अनुशासन विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- श्रावक को मर्यादा एवं अनुशासन का पालन किसी के भय से नहीं बल्कि पाप के भय से करना चाहिए।
- जो पाप के भय से त्याग किया जाता है या अनुशासन में रहा जाता है वही सच्ची त्याग एवं अनुशासन माना जाता है।
- गुरु से, कानून से मत डरो, डरना ही है तो पाप से डरो।
- अनुशासन में रहना ही पाप भीरुता का प्रतीक है और पाप से भयभीत होने से सम्यग्दर्शन का संवेग भाव नाम का गुण प्रकट होता है।
- हम अनुशासन प्रिय है और हम अनुशासन ही चाहते हैं। लाड़ प्यार अलग वस्तु है, अनुशासन अलग वस्तु है इसलिए अनुशासन के स्थान पर अनुशासन करना और लाड़ प्यार के स्थान पर लाड़ प्यार। बच्चों को हमेशा लाड़ प्यार देते हैं तो वो बिगड़ जाते हैं।
- अनुशासन हीनता होगी तो कभी भी पाप का अन्त नहीं होगा।
- भगवान महावीर ने अनुशासन नहीं चलाया, आत्मानुशासन चलाया और आत्मानुशासन के लिए न देश की, न पर (दूसरे) की न वित्त (धन) की, न वैभव की और न किसी की आवश्यकता है।एक मात्र आवश्यकता है अपनी कषायों पर कुठाराघात करने की।
- अनुशासन और आत्मानुशासन अदभुत चीज है। अनुशासन चलाने वाले के भाव में कषाय भाव, मैं बड़ा और दूसरा छोटा इस प्रकार की कल्पना है और इस कल्पना को मिटाने के लिए महावीर भगवान का अवतरण हुआ, उन्होंने अनुशासन नहीं आत्मानुशासन चलाया।
- यह आत्मानुशासन ही विश्व में शांति, आनंद फैला सकता है।
- जो मात्र कषाय के वशीभूत होकर आत्मानुशासन न करके विश्व के ऊपर शासन चलाना चाहता है वह व्यक्ति खुद ही शासित नहीं। इसलिए विश्व को शासित कैसे होने देगा ? वह अनुशासन के लिए मात्र कहता जा रहा है।
- आत्मानुशासन मुझे बहुत प्रिय है। आपको भी प्रिय होना चाहिए और भगवान महावीर को तो अत्यंत प्रिय था ही।
- दूसरे पर अनुशासन करने के लिए तो बहुत परिश्रम उठाना पड़ता है पर आत्मा पर शासन करने के लिए किसी परिश्रम की आवश्यकता नहीं एक मात्र संकल्प की आवश्यकता है।
- जिस जीवन में अनुशासन का अभाव है वह सर्वथा निर्बल है।
- अनुशासन विहीन व्यक्ति सबसे गया बीता व्यक्ति है।
- शासन प्रशासन की तब आवश्यकता होती है जब अनुशासन और आत्मानुशासन नहीं रहता।
- लोकतंत्र शासन और राष्ट्रपति शासन की बात की जाती है कि कौन-सा शासन अच्छा है? तो आत्मानुशासन ही सर्वोपरि है।
- जिस प्रकार फूल की सुरक्षा काँटों से होती है वैसे ही व्रतों की रक्षा अनुशासन से होती है।