चन्द्रगिरी डोंगरगढ क्षेत्र के मंत्री हमारे मार्गदर्शक श्री चंद्रकांत जी जैन को आज आचार्य गुरुदेव को नई पिंच्छिका देने और पुरानी पिंच्छिका प्राप्त करने का महान सौभाग्य प्राप्त हुआ
🚩 *पिच्छिका परिवर्तन समारोह 2023* 🚩
🛕 *डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़*🛕
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धर्मानुरागी बन्धुवर,
*सादर जय-जिनेन्द्र जी।*
*आचार्य भगवन 108 श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का*
*दिनांक 15 नवम्बर 2023 दिन बुधवार प्रातः 08•00 बजे को भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़*
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प्रतियोगिता मे भाग लेने की अंतिम तिथि
28 आकटूबर 2023 क्योंकि विदेश मे भी भाग लिया जा रहा हैं - भारतीय समय अनुसार 29 आकटूबर प्रातः 5 बजे तक भाग ले सकेंगे
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हम सभी लोग एक ऐसी प्रक्रिया पर विचार कर रहे हैं जिससे कि हमारा पूरा व्यक्तित्व निर्मित हुआ है और आगे भी हमें अपने व्यक्तित्व को किस तरह निर्मित करना है ये भी हमारे हाथ में है। इस सबकी जानकारी के लिये हम लोगों ने पिछले दिनों एक प्रक्रिया शुरू की है, उसमें जो एक बात आई थी कि हम जैसा चाहें वैसा अपना जीवन बना सकते हैं तो इसका आशय क्या है? हम जैसा चाहें तो हम तो बहुत अच्छा चाहते हैं फिर बनता क्यों नहीं है ? तो जैसा चाहें वैसा जीवन बना सकते हैं, इसका आशय समझना पड़ेगा। जैसी हमारी दृष्टि होगी वैसा हमारा जीवन बनेगा। अब दृष्टि हमें अपनी स्वयं जैसी हमारी चाहत है वैसी बनानी पड़ेगी। हम अपने जीवन को जैसा चाहते हैं हमें फिर वैसी ही दष्टि से सारे संसार को देखना पडेगा। क्योंकि बहत गौर से हम इस बात पर विचार करें और देखें, अनुभव करें तो जैसा हमारा दृष्टिकोण होता है, वैसा ही हमारा जीवन बन जाता है। भले ही हमारा कैसा ही जीवन रहे, अभावग्रस्त जीवन भी हो लेकिन हमारी दृष्टि निर्मल है तो फिर हमें किसी चीज का अभाव भी तकलीफ नहीं दे पायेगा।
और बहुत सारी चीजों का सद्भाव भी हो लेकिन हमारे अन्दर दृष्टि ठीक ना हो और हम हमेशा यही सोचते रहें कि कम है और होना चाहिये। तो बताइये क्या हम उन सारी चीजों से अपने जीवन को सुखी बना पाएँगे उन चीजों के सद्भाव में भी ? इतना महत्वपूर्ण है हमारे अपने दृष्टि का ठीक होना। और जब भी हम ये कहते हैं कि हम जैसा चाहें वैसा अपना जीवन बना सकते हैं तो उसके मायने यही है कि हम जीवन को किस दृष्टि से देखते हैं।
हम रागपूर्ण दृष्टि से देखते हैं या कि द्वेष देखते हैं या कि समतापूर्वक अपने जीवन को देखते हैं, ये हमारे ऊपर निर्भर है। चाहे जैसा जीवन हमें वर्तमान में मिला हो अपने पूर्व के संचित कर्मों के फलस्वरूप मिला हो। लेकिन यदि उस जीवन में हम अपनी दृष्टि को ठीक रखें तो आगे के जीवन को भी हम बहुत ऊँचाई दे सकते हैं। हमने समझा है कि यदि हम सबके प्रति दुर्भावना रखते हैं और दूसरे के सुख में स्वयं दुःखी होते हैं तो मानियेगा ये हमारी दृष्टि हमें नरक की तरफ ले जाएगी। यदि हम अपने को ही सब कुछ समझते हैं और सबका, गुणवान का भी तिरस्कार करते हैं तो अन्ततः हम अपनी मनुष्यता और देवत्व से नीचे गिरकर के, पशुता के लिये तैयारी कर रहे हैं। यदि हम संतोषपूर्वक जो प्राप्त है उसकी तरफ देखते हैं और अप्राप्त के लिये हम चिन्तित नहीं हैं और ना ही जो प्राप्त नहीं है हमें उसके लिये कोई दुःख है, हम जितना है उतने में सन्तुष्ट हैं, तो हम तैयारी कर रहे हैं फिर से मनुष्य होने की और यदि इससे भी ज्यादा ऊँचे उठ जायें, यदि हमारी दृष्टि इतनी निर्मल हो जाये कि हम राग-द्वेष इन दोनों से पार होने के लिये प्रयत्न करें तो जरूर हम अपने जीवन को देवत्व की तरफ ले जा सकते हैं। इसके मायने है जब ये कहा जाये कि हम जैसा चाहें वैसा जीवन बना सकते हैं तो इसके मायने हैं कि हम अपनी दृष्टि को जिस तरह की दिशा दे दें वैसा ही मेरा जीवन बनना शुरू हो जाता है।
एक सेठजी के यहाँ पर एक व्यक्ति काम करता था, नौकरी करता था। जब खाली टाइम होता था गपशप का, तो सेठजी और भी सबको बिठाकर के और चुटकुले वगैरहा सुनाते थे। क्या बोलते, जोक्स वगैरह ताकि थोड़ा इन्टरटेन हो, लेकिन अब कितने दिन तक सुनायेंगे वो, तो फिर वो ही चुटकुले रिपीट होने लगे। लेकिन अब चूंकि सेठजी सुना रहे हैं इसलिये हँसी नहीं आने पर भी हँसना पड़ता था, बनावटी हँसना पड़ता था। और एक व्यक्ति तो उसमें ऐसा था कि उसको जैसे ही सेठजी ने चुटकुला शुरू किया और हँसना शुरू कर देता था ताकि सेठजी प्रसन्न रहें। अब एक दिन ऐसा हुआ कि सेठजी ने चुटकुले सुनाए। सब तो हँसे लेकिन वो ही जो सबसे ज्यादा हँसता था, वो नहीं हँसा। तो सेठजी ने कहा कि क्यों तुमने आज चुटकुले नहीं सुने हैं, तो उसने कहा कि रोज सुनता हूँ आज भी सुने हैं कोई नई बात नहीं है। अरे तो तुम्हें हँसी नहीं आई। तो उसने कहा कि अब हँसने का क्या काम ? कल से मैं तो आपकी नौकरी छोड़ रहा हूँ। समझ में आया, कल से आपकी नौकरी छोड़ रहा है, अब हँसने का क्या काम। ऐसा ही हम अगर अपने जीवन में अपना दृष्टिकोण बना लें कि अब तो इस संसार से पार होने की प्रक्रिया शुरू कर रहा हूँ, क्या शत्रु और क्या मित्र, क्या राग और क्या द्वेष, क्या किससे लेना और क्या किसका देना। शांतिपूर्वक अपना जीवन जीना है किस-किसकी नौकरी-चाकरी करें। किस किसके मुताबिक हँसे, किस-किस के मुताबिक रोएँ, किस-किसको सन्तुष्ट करें। संसार में इतना ही तो करना पड़ता है अपने लिये और क्या करते रहते हैं दिन भर। अगर ऐसी हमारी दृष्टि बन जावे कि सिर्फ मुझे अपने आत्म-कल्याण के लिये जो करना है वो करना है। सारी दुनिया को सन्तुष्ट करना है तो आज तक कोई भी नहीं कर पाया। भगवान भी नहीं हो पाये ऐसे कि जो सबको सन्तुष्ट कर सकें अपने जीवन से। नहीं है “अतावे जमाना नहीं है खिताब के काबिल, तेरी रजाये है कि तू मुस्कुराये जा'। ये नेहरू जी को साहू शांतिप्रसादजी ने सुनाया था। उन दिनों जब वो जरा परेशान थे। तब नेहरूजी ने कहा कि मैं बहुत मुश्किल में हूँ जहाँ-जहाँ सँभालता हूँ वहाँ मुश्किल खड़ी हो जाती है। किस किसको सँभालू, किस-किस को समझाऊँ। उनको शैरो-शायरी का शौक था तो ये सुनाया था और ये इतना बड़ा मेसेज है कि संसार में ऐसे ही रहना चाहिये। अगर इस संसार से पार होना चाहते हैं तब। राग-द्वेष दोनों का नाम ही संसार है और संसार कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है। कोई अलग-अलग चीज नहीं है हमसे हमारे भीतर ही है वो। जितना राग-द्वेष है उतना संसार हमने अपने हाथ से निर्मित कर लिया है और जितना हम उसको कम करते चले जाएँगे उतना हमारा संसार कम होता चला जाएगा। “सराग संयम संयमासंयमाकामनिर्जरा-बालतपांसि देवस्य।"
आचार्य भगवन्तों के चरणों में बैठे, उमास्वामी महाराज के और उनसे पूछे कि मैं मनुष्य हूँ और क्या कभी देवताओं जैसी ऊँचाई छू सकता हूँ तो वो कहते हैं कि हाँ, अगर हम अपने जीवन को संयमित और नियन्त्रित कर लें लेकिन ध्यान रहे दृष्टि की निर्मलता के साथ आत्म-नियन्त्रण की प्रक्रिया होनी चाहिये। हम लोग अपने जीवन को कई वजह से अनुशासित और नियन्त्रित कर लेते हैं। चार लोगों में यश और ख्याति पाने के लिये जीवन में नियन्त्रण हम कर लेते हैं जिससे कि वाहवाही हो कि कित्ते बढ़िया व्यक्ति हैं। कितने उपवास करे इन्होंने, कितनी साधना है इनकी, कितनी तपस्या है इनकी, ऐसी ख्याति पूजा के लिये भी हम कई बार अपने जीवन को नियन्त्रित कर लेते हैं। उसकी चर्चा नहीं है दृष्टि की निर्मलता के साथ अगर आत्म-नियन्त्रण है। मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है इसलिये बहुत सारी चीजें मैंने छोड़ रखी हैं, ये संयम नहीं कहलाएगा। हाँ जब मैं स्वस्थ हो जाऊँगा, तब भी इन चीजों को ग्रहण नहीं करूँगा तो हो गया फिर संयम। विदेश में अपने स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत सारी चीजें नहीं खाते लोग। अपने यहाँ पर भी यदि डॉक्टर अपन से कह दे कि ये चीज मत खाना, नहीं तो तबीयत और बिगड जाएगी और मरना पड़ेगा, फिर तो आप बिल्कुल छोड़ देंगे, लेकिन उसके पीछे, उस नियन्त्रण के पीछे कहीं कोई दृष्टि की निर्मलता नहीं है। आत्म कल्याण की दृष्टि ही वास्तव में दृष्टि की निर्मलता है। ऐसी दृष्टि से अगर हम संयम का पालन करते हैं, सराग संयम इसलिये कह दिया कि जो संयमी है, वे मुनि, साधु-संत कहलाते हैं, लेकिन जब वे धर्मोपदेश देते हैं, आहार-विहार इत्यादि करते हैं तो यह क्रिया थोड़ी सी राग से युक्त तो है भले ही प्रशस्त राग है, कल्याणकारी है स्वयं के लिये भी दूसरे के लिये भी, इसलिये इसे सराग संयम कहते हैं। ऐसा आत्म-नियन्त्रण जिससे कि अभी परोपकार भी हो रहा है। ये अगर अपने जीवन में दृष्टि की निर्मलता के साथ यदि हम अपने ऊपर लगाम लगा लेवें, अपने ऊपर स्वयं अंकुश रख लेवें, अपने इन्द्रिय और मन के विषयों को सीमित कर देवें, तो संभव है कि हम अपने आगामी जीवन में देवत्व को प्राप्त कर सकते हैं।
आचार्य भगवन्तों ने लिखा कि पुण्य का अर्जन करके देवत्व प्राप्त करना ज्यादा कठिन नहीं है, लेकिन महाव्रतों का पालन करके और ध्यानपूर्वक कर्मों की निर्जरा से देवत्व प्राप्त करना महादुर्लभ है। हम ये ही तो चाहते हैं कि हमारे जीवन में देवत्व आये। हम देवता बनें स्वर्ग के। ये बिल्कुल अलग बात है कि कब बनेंगे हम। जब तक हमारे भीतर यहाँ मौजूदा जिन्दगी में देवत्व नहीं आयेगा, जैसे अपन कह देते हैं कि भैया बड़े देवता आदमी हैं। मतलब ज्यादा राग-द्वेष में नहीं पड़ते किसी के, ज्यादा प्रपंच में नहीं पड़ते, सीधी सी बात है। अपना आत्म-नियन्त्रित जीवन जीते हैं। यही तो देवत्व है वो यहाँ जब आयेगा तब जाकर के देवताओं वाली पर्याय मिलेगी। यहीं से शुरूआत करनी पड़ेगी। कदाचित् किसी की सामर्थ्य ना हो अपने को पूरी तरह से आत्म-नियन्त्रित करने की, जैसे कि मुनिजन आत्म-नियन्त्रण का पालन करते हैं वैसी ना हो तो सद्गृहस्थ है, श्रावक के व्रतों का पालन करता है। जीवन को थोड़ा-थोड़ा अच्छा बनाना शुरू किया है तो अब जरूर से एक दिन बहुत अच्छा जीवन बन जाएगा। श्रावक भी दृष्टि की निर्मलता के साथ अगर वो अपने व्रतों का पालन करता है, ख्याति, पूजा, लाभ की आकांक्षा नहीं है, कोई शारीरिक सम्बल पाने के लिये, या शारीरिक बल बढ़ाने के लिये, स्वास्थ्य के संरक्षण के लिये, या भयभीत होकर के अनुशासन नहीं है। आत्मानुशासन है यदि श्रावक के जीवन में भी, तो वो भी देवत्व की ऊँचाई पाने के लिये कारण बनेगा और अब। अगर ये दोनों दष्टि की निर्मलता के साथ हैं तो बहत ऊँचे देवों में जाकर उत्पन्न होंगे और अगर ये दोनों चीजें दृष्टि की निर्मलता के साथ नहीं हैं तब फिर देवता तो बनेंगे, मगर देवताओं में भी बहुत केडर हैं। एक तो किंग टाइप के देवता हैं और एक पिऑन टाइप के देवता भी हैं, ये ध्यान रखना। आप देवता का मतलब ये मत समझना, उनमें भी बहुत केडर हैं। इन्द्र है वहाँ और एक जगह किलविष जाति के भी देव हैं जो कि बिल्कुल सभा के बाहर जहाँ जूते-चप्पल उतारे जाते हैं बिल्कुल वहाँ बैठने को मिलता है उनको पूरी जिन्दगी भर और एक बैठा रहता है लॉर्ड बनकर के, इन्द्र बनकर के। आपने अगर अपने जीवन को आत्म नियन्त्रित तो किया है लेकिन ख्याति पूजा लाभ आदि की आकांक्षा से किया है, दृष्टि की निर्मलता नहीं रही है तो देवत्व तो पायेंगे आप लेकिन निकृष्ट देवों में उत्पन्न होंगे। ऐसे ही श्रावक के जीवन में, ऐसे ही साधु के जीवन में इसलिये दृष्टि की निर्मलता अत्यन्त आवश्यक है। यदि दृष्टि निर्मल नहीं है अर्थात् “आत्म अनात्म के ज्ञानहीन, जे जे करनी तन करन-छीन", यदि आत्मा और अनात्मा के बीच का हमें भेद विज्ञान नहीं है तब फिर हम जो-जो भी बाह्य आचरण करते हैं चाहे मुनियों के समान आचरण करें, चाहे श्रावक का आचरण करें लेकिन वो हमें देव पर्याय की प्राप्ति तो कराएगा, लेकिन सौधर्म इन्द्रादि जो स्वर्ग के देव हैं उनकी प्राप्ति नहीं। उतनी ऊँचाई नहीं पहुँच पायेगी उतना देवत्व नहीं आ पायेगा। ये सावधानी रखने की आवश्यकता है। “सम्यक्त्वं च।", इसलिये अगला वाला सूत्र जोड़ा है कि कोई अगर व्रत नियम संयम ना भी ले, लेकिन अकेले अगर दृष्टि की निर्मलता है तो यह डेफिनेट है कि वो ऊँचे देवों में ही उत्पन्न होगा। एक मात्र देवायु का ही बंध करेगा और यदि दृष्टि की निर्मलता नहीं है, देव तो बनेगा पर उतनी ऊँचाई नहीं छू पायेगा। ऐसा लिखा हुआ है कि मिथ्यात्व के साथ भी देवायु का बंध हो सकता है, आत्म-नियन्त्रण की वजह से। आगे कह रहे हैं कि “अकामनिर्जरा बालपतांसि देवस्य।"
देव तो ये भी बनते हैं जो कि मजबूरी में परवश होकर भोग-उपभोग की सामग्री का त्याग कर देते हैं। कारागार में, जेल में बन्द कर दिया गया वहाँ पर सारी सुख-सुविधाएँ छीन लीं। जमीन पर सोना पड़ रहा है। ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ रहा है। सब मजबूरी में करना पड़ रहा है, परवश होकर के। उसमें जो कर्मों की निर्जरा होगी उससे भी देवायु का बंध होगा, वह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। हाँ, और बाल तप, मिथ्यात्व के साथ नाना प्रकार के वेश बनाकर के और फिर जो तपस्या की जाती है वो बाल तप कहलाती है। ऐसे मिथ्या दृष्टि के द्वारा की जाने वाली तपस्या भी उसे देव पर्याय की प्राप्ति में निमित्त बन सकती है। लेकिन अगर देव पर्याय पानी है तो दृष्टि की निर्मलता के साथ पाना। सम्यग्दर्शन के साथ पाना। क्यों ? कहीं-कहीं पर देव पर्याय की प्रशंसा करी और कहीं पर देव पर्याय की प्रशंसा नहीं करी, क्यों ? अगर मिथ्यात्व के साथ देव पर्याय पाओगे तो वहाँ जाकर के भोग-विलास में इतने रच-पच जाओगे कि जितनी कमाई करी वो सब वहाँ गँवा करके और अन्ततः निकृष्ट पर्याय पाओगे और अगर सम्यग्दर्शन के साथ देवों में गये तो फिर क्या है उस भोग-विलास की सामग्री मिलने पर भी उससे निस्पृह होकर के धर्मध्यान के ज्यादा अवसर हैं। उन सबको प्राप्त करके तीर्थंकर के समवशरण में साक्षात् भगवान के चरणों में बैठकर के और अपने आत्म-कल्याण के लिये लगते हैं और मरण के समय कभी सम्यग्दृष्टि दुःखी नहीं होता। देव पर्याय के भोग-विलास छूटने पर वो कहता है कि बहुत अच्छा रहा। अब जाता हूँ। वहाँ पर मनुष्य में उत्पन्न होकर के मैं तो अपनी मुक्ति की साधना करूँगा। तब वो देव पर्याय उसके लिये लाभकारी हो जाती है। इसलिये दृष्टि की निर्मलता के लिये एक सूत्र अलग से रखा कि “सम्यकत्वं च'। सम्यग्दर्शन के द्वारा तो देव पर्याय ही हमारे लिये आगे जीवन को ऊँचा उठाने में कारण बनती है। भैया ये तो जीवन एक बीज की तरह हमारे हाथ में आया है। अगर हम गौर से देखें ये तो एक बीज है, इस बीज को कहाँ कैसे बोना है, किन भावनाओं की जमीन में बोना है, ये पर्याय एक सीड (बीज) की तरह है। आप जैसी जमीन में बोयेंगे, आप तिर्यन्च बनना चाहें, मनुष्य से मनुष्य बनना चाहें, देव बनना चाहें, नरक जाना चाहें, चौराहे पर खड़े हैं, चारों रास्ते खुले हुए हैं, और किसी के लिये नहीं खुले हैं, नरक से कोई नरक में नहीं जा सकता, देव में नहीं जा सकता, सिर्फ मनुष्य और तिर्यन्च में आ सकता है। देव से पुनः कोई देव में नहीं जा सकता, नरक में नहीं जा सकता मनुष्य और तिर्यन्च हो सकता है। तिर्यन्च से कोई भी चारों जगह जाये तो जा सकता है और मनुष्य से चारों जगह जा सकता है। तिर्यन्च में भी बहुत रिस्ट्रिक्शन्स हैं, कहाँ-कहाँ कितनी दूर तक जा सकते हैं। मनुष्य में जहाँ चाहें, वहाँ जा सकते हैं।
और एक बहुत बड़ी चुनौती भी है। हम अपनी उस सुविधा का लाभ उठाना चाहें तो लाभ उठा सकते हैं और उसको चूकना चाहें तो चूक भी सकते हैं। इसलिये जैसे कि एक बीज (एक सीड) जैसी भूमि पाता है वैसा आगे बढ़ जाता है।
मुझे वो उदाहरण याद आ गया। सुना ही देता हूँ, फिर थोड़ी सी चर्चा करूँ इन सूत्रों पर। एक पिता ने अपने बच्चों को और कुछ बीज सौंपकर के और तीर्थयात्रा की तैयारी करी थी। तीन बच्चे थे और तीनों को बीज सौंप दिये। मैं लौटकर के आऊँगा और वापिस ले लूँगा। वे उत्तराधिकारी किसको बनायें, इस बात के लिये चिन्तित थे और परीक्षा करना चाहते थे कि तीनों बेटों में सबसे ज्यादा योग्य कौन है ? तीनों को बीज सौंपकर के चले गये। वापिस लौटे तो पहले वाले से पूछा कि क्या किया उन बीजों का, पहले वाले ने कहा कि आपके लौटने के इन्तजार में तो वो बीज खराब हो जाते इसलिये मैंने बेच दिये। आप कहियेगा मैं फिर से बाजार से खरीदकर के आपको दे देता हूँ। लेकिन पिता ने कहा कि वे बीज तो नहीं हैं जो मैंने तुम्हें सौंपे थे। उसने कहा हाँ ये तो मिस्टेक हो गई और दूसरे ने यही सोचा था कि पिताजी अगर वो ही बीज माँगें तो क्या करेंगे तो उसने तिजोरी में बन्द करके रख दिये थे। लेकिन वर्षों के बाद जब निकाले तो वे तो सब घुन गये थे, खराब हो चुके थे। बीज तो थे लेकिन वो सब खराब हो चुके थे। दूसरे ने इस तरह से बीजों को सँभाला और तीसरे वाले ने कहा कि पिताजी सब बीज रखे हुए हैं। अभी देखेंगे और ले गया वो पीछे जो थोड़ी सी जमीन पड़ी थी घर में। उसमें वो बीज डाल दिये थे जिनमें से कि पौधे उग आये थे और एक-एक पौधे में कई-कई बीज। उसने कहा कि पिताजी ये बीज ज्यों के त्यों वे तो नहीं हैं उन्हीं की संतान हैं ये। कौन है सबसे ज्यादा योग्य, सब समझ रहे हैं। लेकिन अपने जीवन में झाँककर देखना पड़ेगा। ये तो कहानी है। अपने जीवन में झांक के देखना पड़ेगा कि जो जीवन ले के आये थे उसको कहीं कोड़ियों के दाम बेच तो नहीं दिया अपन ने। और कहीं भोग-विलास में लगाकर के उसे सड़ने के लिये मजबूर तो नहीं कर दिया। ठीक तिजोरी में रखे हुये, सड़ गये जो बीज हैं, क्या सचमुच, हमने उसे अपने भावनाओं की निर्मलता की जमीन में, दृष्टि की निर्मलता की जमीन में बोकर के। दृष्टि की निर्मलता कैसी, जिससे कि मेरे जीवन से सबको लाभ मिले। ये बीज सबके लिये सुगन्ध फैलायें इसके लिये उसने थोड़ी सी जमीन में उनको बो दिया था। जिनसे कि फूल निकलें और सबको सुगन्ध मिले और अपना भी कुछ बिगड़ा नहीं, ज्यों के त्यों बने रहे। क्या जीवन को इस दृष्टि से नहीं जिया जा सकता ? इस दृष्टि से अगर कोई अपने जीवन को जीता है तो वो तो यहाँ भी देवत्व के साथ जी रहा है, आगे भी वो अपने जीवन को उस ऊँचाई तक ले जा पाएगा जहाँ कि ये स्वर्ग के देव क्या देवाधिदेव पहुँचे हैं, उस ऊँचाई तक भी अपने जीवन को ले जा सकता है।
हमारा चुनाव हमें स्वयं करना पड़ेगा कि हमें क्या चुनना है अपने जीवन में। ये चारों चीजें अपन ने समझीं। बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह चुनना हो तो, हम नरक चुन रहे हैं मान के चलें। अगर छल-कपट की जिन्दगी चुननी हो तो मानियेगा कि तैयारी है पशु बनने की। और अगर संतों का जीवन चुनना है, मानियेगा कि मनुष्य होने का चांस फिर से एक और मिलेगा और अगर थोड़े से ऊपर उठकर के अपने जीवन को ऐसा जीयें जिससे कि अपना भी आत्म-कल्याण हो और सब जीवों का मेरे माध्यम से आत्म-कल्याण हो, ऐसी दृष्टि से भी जीवन को जिया जा सकता है तब फिर हम देवताओं के जैसी ऊँचाई को भी हासिल कर सकते हैं और भी इन दो सूत्रों के अलावा जब अकलंक स्वामी के चरणों में बैठते हैं तो वे बहुत छोटी-मोटी बातें बता रहे हैं कि अगर देवता बनना है, स्वर्ग के देव बनाना है, कैसे परिणाम होते होंगे ? हम क्या वैसे परिणाम कर सकते हैं। इसके बारे में कह रहे हैं कल्याण मित्र संसर्ग। इससे भी देवायु का बंध होता है। हमेशा ऐसा मित्र चुनना जो कि आत्म-कल्याण की बात करता हो। ऐसा कल्याण मित्र सौभाग्य से मिलता है। अपने आत्म-कल्याण के लिये कोई चिन्तित हो यह तो बहुत सामान्य सी चीज है, लेकिन कोई किसी के आत्म-कल्याण के लिये चिन्तित हो ऐसा मित्र मिलना तो बहुत कठिन है। वो कह रहे हैं कि कल्याण मित्र संसर्ग जैसे कि वारिषेण मिल गये थे पुष्पडाल को। 12 वर्ष तक छाया की तरह उनके साथ रहे और उनके मन में उठने वाले विचारों को पहचानते रहे और एक दिन जब बिल्कुल ही स्थिति ऐसी हो गयी कि पुष्पडाल अब गिरे, तब गिरे, तब जाकर के ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कर दिया जिससे कि हमेशा के लिये वे सँभल गये।
ऐसा कल्याण मित्र मिलना जीवन में भैया ऐसे मित्र तो मिलते हैं कि आओ जरा पार्क में घूम कर आयें। आओ जरा थियेटर में चल करके आयें। आओ जरा और किसी जगह इन्टरटेन करें। लेकिन ऐसे मित्र मिलना बहुत कठिन है कि आओ आज बैठकर के जरा तत्त्व चर्चा कर लें। आओ बैठकर के थोड़ा भगवान का ध्यान कर लें, आज पूजन कर लें, अपन दोनों एक साथ बैठकर के। आओ आज तो थोड़ा सा सुनकर आयें जरा कल्याण की दो बातें। ऐसे मित्र मिलना आज के समय में बहुत मुश्किल है। ऐसे मित्र दूसरे के बनना, कोई ना मिले अपने लिये, कोई बात नहीं है. लेकिन अपन ऐसे मित्र बनेंगे दसरे के तो फिर अपने लिये देवत्व की प्राप्ति हो सकती है। दूसरा मिले या ना मिले ये तो हमारा पुण्य लेकिन हम ऐसे मित्र बनें दूसरे के जब भी बन पायें तो उससे हमारा ही कल्याण होगा। उसका तो हो जाएगा। एक चीज कह रहे हैं कि कल्याण मित्र संसर्ग और फिर दूसरा कह रहे हैं कि आयतन सेवा। सच्चे देव गुरु शास्त्र की सेवा करना और इतना ही नहीं जो सच्चे देव गुरु शास्त्र के फोलोअर हैं उनकी भी सेवा करना।
बताइये अगर हम पूजा करके लौटे हैं तो भगवान की सेवा करी या जिनालय की सेवा करी हमने, लेकिन जो जिनालय के दर्शन करके लौटा है उसके साथ अगर हमने अच्छे से व्यवहार नहीं किया है तो इसके मायने क्या है, क्या यह आयतन की सेवा कहलायेगी। आयतन छः होते हैं कि नहीं होते। जिनेन्द्र भगवान, गुरु और शास्त्र और उनके फोलोअर्स। वो भी आयतन है बताइये, हम सब एक-दूसरे के आयतन हैं अगर देखा जाए तो क्योंकि सब सच्चे देव, गुरु, शास्त्र के भक्त हैं तो हम एक-दूसरे के लिये कल्याण में निमित्त हैं। आयतन तो वो ही है जो कि हमारे कल्याण में निमित्त बने। तो क्या हमारे अपने साधर्मी के बीच ऐसा सेवा का भाव नहीं होना चाहिये। जरूर से होना चाहिये? ये आयतन की सेवा कहलाएगी। इससे भी हमारे अन्दर देवत्व की प्राप्ति होती है और फिर कह रहे हैं, धर्म श्रवण। धर्म श्रवण करना भी देवत्व की प्राप्ति में कारण बनता है, बन सकता है क्या? लगता तो नहीं है, क्योंकि बहुत लोग सुनते हैं धर्म श्रवण तो, सब क्या देवता बनेंगे? जिसकी दृष्टि धर्म श्रवण से निर्मल बन जाएगी वो जरूर निमित्त बनेगा। एक कारण बनेगा। धर्म श्रवण, है आपको याद उस चोर का नाम तो मुझे याद नहीं है लेकिन वो चोर था, हाँ विद्युत चोर होगा जिसको कि उसके पिताजी ने कहा था कि सुनो उस रास्ते से मत जाना वहाँ पर भगवान महावीर का समवसरण है। वहाँ से जाओगे तो गड़बड़ हो जाएगी। तुम्हारी चोरी सब छूट जाएगी। उपदेश अगर सुनने में आ गया कानों में। और एक बार ऐसा मौका आया कि उधर से निकलना पड़ा तो दोनों कानों में उसने उँगली लगा ली थी, सुनना ना पड़े लेकिन उतने बीच में उसको काँटा लग गया और काँटा लग गया तो उसको निकालने के लिये हाथ छोड़े, उतने में दो शब्द कान में पड़ गये कि देवों के पलकें नहीं झपकतीं और छाया नहीं पड़ती। चल रही होगी वहाँ चर्चा समवसरण में देवों की, देवों की छाया नहीं पड़ती और पलकें नहीं झपकतीं।
धर्म संयोग से श्रेणिक के मंत्री अभय कुमार के द्वारा वह पकड़ा गया। पकड़ने के बाद में अभय कुमार ने सोचा कि इससे कैसे करवायें पता कि इसने अपराध किया है चोर है, तो ऐसा बना दिया बिल्कुल कि जैसे वो स्वर्ग में पहुँच गया हो। और देवी देवता सब खड़े हुए हैं सेवा में जब उसको तो कोई दवाई पिलाकर के बेहोश कर दिया था और जब वह उठा तो देखा और कहा गया उससे कि अब तुम देव हो और स्वर्ग में आ गये हो। तुमने क्या-क्या अपने जीवन में अपराध किये उन सबको कह दो क्योंकि अब तो तुम स्वर्ग में आ गये हो। उसको भी एक बार लगा कि आ गये लगता है स्वर्ग में, लेकिन देखा कि इन लोगों की तो पलकें झपक रही हैं और इनकी छाया पड़ रही है, भगवान महावीर स्वामी झूठ नहीं बोल सकते। उन्होंने तो कहा था कि देवों की तो पलकें नहीं झपकती, उनकी तो छाया नहीं पड़ती। मतलब ये सब मेरे साथ फ्राड किया जा रहा है। ये सब बेईमानी है, उसने कुछ नहीं बताया और जब कुछ भी साबित नहीं हो सका कि चोर है, तो अभय कुमार ने कहा कि जाओ साबित तो हो नहीं सका, पर कुछ ना कुछ बात जरूर है, तुम बच नहीं सकते थे मेरी चतुराई से, कैसे बच गये तब फिर उसने अभय कुमार के चरणों में झुक कर कहा ऐसा पूछते हो तो मैं यही कहूँगा कि मुझे किसी और ने नहीं बचाया, जिनेन्द्र भगवान की वाणी ने बचा लिया। जब मुझे जिनेन्द्र भगवान के दो शब्दों ने इस विपत्ति से बचा लिया तब अगर मैं उनके पूरे धर्म को श्रवण करूँ तब तो मैं संसार की हर विपत्ति से ही बच जाऊँगा। धर्म श्रवण भी हमारे जीवन को बहुत बड़ी ऊँचाई दे सकता है।
ये उदाहरण है अपने प्रथमानुयोग में। आज भी हम इसको अपने जीवन में लागू कर सकते हैं। लेकिन दृष्टि निर्मल होना चाहिये। धर्म श्रवण मेरे कल्याण में कारण बने ऐसी दृष्टि से, कितनी कम भी बुद्धि क्यों ना हो दो बातें तो सबके समझ में आती हैं भैया अपने कल्याण की। किसके समझ में नहीं आती और कब समझ में आ जाये यह कहा नहीं जा सकता। जब समझ में आ जाये तभी जो है अपने कल्याण के लिये तत्पर हो जायें। कोई व्यक्ति ऐसी भावना भाये तो भी देव पर्याय मिलेगी। धर्म श्रवण की भावना भले ही कुछ समझ में नहीं आता हो, चलो बैठेंगे। एक व्यक्ति को सुनाई नहीं पड़ता था, दिखाई नहीं पड़ता था ऐसा उदाहरण आता है और सभा में सबसे आगे बैठता था। लोगों ने उससे पूछा कि तुम सुन तो पाते ही नहीं हो, ना देख पाते हो। बोला कि नहीं, ये दो आँखें बाहर की भले ही न देखती हों, ये बाहर के कान भले ही न सुनते हों लेकिन मेरी अन्तर आत्मा सनती है। मेरी अन्तर आत्मा देखती है। हाँ, मैं आगे बैठता है। मैं अपनी अन्तर आत्मा से देखता हूँ, मैं सुनता हँ अपने अन्तर आत्मा से वो आवाज, मेरे कल्याण की आवाज और भैया जो अपने अन्तर आत्मा की आवाज न सुने और बहुत सारी आवाज सुनता रहे, धर्म श्रवण भी करता रहे तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा।
ये कान कितना सा सुन पाते हैं, भीतर से सुनने की अगर आकांक्षा हो तो वो धर्म श्रवण हमारे जीवन को देवत्व की ऊँचाई दे सकता है। वो कह रहे हैं तपस्या में तत्परता। भले ही शरीर कमजोर हो, नहीं बनता अपन से, पर मैं करूँ ऐसी भावना हो, मैं कुछ कर पाता, मैं अपने जीवन के लिये थोड़ी तपस्या कर पाता। कर कुछ भी नहीं पा रहे हैं। हिम्मत ही नहीं हैं, एक आसन तक नहीं हो पा रहा है, दो बार खाना पड़ रहा है, लेकिन मन में क्या विचार है, ऐसा हमारा जीवन हो जाता कि एक ही बार खाते। आज हम भी उपवास कर लेते। ऐसी भावना भाने में क्या लग रहा है बताओ? और शक्ति है तो करेंगे और शक्ति नहीं है तो भावना तो भाई जा सकती है। और कह रहे हैं तप में तत्परता रखता है वो भी देवायु का बंध करता है और जिसको ज्ञान की ललक है भले ही अंगूठा छाप है, लेकिन ज्ञान की ललक है बहुश्रुतवान के चरणों में जाकर के बैठ जाता है कि कुछ सुनाओ, अरे तुम्हारे को समझ में तो आता ही नहीं है, तुम्हारे को क्या सुनायें ? नहीं हम तो सुनेंगे, आप सुनाओ तो, भले ही कुछ समझ में नहीं आता। ऐसी जिसके अन्दर भावना है वो देवता नहीं बनेगा तो क्या बनेगा, बताओ। जो संसार के प्रपंच से बचकर के, राग-द्वेष से बचने के लिये, चार बातें जानने की आकांक्षा रखता, भले ही उसकी बुद्धि में नहीं आती है तो उसकी भावना की निर्मलता उसको ऊँचाई पर ले जाएगी और कह रहे हैं कि जो सद्पात्र के लिये दान देने की हमेशा भावना भाता है, अकेले भावना की बात कर रहे हैं।
भैया, देवत्व और कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है जहाँ “टू ऐरर इज हुमेन, टू कन्फेस इज डिवाइन” जहाँ हम गलतियाँ करते हैं वहाँ हम मनुष्य हैं और जहाँ हम अपनी गलतियों को स्वीकार करके उन्हें सम्भालने के लिये प्रयत्न करते है वहाँ हमारे भीतर देवत्व आना शुरू हो जाता है। जहाँ हम गलती करने वाले के प्रति भी मन में सद्भाव रखते हैं। वहाँ से देवत्व की शुरूआत होती है। गलती करने वाले को गलत मानने वाली तो दुनिया है भैया लेकिन गलती करने वाला अपने को गलत मानें हम क्यों उसे गलत माने, हम तो उसके प्रति सद्भाव ही रखेंगे। इतनी ऊँची अगर अपनी दृष्टि की निर्मलता हो जावे तब तो फिर कोई बात ही नहीं है।
एक छोटी सी घटना है। बहेलिये ने जाल बिछाया और एक कबूतरी उसमें फँस गयी। अब फँस गई वो तो कबूतर ऊपर बैठा पेड़ के ऊपर, वो भी दुःखी और वो कबूतरी फँस गई वो भी दुःखी। क्या करें ? उसी पेड़ के नीचे बहेलिये ने अपना डेरा डाल दिया। कबूतरी ने जाल में बन्द होने के बाद भी आवाज दी कबूतर को कि दुर्व्यवहार नहीं करना। मुझे भले ही पकड़ लिया है, लेकिन आया अपने पेड़ की शरण में है, इसलिये मदद करना। बताओ आप, तिर्यन्च है वो। पता नहीं ऐसा हुआ कि नहीं अपन मत करो विश्वास ऐसा लगता है मन में, अरे कहाँ होता है ऐसा सब कुछ। लेकिन करना पड़ेगा विश्वास ऐसा भी संभव है। कबूतरी कह रही थी और कबूतर ने सुना तो उसका संक्लेश कम हो गया। जितने तिनके लाया था वो घोंसला बनाने के लिये वो सब धीरे-धीरे नीचे गिरा दिये और इतना ही नहीं जब उसको लगा कि अभी तो कम है मामला तो और तिनके लाया बटोर के, सब नीचे गिरा दिये। ऐसा ढेर सा लग गया। फिर वहीं से जलती लकड़ी उठाकर के लाया, उसमें डाल दी आग जला दी, सारी रात ठण्ड में ये पेड़ के नीचे कैसे काटेगा थोड़ी गर्माहट हो जाएगी और फिर जब नहीं रहा गया तो फिर अपना घोंसला भी उसमें गिरा दिया ताकि और थोड़ी अग्नि जल जाये। अब क्या करूँ, इसके लिये क्या करूँ, और दुःख भी है कि कबूतरी की तो जान चली ही जाएगी, अब जब इसकी चली ही गई तो इसी अग्नि में मेरी भी चली जाए, ऐसा सोचकर उस अग्नि के निकट आने वाला था और बहेलिया सब देख रहा है। उसका मन बदल गया, उसने फौरन कबूतर को एक तरफ हटाकर के और जाल खोलकर के कबूतरी को भी उड़ा दिया।
एक का देवत्व दूसरे के लिये भी भीतर देवत्व उत्पन्न कर सकता है। देवत्व और कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है। हमारे भीतर की सद्भावनायें देवत्व है और हम किसी अपराधी से, अपराधी व्यक्ति के प्रति भी अगर हम अपनी सद्भावना व्यक्त करेंगे तो मानियेगा कि हम तो देवताओं जैसे ऊँचे हो ही जाएंगे। उसको भी कोई रास्ता मिलेगा। उस बहेलिये के बारे में लिखा है कि उसने जीवन भर फिर जाल से हिंसा करना छोड़ दिया। छोटी सी एक घटना उसके जीवन को इतना परिवर्तन कर गई। भैया, हमारे जीवन में भी ऐसा परिवर्तन आये और अपन भी अपने जीवन में ऐसी तैयारी करें जिससे कि हमारा जीवन बहुत अच्छा बने।
इसी भावना के साथ बोलिये आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी मुनि महाराज की जय।
०००
सभी को प्रमाण पत्र भेज दिए गए हैं, अगर आप को प्राप्त नहीं हुए तो आप निम्न लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं
https://docs.google.com/spreadsheets/d/1904VzS0yUwes0JfNbnizNrLZQ4B9pwK0/edit?usp=sharing&ouid=108041101357652563056&rtpof=true&sd=true
*Live Kahoot Quiz विलक्षण प्रतियोगिता के अंतर्गत आज 3 बजे से होगा प्रारंभ*
*विशेष बात : ध्यान रखने हेतु*
1 दो मोबाईल अथवा 2 स्क्रीन की अवशयकता होगी -Smart TV का भी उपयोग कर सकते हैं
2 सबसे पहले निम्न Zoom लिंक पर आपको जुड़ना होगा जिसके माध्यम से आप हमारी बात सुन पाएंगे
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विद्यासागर डॉट गुरु वेबसाईट is inviting you to a scheduled Zoom meeting.
Join Zoom Meeting
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──────────
ज़ूम फूल होने पर आप Youtube पर भी जुड़ सकते हैं
https://www.youtube.com/channel/UC44JqnO2iRhifwufxxHvzsw/live
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3 दूसरे मोबाईल से आपको Kahoot वेबसाईट या ऐप्प पर Kahoot PIN डालकर जुड़ना होगा
https://kahoot.it/
Game PIN आपको ज़ूम पर मिलेगा
कोई भी अपडेट होगा तो निम्न लिंक पर उपलब्ध होगा (जैसे ज़ूम ID / Kahhot Pin)
यह एक प्रयोग हैं - इसको सफल बनाने के लिए आप सभी को इसकी जानकारी समय पे प्रेषित करें
हमारा प्रयास
www.VidyaSagar.Guru
प्रतिदिन इसी लिंक पर आएगी नई प्रतियोगिता
गूगल फॉर्म पर मिलेगा स्वाध्याय का लिंक
Live Kahoot quiz की जानकारी
28 सितंबर 2023
उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म विलक्षण प्रतियोगिता
गूगल फॉर्म प्रश्न पत्र लिंक
27 सितंबर 2023
उत्तम आकिंचन धर्म विलक्षण प्रतियोगिता
गूगल फॉर्म प्रश्न पत्र लिंक
26 सितंबर 2023
उत्तम त्याग धर्म विलक्षण प्रतियोगिता
गूगल फॉर्म प्रश्न पत्र लिंक
25 सितंबर 2023
उत्तम तप धर्म विलक्षण प्रतियोगिता
गूगल फॉर्म प्रश्न पत्र लिंक
24 सितंबर 2023
उत्तम संयम धर्म विलक्षण प्रतियोगिता
गूगल फॉर्म प्रश्न पत्र लिंक
23 सितंबर 2023
उत्तम सत्य धर्म विलक्षण प्रतियोगिता
गूगल फॉर्म प्रश्न पत्र लिंक
22 सितंबर 2023
उत्तम शौच धर्म विलक्षण प्रतियोगिता
गूगल फॉर्म प्रश्न पत्र लिंक
21 सितंबर 2023
उत्तम आर्जव धर्म विलक्षण प्रतियोगिता
गूगल फॉर्म प्रश्न पत्र लिंक
20 सितंबर 2023
उत्तम मार्दव धर्म विलक्षण प्रतियोगिता
गूगल फॉर्म प्रश्न पत्र लिंक
19 सितंबर 2023
उत्तम क्षमा धर्म विलक्षण प्रतियोगिता
गूगल फॉर्म प्रश्न पत्र लिंक
आज तीन बजे Kahhot PIN / Zoom लिंक यही पर अपडेट होगा
18 सितंबर 2023
पर्व भूमिका विलक्षण प्रतियोगिता लिंक
इस पतियोगिता मे 19 सितंबर 2023 रात्री 11 बजे तक तक भाग ले सकते हैं
सिर्फ यह प्रतियोगिता 2 दिन तक भर सकते हैं, सभी प्रतियोगिता में एक दिन का समय मिलेगा
17 सितंबर 2023
दस लक्षण पर्व प्रतियोगिता जानकारी
18 सितंबर से 28 सितंबर 2023
Whatsapp समूह से जुड़ें
आचार्य श्री विद्यासागर मोबाईल ऐप्प पर करना होगा स्वाध्याय
डाउनलोड / इंस्टॉल करें
Androd app
ios apple store
प्रतियोगिता स्वरूप
1 प्रतिदिन 7 बजे से गूगल फॉर्म पर प्रतियोगिता (स्वाध्याय कर रात्री तक देने होंगे उत्तर )
2 Live KAHOOT ( 3 बजे से 5 बजे तक ) Zoom पर
ऑनलाइन वतन की उड़ान संगोष्टी में चुने गए 11 नाम इस प्रकार हैं
Jain Jayanti Devendrakumar Surat
Yashika Meghawat khandu colony banswara rajasthan
संगीता सिंघई जैन सिहोरा जबलपुर
Shailendra Sanghi ,Manju Jain Raipur
सरोज बाकलीवाल, मीना काला एवं पूजा जैन (पूनम ) सूरत
Lankeshwari Jain Chandigarh
प्राची जैन एवं साक्षी जैन दिल्ली
"श्रीमती अर्चना शरद भोकरे Sankalp" Samdoli (Dist Sangli )
Vidushi Jain Banda district Sagar
प्रियंका जैन मुंबई
Rohit Jain preetika jain kota
आप सभी को व्यक्तिगत समपर्क किया जाएगा - आगे की जानकारी के लिए
11 सितंबर 2023
प्रमाण पत्र निम्न लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं
https://docs.google.com/spreadsheets/d/1sg4wNtHoVB-Q2wtzbNG0ADBq-al_1Eu5-yXEJnFjofs/edit?usp=sharing
13 सितंबर 2023
प्रतियोगिता की अंतिम तिथि एक दिन के लिए बढ़ाई गई - अब 15 सितंबर तक भाग ले सकते हैं
11 सितंबर 2023
उत्तर प्राप्त सूची
https://docs.google.com/spreadsheets/d/1vw_9pBuyLQtW4g5WVfmZdFJA5XrtIFzhR9pP7-4GbhA/edit?usp=sharing
10 सितंबर 2023
प्रतियोगिता प्रारंभ : प्रतियोगिया गूगल फॉर्म पर आयोजित हैं
गूगल फॉर्म लिंक : जहां पर आप उत्तर भेजेंगे
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https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLScpyB0ivCuFiP287htMMReuU4AGVi7kE2k8UUImbV0A3IcBXA/viewform?usp=sf_link
प्रश्न पत्र अलग से डाउनलोड भी कर सकते हैं
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https://vidyasagar.guru/files/file/389-भाषा-और-माध्यम-प्रतियोगिता-के-प्रश्न/
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आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद एवं मुनिश्री प्रसाद सागर जी के मार्गदर्शन में वतन की उड़ान प्रतियोगिता की पुरस्कार एवं शिक्षकों का सम्मान समारोह संपन्न ।
राज्यसभा सांसद पद्म भूषण धर्माधिकारी श्री वीरेन्द्र हेगड़े जी ने मुख्य अतिथि के रूप में पधारकर किया सम्मान।
रायपुर विश्व परिवार। डोंगरगढ़ में। विराजमान आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की पावन आशीर्वाद से एवं पूज्य मुनिश्री प्रसाद सागर जी महाराज के मार्गदर्शन में सम्पन्न हुई “वतन की उड़ान प्रतियोगिता “के विजयी प्रतिभागियों को शिक्षक दिवस के अवसर पर आयोजित भव्य कार्यक्रम में सम्मानित किया गया। इस अवसर पर देशभर से आए हुए 77 शिक्षकों का भी सम्मान किया गया। यह आयोजन स्थानीय मेकहारा मेडिकल कॉलेज के अटल बिहारी वाजपेयी सभागार में संपन्न हुआ। पुरस्कार वितरण समारोह के मुख्य अतिथि रहे पद्मभूषण राज्यसभा के सांसद धर्माधिकारी धर्मस्थली कर्नाटक श्री वीरेन्द्र हेगड़े जी।
वतन की उड़ान प्रतियोगिता डॉक्टर सुरेंद्र नाथ गुप्ता द्वारा लिखित पुस्तक सोने की चिड़िया एवं लुटेरे अंग्रेज के आधार पर ऑनलाइन आयोजित की गई थी। इस प्रतियोगिता में 11,000 प्रतिभागियों ने नामांकन कराया था एवं 7600 प्रतिभागियों ने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। इस प्रतियोगिता में विजय हुए। 77 प्रतिभागियों को आज इस भव्य मंच से सम्मानित किया गया। साथ ही देशभर के विभिन्न प्रदेशों से उत्कृष्ट सेवा कार्य करने वाले। 77 शिक्षकों को भी विशेष रूप से सम्मानित किया गया।
सभी प्रतिभागियों को स्मृति चिन्ह, प्रमाण पत्र एवं पुस्तकों आदि से सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह में श्री नंदकुमार साय अध्यक्ष, औद्योगिक विकास निगम छत्तीसगढ़, श्री ब्रजमोहन अग्रवाल जी पूर्व मंत्री एवं विधायक रायपुर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। अन्य अतिथियों में श्री उज्ज्वल पाटनी, मोटिवेशनल स्पीकर श्री राम प्रकाश सिंह अकोला, श्री राजेश अग्रवाल का श्री नर्मदा बाबा अमरकंटक, श्रीमती अरुणा पलटे कुलपति, श्री नरेंद्र जैन गुरुकृपा मैनेजिंग ट्रस्टी, श्री जैन समाज रायपुर आदि रहे।
इस अवसर पर अतिथियों का स्वागत चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से श्री किशोर जैन सिंघई, श्री विनोद जैन बिलासपुर अध्यक्ष चातुर्मास समिति श्री सुरेश जैन, श्री चंद्रकांत जैन सहित समिति के पदाधिकारी ने किया। दिगंबर जैन समाज रायपुर के विभिन्न मंदिरों के। पदाधिकारी ने अतिथियों का सम्मान किया। सम्मान की प्रारंभ में आचार्यश्री के चित्र अनावरण एवं दीपक प्रज्वलन अतिथियों के द्वारा संपन्न हुआ। मंगलाचरण श्रीमती स्नेह स्नेह छाबड़ा ने प्रस्तुत किया। मूक बधिर बच्चों द्वारा राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत प्रस्तुति दी गई, जिससे सभी ने सराहा। आयोजन में श्री सौरभ ठोलिया जयपुर, ब्रह्मचारी जिनेश मलया इंदौर, कवि चंद्रकांत जैन भोपाल एवं श्री पृयेश गोंदिया का सम्मान किया गया। इस अवसर पर आगे ऑनलाइन आयोजित किए जाने वाली प्रतियोगिता अंग्रेजी भाषा का भ्रमजाल का विमोचन किया गया तथा इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए 15 सितंबर तक लोगों का आह्वान किया गया। वतन की उड़ान प्रतियोगिता की परिकल्पना करता एवं संचालक सौरभ भैया जयपुर ने इस अवसर पर प्रतियोगिता का आयोजन पर प्रकाश डाला एवं बताया कि भारत देश में अंग्रेजी शासनकाल के दौरान किस कदर लूट कर असंख्य राशि की सामग्री अंग्रेज अपने देश को ले गए।
उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में प्रमाण सही जानकारी प्रस्तुत की गई है, जिसे प्रत्येक भारतवर्ष के नागरिक को पड़ना चाहिए एवं देश की वास्तविक स्थिति के बारे में सचेत होना चाहिए। आयोजन समारोह समिति के सदस्य श्री प्रकाश मोदी, अध्यक्ष सकल दिगंबर जैन समाज, वरीष्ठ समाजसेवी पवन जैन डोंगरगाव द्वारा अतिथियों का स्वागत किया गया। समारोह की विशिष्ट अतिथि श्री बृजमोहन अग्रवाल ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कर्नाटक से पधारे श्री वीरेन्द्र हेगड़े जी का छत्तीसगढ़ की धारा पर छत्तीसगढ़ वासियों की ओर से हार्दिक अभिनंदन एवं स्वागत किया। उन्होंने कहा कि श्री हेगड़े जी का व्यक्तित्व ये पूरे भारतवर्ष नहीं एवं पूरे विश्व में जनहितकारी कार्यों के लिए प्रख्यात है।
उनके द्वारा किए गए लोक कल्याणकारी यों की सर्वार्थ प्रशंसा होती है। छत्तीसगढ़ की धरा पर उनके पधारने से हम सभी गौरान्वित हुए हैं। मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए श्री वीरेन्द्र हेगड़े जी ने कहा कि उन्हें छत्तीसगढ़ के इस आयोजन में आने से हार्दिक प्रसन्नता हुई है। देश के हित में आयोजित की गई वतन की उड़ान प्रतियोगिता की प्रतिभागियों को सम्मान करके एवं शिक्षकों का सम्मान करके उन्हें बेहद खुशी हुई है। उन्होंने इस आयोजन के आयोजकों एवं सभी सहयोगी जनों का हार्दिक। धन्यवाद ज्ञापित किया। मंच का संचालन कवि श्री चन्द्र सेन भोपाल द्वारा किया गया। समारोह की विशेष पुण्यार्जक श्री विनोद जैन बड़जात्या द्वारा आयोजन में आये सभी अतिथियों प्रतिभागियों का हार्दिक धन्यवाद आभार प्रकट किया गया। प्रदीप कुमार जैन, संपादक, विश्व परिवार।
यह सिर्फ आमंत्रण सूची हैं प्रतियोगिता परिणाम (आपका स्थान) 5 सितंबर कार्यक्रम में घोषित होगा
आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ
विजेता सूची डाउनलोड करें
👇👇👇👇
https://vidyasagar.guru/files/file/384-1
वतन की उड़ान विजेता पुरस्कार वितरण समारोह
77 विजेताओं की सूची
ऑनलाइन वतन की उड़ान संघोष्टी प्रारंभ
https://vidyasagar.guru/blogs/entry/3294-post/
प्रतियोगिता प्रारंभ हो चुकी हैं , आप सभी इसमे 16 अगस्त तक भाग ले सकते हैं प्रतियोगिता ओपन बुक हैं - आप पुस्तक से पढ़ कर उत्तर दे सकते हैं
अब एक अतिरिक्त दिन आपके पास
गूगल फ़ॉर्म लिंक जिस पर आपको उतर देने हैं
उत्तर प्राप्त सूची
पंजीकरण करें अगर नहीं किया हो
पुस्तक पढ़ने व डाउनलोड करने के लिए लिंक
वेबसाईट से पढ़े
pdf डाउनलोड करें
भाग लेने की विधि - कुछ प्रश्नों के उत्तर
प्रतियोगिता जानकारी
भारत को भारत ही बोलो, इंडिया नहीं का नारा देने वाले राष्ट्रहित चिंतक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की महती कृपा एवं आशीर्वाद से ७७ वें स्वतंत्रता दिवस पर जन-जन में भारतीय इतिहास एवं भारतीयता के प्रति जागरूकता लाने के साथ-साथ राष्ट्र के प्रति समर्पण, सजगता एवं सदभावना बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित हो रही हैं "सोने की चिड़िया एवं लुटेरे अंग्रेज" (लेखक सुरेन्द्र नाथ गुप्ता) पर आधारित विशेष ओपन बुक प्रतियोगिता
वतन की उड़ान प्रश्न प्रतियोगिता
जिसके माध्यम से प्रत्येक भारतीय को मिलेगा
भारत का इतिहास किस प्रकार से रचा गया एवं
किस प्रकार लोगों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया
को जानने का सुनहरा अवसर
पुस्तक कैसे पढे ?
वेबसाईट से पढ़े ( in process)
pdf डाउनलोड करें
पुस्तक मँगवाएँ ( बड़ा फॉन्ट a 4 साइज़ )
वतन की उड़ान ओपन बुक प्रश्न प्रतियोगिता हेतु
पुस्तक- सोने की चिड़िया व लुटेरे अंग्रेज प्राप्ति स्थान आप निम्न स्थानों से पुस्तक ले सकेंगे ( 27 / 28 जुलाई से )
अतिशय क्षेत्र चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ 94255-63160
मोनू पंच मेठ औषधि रायपुर 96444-06022
डा० विशाल • डेंटल कालेज बिलासपुर 9893271003
पंच वालयति मंदिर ए.वी. रोड इंदौर 8989505108
उदासीन आश्रम एम०जी० रोड इंदौर 94254 78846
वर्षी गुरुकुल मढ़िया के सामने ब्र जिनेश जबलपुर 9424690607
नंदीश्वर जिनालय लाल घाटी भोपाल इंजी. पंकज 94253 74897
मुनि श्री अजित सागर जी ससंघ / मुनि श्री निर्दोष सागर जी ससंघ / जैन विद्यापीठ भाग्योदय तीर्थ सागरअमित भैय्या 9340464632
वेबसाईट विद्यासागर डाट गुरु (डिजिटल कौशल) सौरभ जैन जयपुर 96940-78989
विराजमान अक्षय सागर मुनि संघ मीरा रोड भायंदर मुम्बई वेस्ट, ब्र. जय वर्मा भैया 70288-49108
विराजमान प्रमाणसागर मुनि संघ गुणायतन संजय कुमार सम्मेद शिखर जी 89692-74940
विराजमान नि. पू. सुधासागर जी क्षु.गंभीर सागर जी चातुर्मास स्थल एम.डी. कालेज हरी पर्वत आगरा 9897958176 (राजेश)
आर्यिका पूर्णमति माता जी ससंघ चातुर्मास स्थल अहमदाबाद कमल जी कोठारी 9351468484
अपनी प्रस्तुति निम्न गूगल फॉर्म पर अपलोड करें
https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSeP5NgeZYiG-eEsi7Se9tqZgTTiUCr0ljiqLleLD4Pin4h53w/viewform?usp=sf_link
व्रती 92 वर्षीय प्रेमचंद जैन कुप्पी वाले छतरपुर (म.प्र. ) की समाधि संपन्न
चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़)। विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में सप्तम प्रतिभाधारी श्री प्रेमचंद जी (छत्तरपुर 7.प्र.) की सल्लेखना
आज 19अगस्त शनिवार प्रातः 7 बजकर 21 मिनिट पर महामंत्र जप करते हुए संपन्न हुई। सातूत्य हो कि छतरपुर वाले विगत 15 दिन पूर्व गुरुदेव के चरणों में पहुंचे थे व सल्लेखना की प्रार्थना की। गुरुकृपा से उन्होने इस मृत्यु महोत्सव को प्राप्त किया 10 निर्जला लगातार उपवास के साथ।
क्षुल्लक 105 श्री आल्हादसागर की महाराज जी की समाधि सांय 4 50 पर डोंगरगढ़ में हुई
🙏समाधि मरण सूचना 🙏
अपडेट न्युज डोंगरगढ
तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी डोंगरगढ़ की पावन पुण्यधरोवर में समाधिमरण प्राप्त
संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महामुनिराज के कर कमलों से तीर्थ क्षेत्र चन्द्रगिरी डोंगरगढ़,(छ.ग) में बारामती, महाराष्ट्र के निवासी 98 वर्षीय ब्र.वालचंद काका संघवी(दशम प्रतिमाधारी आल्हादसागर जी) की क्षुल्लक दीक्षा सम्पन्न हुई थी
क्षुल्लक श्री अल्हाद सागरजी महाराजजी को आज दोपहर 4:50 मी.पर समाधिमरण प्राप्त हुआ
🙏ॐ अर्हम् 🙏
डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़
शुक्रवार 5 अगस्त मूकमाटी रचयिता आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के कर कमलों से चंद्रागिरी तीर्थ डोंगरगाढ़ (छ.ग) में प्रथम बार दीक्षा संपन्न हुई।
98 वर्षीय श्रावक वालचंद जी संघवी बारामती निवासी (पूना) अपने सल्लेखना के पथ पर विगत 1.5 माह से गुरु \चरणों में साधना रत है आज दोपहर 2.30 बजे 5 अगस्त शनिवार को गुरुदेव ससंघ सान्निध्य में यह मांगलिक कार्य संपन्न हुआ व क्षुल्लक जी के लिए कमंडल कटोरा चांदी का व परिमार्जन हेतु हथकरघा का मुलायम कपड़ा प्रदान किया गया उपस्थित सभी जनों ने आचार्य श्री की जयकारा के साथ नये क्षुल्लक 105 श्री आल्हादसागर की जय बोलकर इस पवित्र कार्य कीअनुमोदना की।