आज्ञा विषय पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के विचार
- जो यहाँ पर आज्ञा पालन करता है वही किसी दूसरे को आज्ञा देगा तो उसकी आज्ञा का पालन दूसरे लोग करेंगे। अत: आज्ञा पालन करते रहना चाहिए। दूसरे अगर अपनी आज्ञा का पालन नहीं करते तो समझना या समाधान करना कि हमने कभी आज्ञा का पालन नहीं किया होगा इसलिए तो दूसरे भी हमारी आज्ञा का पालन नहीं कर रहे हैं। देवों में इन्द्रों के यहाँ आज्ञाभंग माला मुरझाना आदि लक्षण ये बताते हैं कि पुण्य क्षीण हो रहा है, आयु समाप्त होने वाली है ऐसा एक चिह्न है।
- इन्द्र वही बनता है जो देव, गुरु, शास्त्र की आज्ञा का पालन करता है अथवा करके गया है। स्वर्गों में भी इन्द्र की आज्ञा प्राप्त करके ही कार्य करने का अनुशासन रहता होगा।
- स्वयं जो आज्ञा में रहता है उसके साथ अनेकों लोग आज्ञा में रह जाते हैं। जो स्वयं आज्ञा में नहीं रहते उसके साथ कौन रहेगा सोचो - स्वप्न में क्या दिन में भी सोचो तो भी नहीं होगा वैसा जैसा तुम स्वयं सोचोगे।
- सम्बल तो उस व्यक्ति को दिया जाता है जो आज्ञा मानता है। आज्ञा नहीं मानने वालों को क्या सम्बल दूँगा?
- समाज, संघ, गुरु की प्रभावना तभी होती है जब गुरु या बड़ों की आज्ञा के अनुकूल रहते हैं।
- आज्ञा अमृत की तरह होती है जो बहुत सोच विचार कर दी जाती है।
- मन मारकर नहीं खुशी-खुशी आज्ञा का पालन होगा तो उन्हीं से सम्बन्ध रखोगे उन्हीं को आज्ञा प्रायश्चित देंगे।
- जिसने आज्ञा का उल्लंघन किया उसने आगम का उल्लंघन कर दिया। आज्ञा पालन करने पर ऐसे ऐसे पल्लवित होते हैं कि हजारों को मार्ग मिल जाता है।
- जैसे घर परिवार में बड़े होते हैं उनकी आज्ञा में सब चलते हैं। ऐसे ही मोक्षमार्ग में जो बड़े होते हैं उनकी आज्ञा में छोटों को चलना चाहिए।
- जो देव, शास्त्र, गुरु की अविनय अवज्ञा करेगा तो कितना भी क्षयोपशम हो उसकी कोई महत्ता नहीं होती है। जो गुरु कहते हैं उसमें हओ, हाँ होता है तो क्षयोपशम बढ़ता है।
- वात्सल्य और बड़ों की विनय के बिना कोई भी कार्य प्रशस्तता से नहीं हो पाते हैं। बड़ों की आज्ञा मुख्य होना चाहिए।
- जो आज्ञा में स्वयं नहीं रहता है उसकी आज्ञा में अन्य कोई भी रहना नहीं चाहता है।
- आज्ञा पुण्य के कारण मिलती है।
- गुरु शिष्य का इतना ही सम्बन्ध है, गुरु आज्ञा देते हैं शिष्य आज्ञा लेता है बस इतना ही ये कटु सत्य है। सत्य इतना सूक्ष्म होता है उसे समझना बहुत कठिन होता है।
- एक बार जो भोजन करता है वह योगी, दो बार जो भोजन करे वह भोगी, तीन बार जो भोजन करता है, वह रोगी और जो चार बार भोजन करे तो मृत्यु होगी। ८० साल के हो गये हैं जो उनको कम से कम अपना मुंह दो बार चलाने का अधिकार है यह आगम की आज्ञा है।
- आज्ञा न सामान्य रहती है और न विशेष।आज्ञा तो आज्ञा है।
- धरती पर ही आज्ञा रहती है, ऐसा भी नहीं है। किन्तु देवगति में भी आज्ञायें रहा करती हैं।
- आगम की आज्ञा पालन करने के फलस्वरूप उनके पास ऐसी शक्ति आ गई है कि देव, दानव, असुर या सुर सभी उनकी आज्ञा में २४ घंटे रहते हैं।
- हम आज्ञा देना तो चाहते हैं, लेकिन आज्ञा का पालन नहीं करना चाहते।
- हम बड़े तो बनना चाहते हैं, किन्तु बड़ों का काम नहीं करना चाहते।
- इन्द्र की आज्ञा का उल्लंघन करने वाला कोई देव नहीं, सभी आज्ञाकारी हैं। पहले उन्होंने (इन्द्र ने) अपने जीवन को असंयम में व्यतीत न करके, संयम से व्यतीत किया और आज्ञा का ऐसा पालन किया, जिसे आज्ञा सम्यक्त्व कहते हैं।
- जब तक आज्ञा सम्यक्त्व नहीं होगा, तब तक हमारा चारित्र, चारित्र की संज्ञा नहीं पा सकता।
- आज्ञा के माध्यम से ही हमारा संयम असंख्यात गुणी निर्जरा के लिए कारण हो सकता है।
- विधि-विधान/संविधान का उल्लंघन एक प्रकार से महान् आपत्तिजनक हुआ करता है। आज्ञा के माध्यम से ही शासन सुचारु रूप से चलता है। जिसके माध्यम से स्व और पर का जीवन संरक्षित होता है, हजारों, लाखों, करोड़ों जनता का उसी में हित निहित रहता है।