गुरुजी ने कल जो लीला दिखलाई उसे देखकर मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा और उठी कलम✒ लिख डाली कुछ पंक्तियां।।
*डॉ ० विद्या मैडम🖊 (इटारसी)*
आज पुनः रामायण दुहराई,
बिन मांगे नाव🛶 शरण में आई,
चौदह 💰करोड़💵 का लालच छोडा ,
हुआ अहिंसक 🐄मन को मोड़ा,
राम ने अहिल्या 🛶उपल की कीनी,
तुमने 🙏नाव अहिंसक किनी।।
दोहा:-
देवगढ़ में चरण👣 पखारे आपके
फिर बैठाया 🛶नाव,
नदी 🚤नाव संयोग है आए मुंगावली गांव।।
लेखिका:-
डॉ ० *विद्या जैन* (रेट. प्रोफेसर)
इटारसी(म. प्र)
*निवेदन* :- 🙏यह कविता *मुंगावली जैन समाज* के लिए है एवम् अगर आप चाहे तो यह बात गुरुजी तक पहुंचाए।।
यह कविता में संशोधन करके गुरु के प्रति मेरी भावना को ठेस न पहुचाएं।।