अनुकूलता-प्रतिकूलता विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- संसारी प्राणी अनुकूलता चाहते हैं जितनी-जितनी अनुकूलता चाहते हैं उतना-उतना कूल (किनारा) दूर हो जाता है।
- अनुकूलता-प्रतिकूलता में हमारी दृष्टि कूल (किनारे) की ओर होना चाहिए।
- प्रतिकूलता में ही भगवान याद आते हैं।
- जो व्यक्ति कष्ट से डरता है उसे सफलता नहीं मिलती चाहे छोटा हो या बड़ा हो, उसे ये बात याद रखना है।
- कंकड़-पत्थर-शूल आदि पथ में रहते हैं, तो सावधानी से एक-एक पैर रखता है। फूल की महक आ जाये तो नशा चढ़ जाता है, आँखें बंद हो जाती हैं सुगंध में।