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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • आस्था

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    आस्था विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी  के विचार

     

    1. आस्था के बिना भी जो चारित्र का पालन है, उससे भी कर्म निर्जरा नहीं होगी। अत: आस्था भी आवश्यक है। जैसे पृथ्वी आदि स्थावर जीवों का विस्तृत ज्ञान तो था अभव्यसेन मुनि को, लेकिन आस्था नहीं थी इसलिए कर्मनिर्जरा नहीं हुई। रेवती रानी ने उनको नमस्कार नहीं किया। हरी पर चले, झरने का जल लिया आदि।
    2. आस्था में प्रवेश करने के बाद निष्ठा दृढ़ होती है।
    3. आस्था का विषय भूलने में न आए प्रतिष्ठा से बचना है।
    4. श्रद्धा के आधार पर ही चारित्र का भवन निर्माण होता है। आस्था और बोध संयम के उपासक है।
    5. देव, शास्त्र, गुरु के प्रति श्रद्धा निष्ठा से कीर्ति अपने आप बढ़ती जाती है।
    6. गुणों के प्रति ही श्रद्धा होती है, शरीर के प्रति नहीं शरीर से तो मोह होता है।
    7. भक्ति करने से बाह्य रूप एवं अंतर का स्वरूप सुंदर स्वच्छ प्राप्त होता है।
    8. वैभव प्राप्त होना ही भक्ति का प्रयोजन नहीं है बल्कि भव बंधनरूपी कर्मों का क्षय होना मुख्य प्रयोजन है।
    9. धर्म की शुरूआत तब होती है जब लिए गये संकल्प के प्रति दृढ़ता और आस्था होती है।
    10. जब तक अहिंसा धर्म में आस्था और आत्मा की भावना नहीं होगी तब तक उन्नति नहीं होगी।
    11. जो आस्था और प्रतिज्ञा में कमजोर होता है वह कभी आत्मोन्नति नहीं कर सकता है। धारणा जिसकी पक्की होती है वह मंजिल प्राप्त कर लेता है।
    12. आस्था में कमी आने से ज्ञान में कमी आ जाती है और लिया हुआ संयम डाँवाडोल होने लगता है।
    13. आस्था ज्ञान और संयम में कमी होने से विकास तो दूर रहा उल्टे विनाश की ओर कदम बढ़ जाते हैं।
    14. आस्था कम आशा अधिक रखकर जीवन जीना ही भविष्य की चिन्ता का कारण है।
    15. आशा कम और आस्था/विश्वास अधिक होने पर भविष्य निश्चिंत होगा।
    16. विफलता हाथ लगने से मनुष्य निराश हो जाता है जबकि विश्वास/आस्था से ओतप्रोत चींटी भी पर्वत पर चढ़ जाती है।
    17. आस्था/विश्वास ही सफलता की नींव है।
    18. आस्था दु:ख सुख की अनुभूति से परे होती है।
    19. आस्था एवं प्रयोग के कदमों से सफलता की सीढ़ी सरलता से चढ़ सकते हैं।
    20. दृश्य को पाने के पहले दृश्य को देखने से भी सुख प्राप्त होता है इसी को आस्था कहते हैं।
    21. सांसारिक सुखों में निकांक्षित सम्यक दृष्टि आस्था नहीं रखता। सम्यक दृष्टि तो अर्थ सम्पत्ति में नहीं परमार्थ में आस्था रखता है।
    22. श्रद्धान उन गुप्त स्थानों तक ले जाता है, जहाँ आज तक नहीं गये।
    23. आचार्यों के वचनों पर जब विश्वास हो जाता है तब फाउण्डेशन/आधार हो जाता है फिर प्रासाद भी खड़ा होने में देर नहीं उद्धार होने में देर नहीं।
    24. विश्वास विषयों में नहीं होना चाहिए अपनी तरफ होना चाहिए।
    25. विश्वास के बिना निर्जरा नहीं होती।
    26. आस्था को अविनाशी बनाने के लिए परिणामों में कमी है।
    27. जो आस्था आप लोगों को हुई है उसको सुरक्षित रखने के लिए मदों से दूर हटने की चेष्टा करें।
    28. जब तक धर्म के प्रति आस्था नहीं होती तब तक धर्म की सुरक्षा भी नहीं होती है।
    29. आस्था को मजबूत करने के लिए आपको कोई दवा खाने की आवश्यकता नहीं। दृढ़ संकल्प ही आस्था को मजबूत करता है।
    30. आस्था की मजबूती ही जीवन की सफलता है आस्था को कमजोरमत होने दो। संकल्पों व्रतों को कमजोर मत होने दो ।
    31. यदि आप अपनी आस्था को मजबूत करना चाहते हो तो आत्मसंयम के मार्ग में अपने कदम आगे बढ़ाओं अन्यथा आस्था मजबूत नहीं हो सकती।
    32. मोक्षमार्ग कोई पत्थरों का मार्ग नहीं है वह तो आस्था/विश्वास का मार्ग है। संकल्प, त्याग, वैराग्य, ध्यान, तप का मार्ग है और जिसमें आस्था ही प्रधान होती है।
    33. विश्वास, श्रद्धा, आस्था के आधार पर हम किसी भी जिज्ञासा को शान्त कर सकते हैं।

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