वस्तुएँ एक से एक बाहर से मंगाते हैं और अपने आपको सेठ साहूकार कहते हैं।
- आज कितने पराश्रित हो गये हैं आप लोग आज फसल प्राप्त करने के बाद बीज रूप नहीं रख सकते अनाज को क्योंकि वह काम की नहीं है। बीज राख फल भोगवे ज्यों किसान जग मांही यह पंक्तियाँ समाप्त हो गई |
- गाय एक चरने वाला प्राणी है उन्हें रोटी खाने की आवश्यकता नहीं पड़ती चारे की आवश्यकता है। चारा आज नहीं मिलने से गाय भी बेचारी हो गई है।
- घी-मूत्र में गुणवत्ता है जब गाय जंगल-जंगल में चरती है तब आती है। घूम-घूम करके झरनों,नदियों का जल पीकर आती है, तभी गुणवत्ता युक्त मूत्र उपलब्ध होता है।
- धीरे-धीरे गायों का जंगलों में चरना बंद हो गया रोटी आदि खिलाने लगे अब तो तेल पिला कर घी प्राप्त करना चाहते हैं जो संभव नहीं।
- आप केवलज्ञान ज्योति की जय बोलते हैं और अपनी ज्योति मिथ्या रखे हुए हैं। घी और मूत्र दोनों का उपयोग नेत्रादि में लगाने से ज्योति आदि बढ़ती है।
- भारतीय चिकित्सा गाय के घी और मूत्र पर आधारित है।
- आज औषध को ज्यों का त्यों बनाये रखने के लिए अल्कोहल का प्रयोग होता है। उसी से दवाइयाँ भी बनाई जाती हैं। आयुर्वेद ग्रन्थों में अल्कोहल का प्रयोग नहीं बताया है। वहाँ तो गौमूत्र का उपयोग बताया है वे कहते हैं कि इसके बिना औषध की क्षमता, गुणवत्ता सुरक्षित नहीं रह सकती। गुणधर्मों को लेकर औषध का निर्माण होता था।