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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

सन्मति जैन

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  1. जन्मी पर खड़े होकर *आसमा* को छू लिया तुमने... बंधिग्रह में *चरखे* चले दिया तुमने .... *प्रतिभाओं* के नए प्रतिमान गड़ने को हो चिंतित... *हिमालय* को भी बौना बना दिया तुमने।। 🙏🙏🙏🙏🙏 चरण सेवक डॉ विद्या जैन (इटारसी)
  2. यह पत्र एक भक्त ने अपने देवता को बड़े ही भाव से लिखा है आशा है यह पत्र उस देवता तक पहुंच जाए।। ●●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●● प्रेष्य *आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज* मु•पो• सागर (मध्यप्रदेश) भारत 🙏🙏🙏🙏 प्रेषक *डॉ • विद्या जैन* इटारसी विश्व🌎 के अनूठे आश्चर्यहो आप, यह क्या कर रहे हो, प्रकृति🌋 की रोद्रता को यूं कुचल🦶🏻 रहे हो आप। यह मत भूलो मेरे देवता, की आप विश्व🌎की धरोहर हो, पुरातत्व की तरह हमारा अधिकार बना रहने दो, धरा के देवता।। ●●▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬●●
  3. फिर उठी मेरी कलम🖊 लिख डाली इस युग की रामायण जिसमें वितरागी श्री राम:- *आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज* एवम् शबरी :- *गणनी प्रमुख ज्ञान मती माताजी* के रूप में ।। ✒ *डॉ विद्या जैन* 🖊 शबरी श्री राम से मिलने आई, श्रद्धा के बेर🍈 झोली भर लाई, चंदना ने भर👁 नेत्र👁 वीर को देखा, दिया था आहार खिची 📏स्मरती रेखा, न जाने कब होंगे 🙏दर्श🙏 दुबारा, स्मरती पटल का खुला है ⛩द्वारा⛩, 🦵🦵बिहार🦵🦵 करने का मन नहीं होता, 👣चरणों 👣में बैठें यही शांति का श्रोता, सरिताए सिंधु में ही मिलती हैं, 🌅प्रातः काल 🌄की 🌷कलियां🌷 खिलती है, 🌍प्रथ्वी🌎 के दो छोर मिलन की बेला🕰, युग इतिहास लिखेगा अद्भुत था यह 🎡मेला🎢।। कवित्री:- **डॉ विद्या जैन* *इटारसी** *निवेदन* :- इस कविता को बीना काट झाट कर इतने आगे बढ़ाए ताकि एक भक्त कि भक्ति इस कविता के रूप में गुरु तक पहुंच जाए।। 🙏🙏🙏🙏
  4. गुरुजी ने कल जो लीला दिखलाई उसे देखकर मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा और उठी कलम✒ लिख डाली कुछ पंक्तियां।। *डॉ ० विद्या मैडम🖊 (इटारसी)* आज पुनः रामायण दुहराई, बिन मांगे नाव🛶 शरण में आई, चौदह 💰करोड़💵 का लालच छोडा , हुआ अहिंसक 🐄मन को मोड़ा, राम ने अहिल्या 🛶उपल की कीनी, तुमने 🙏नाव अहिंसक किनी।। दोहा:- देवगढ़ में चरण👣 पखारे आपके फिर बैठाया 🛶नाव, नदी 🚤नाव संयोग है आए मुंगावली गांव।। लेखिका:- डॉ ० *विद्या जैन* (रेट. प्रोफेसर) इटारसी(म. प्र) *निवेदन* :- 🙏यह कविता *मुंगावली जैन समाज* के लिए है एवम् अगर आप चाहे तो यह बात गुरुजी तक पहुंचाए।। यह कविता में संशोधन करके गुरु के प्रति मेरी भावना को ठेस न पहुचाएं।।
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