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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

राजेश जैन भिलाई

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  1. बड़े बाबा और छोटे बाबा एवंउनके बड़े समवशरण की इन्द्रों द्वारा अद्भुत भक्ति.... इन दिनों बड़े बाबा के दरबार मे मुनिसंघो, आर्यिका संघो का आगमन प्रतिदिन हो रहा है जब भी आपको पुण्य उदय से अवसर मिले तो अवश्य देखियेगा, कि संघो के आगमन के समय जब समस्त मुनिराज एवम आर्यिका संघ अपने शिक्षा दीक्षा प्रदाता ऋषिराज श्रमणेश्वर आचार्यश्री की परिक्रमा करते है तब लगता है कि चारित्र, तप, त्याग, तपस्या के सुमेरु पर्वत की परिक्रमा ज्योतिषी देव सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र तारे एक साथ कर रहे है समस्त मुनिराजों के मुखमंडल पर दमकता तेज ज्योतिष देव सूरज की किरणों की मानिंद लगता है वहीं श्वेत, धवल वस्त्र में समस्त आर्यिका माताजी ऐसी सुशोभित होती है जैसे साक्षात ज्योतिष देव चन्द्रमा अपनी चांदनी संग सुमेरु पर्वत की परिक्रमा कर रहे हों। अभी तक लाखों श्रावक परिवार ऐसी अद्भुत भक्ति धारा में अवगाहित हो चुके है तो भला स्वर्ग के इंद्र इंद्राणी कैसे दूर रह सकते है प्रतिदिन मुनिराजों आर्यिका माताजी द्वारा भक्ति और सौधर्म इंद्र एवम समस्त इंद्र परिवारों सूरज दादा, चंदा मामा की प्रति दिन गुरुभक्ति देख वरुण इंद्र और मेघकुमार इंद्र से रहा न गया उन्होंने कुबेर इंद्र को समझा बुझा कर अपने संग गठजोड़ कर लिया इन तीनों इन्द्रों ने बड़े बाबा और छोटे बाबा की भक्ति करने से पहले सांगानेर, चांदखेड़ी, बिजोलिया से भक्ति आरम्भ की, वरुण देव अपने धुंआधार गति से बढ़ रहे थे वहीं कुबेर देव बड़ी उदारता से रत्नों की वर्षा कर रहे थे यह बात अलग है कि वे रत्न धरती में पहुचने तक ओले की शक्ल में बदल जाते थे राजस्थान से लेकर मप्र और फिर बड़े बाबा के दरबार मे भक्ति में ऐसे बरसे की आहार चर्या के समय पड़गाहन में भी डटे रहे। स्वर्ग वापसी के समय तीनों इंद्रदेव ने छतीसगढ़ के चन्द्रगिरि ओर अमरकंटक में भी अपनी अद्भुत भक्ति का अनूठा प्रदर्शन किया था स्वर्ग के नारद मीडिया के अनुसार सुना गया है कि धनश्री कुबेर इंद्राणी और वरुण व मेघकुमार इंद्र की इंद्राणी ने अपने महलों के द्वार बंद कर कोप भवन में चली गईं है उन्हें शिकायत है कि जब अनेकों विशाल मुनिसंघ आर्यिका संघ बड़े बाबा के दरबार हेतु विहार कर रहे है तब तो ऐसे मौसम में वरुण कुमार मेघकुमार इन्द्रो और सबसे बड़ी बात कुबेर इंद्र को वहां क्यो जाना था? कम से कम रत्न वृष्टि से तो बचना था। और ज्यादा ही भक्ति भाव छलक रहा था तो मध्य रात्रि ही जाना था। ताकि ऐसे ऋषिराज, यतिराजो, आर्यिका माताजी पर उपसर्ग करने से तो बच जाते बेचारे तीनों इंद्र भीगती बरसात और कड़कड़ाती ठंड में बाहर खड़े है..... शब्दआंकन .राजेश जैन भिलाई . 🌈🌈🌈🏳‍🌈🏳‍🌈🌈🌈🌈
  2. यूं तो अक्सर बड़े बाबा के दर्शन के भाव बनते है और फिर जब बड़े बाबा के समवशरण में छोटे बाबा विराजित हो तो मन मचलने ही लगता है कुंडलपुर की ओर..... संयोग से सपरिवार कुंडलपुर के दर्शन का पुण्ययोग भी बन गया, ज्योहीं वाहन पटेरा से आगे बढ़ा थोड़ी ही देर में सड़क की दोनों ओर अंतहीन समतल मैदान में इंजियनिरो की टोलियां मूर्त रूप देने जुटी हुई थीं वहीं कुंडलपुर के प्रथम प्रवेश द्वार के पहले ही तीनों ओर के मुख्य मार्ग से कुंडलपुर जिनालय तक 6 लेन सड़क मार्ग निर्माण युद्धस्तर पर चल रहा था दोनों ओर की सड़कों में मुरम को पाटते, मंजीरे की ध्वनि वाले, रोडरोलर मदमस्त गजराजों की मानिंद डोल रहे थे। वही रेत, गिट्टी, शिलाओं के भार से दोहरे हुए दर्जनों विशालकाय डंपर ऊबड़खाबड़ कच्चे रास्तों पर सरपट भागे चले जा रहे थे। वहीं कृषि कार्यो एवम ग्रामीण एवम कस्बों के बहुउद्देश्यीय वाहन पचासों टेक्टर भी इस महा महोत्सव में अपना योगदान दे रहे थे। निर्माणाधीन सड़क के दोनों ओर बिजली के के खम्बों में मोटे मोटे केबलों से सम्पर्क जोड़ा जा रहा था वही दर्जनों जेसीबी, उखाड़े गए बिजली के खंबे, बड़ी बड़ी शिलाओं, सीमेंट के विशाल पाइप को अपनी आधुनिक सूंड में लपेटे तेज गति से दौड़ रहे थे। कुछ दूर आगे वर्कशॉप में सैकड़ो शिलाओं पर चलने वाले कटर अपने पाश्चात्य संगीत गुंजा रहे थे इस बार शिल्पकारों के साथ उनके घर की महिला सदस्य भी अपने शिल्प का प्रदर्शन कर घोषित कर रही थी कि बड़े बाबा के बड़े निर्माण में हमारी भी छोटी सी भूमिका है। कुंडलपुर के प्रमुख प्रवेशद्वार पर प्रवेश करते ही मान स्तम्भ के दर्शन हुए जब दाहिनी ओर नजर गई तो वर्धमान सरोवर के सामने वाले सभी भव्य जिनालयों के दर्शन हो रहे थे जिनालयों के सामने ही अलग, अलग समूहों में आर्यिका माताजी जाप्य, स्वाधाय एवम श्रावक, श्राविकाओं की जिज्ञासा का समाधान कर रहीं थी समूचा परिसर ऐसा लग रहा था कि श्रमण भास्कर आचार्यश्रेष्ठ के सामने भव्य चांदनी बिखरी हुई हो सन्त भवन में प्रवेश के पूर्व सैकड़ो दर्शनार्थी आचार्यश्री के दर्शन पाने लालायित थे, वहीं दूसरी और सैकड़ो लोग आचार्यभक्ति के लिये अपना स्थान सुरक्षित कर अंगद के पैर की तरह जम गए थे। कुछ ही देर में कुछ शोर सा हुआ बिटिया ने संकेत किया तुरन्त द्वार पर आओ.... लेकिन स्थान छोड़ने पर इस कीमती जगह पर दूसरे का कब्जा होने की आशंका थी,अबकी बार संकेत पाकर द्वार की ओर लपका, जिनालय से संध्या दर्शन कर श्रमणेश्वर आचार्यश्री मंद मंद मुस्कान लिये सन्त भवन की ओर आ रहे थे सैकड़ो कंठो ने गुरुचरणों में अनवरत नमोस्तु नमोस्तु... निवेदित किया गुरुदेव ने सभी पर वरदानी करकमलों से आशीष वर्षा की, मैंने भी नमोस्तु निवेदित किया संयोग से ऋषिराज आचार्यश्री की पलकें उठी और अधरों पर मोहक मुस्कान लिये देवदुर्लभ आशीर्वाद बरसा दिया लगा कि स्वर्गो की सारी सम्पदा एक पल में ही मिल गई। अल्प आहार के बाद बड़े बाबा की बहु प्रसिद्ध आरती हेतु बाबा के दरबार आ गए पारम्परिक ढोलक और मंजीरों की थाप से तन मन झूमता रहा कब घड़ी की सुइयां उर्ध्व गमन कर गई पता ही न चला बड़े बाबा के दरबार से बाहर आकर नींचे जाने से पहले नवनिर्मित शिखर को प्रणाम कर ही रहा था तब सैकड़ो फुट उतुंग शिखर पर विशाल क्रेनों पर दर्जनों शिल्पकार कड़कड़ाती ठंड में कार्य कर रहे थे स्मरण हो आया बहु प्रचलित वाक्य बड़े बाबा और छोटे बाबा के सभी कार्यों में स्वर्ग के देवताओं की मुख्य भूमिका रहती है और अब तो पूरा भरोसा हो गया कि बड़े बाबा के विशाल शिखर पर स्वर्ग के देव निर्माण कार्य कर रहे है। शब्द भाव संकलन राजेश जैन भिलाई अगर आप भी कुंडलपुर जाके आए हैं, तो अपनी अनुभूति इस पोस्ट कमेन्ट कर अवगत कराए (महामहोत्सव अनुभूतियाँ : आपकी अनुभूति साझा करे हमारे साथ)
  3. यूं तो जब जब आचार्यश्री के पावन चरण चलायमान होते है अधिकांश तीर्थो, समाजों, गुरुभक्तों की धड़कनें बढ़ जाती है अमरकंटक में जन्मी मेकल कन्या कही जाने वाली नर्मदा रेवा नदी की अविरल धारा और गुरुचरणों की दिशायें सदा एक सी रही है। फिर चाहे अमरकंटक हो जबलपुर या नर्मदा का नाभिकेंद्र नेमावर ही क्यों न हो वही आचार्यश्रेष्ठ के सानिध्य में बहुत कुछ पाने वाले सागर का भी अपना गौरवशाली इतिहास है सन 1980 के पूर्वतक तक हम जैसे साधारण श्रावकों की छोड़ो बड़े बड़े पण्डित विद्वान भी ग्रँथराज षट खण्डागम के ग्रन्थ धवलाजी के मात्र दर्शन कर अतृप्त रहते थे लेकिन जब 1980 में अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर श्रुत पंचमी तक सागर के मोराजी में षट खण्डागम धवला जी की वाचना में देश के मूर्धन्य विद्वान पण्डित जन अपने को पुण्यशाली मान उपस्थित रहते थे जन समुदाय के समक्ष जब जैनागम के इन ग्रन्थों का वाचन होता तब सभी आत्मविभोर हो कर झूम उठते इन युवाचार्य की निर्दोष, त्याग, तपस्या, साधना देख सागर एवम आस पास के युवा युवतियां ऐसे रीझे कि सब कुछ छोड़ इनके संग हो लिए और दर्जनों मुनिराज अर्धशतक आर्यिका माताएं आचार्यश्री के संघ में सुशोभित है संत शिरोमणि आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागर महाराज का बिहार इन दिनों रेहटी, सलकनपुर के पास चल रहा है रविवार को सागर के सैकड़ों श्रद्धालुओं ने गुरुदेव के दर्शन किए और श्रीफल समर्पित किया। भाग्योदय और ऐतिहासिक सर्वतोभद्र जिनालय सागर के लिये आचार्यश्री के अतिशयकारी,आशीर्वाद की अनमोल भेंट है जहां एक ओर पिछले 22 वर्षों से चातुर्मास की आस लगाए प्यासा सागर चातक वत शरदपूर्णिमा के चंदा के सानिध्य पाने लालायित है आचार्यश्री के चरणों की आहट से इनदिनों सागर के गुरु भक्तों के गुरुचरणों के सानिध्य के भावों के ज्वार का उफान चरम पर है। लेकिन नर्मदा तट पर अवस्थित तिलवारा जबलपुर के नए नवेले पूर्णायु को लगता है कि पूर्णायु इतिहास के पन्नो पर हजारों वर्ष तक चिरायु बने रहने के लिये आचार्यश्री के चातुर्मास छत्रछाया जरूर मिलेगी वैसे इन अनियत विहारी श्रमणेश्वर के चलायमान चरणों की थाप का कोई आंकलन नही कर सकता बड़े बाबा के नेटवर्क से सीधे जुड़े इन छोटे बाबा के चरण किस ओर बढ़ जाए कहा नही जा सकता... भाव शब्द प्रस्तुति ●राजेश जैन भिलाई ● *क्या कहता हैं आपका आनुमान - कहाँ होगा संतशिरोमणि का चातुर्मास* सुन लो सुन लो गुरुवर, कर रहे भक्त यही पुकार, इस बार हमारे नगर में हु गुरु आपका चातुर्मास | अपनी भक्तिमय भावना कमेंट में जरूर प्रकट करें ( लिंक में लिखें )
  4. _21 फरवरी को इंदौर में *अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस* पर *परमपूज्य आचार्यश्री ससंघ के सानिध्य* में विशेष आयोजन हुआ इस आयोजन में *अनेकों विख्यात शिक्षाविद, हजारों की संख्या में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के तीन सौ से अधिक विद्यालय के जैन अजैन संस्थापको, प्राचायो, विशिष्ट शिक्षकों* ने भाग लिया_ _इस अवसर पर *आचार्यश्री ने कहा कि हमारी मातृभाषा हमारी सम्वेदनाओं का माध्यम* है।_ _*आचार्यश्री ने अंग्रेजी माध्यम का भ्रमजाल नामक पुस्तक* का कई बार उल्लेख किया एवम इसे *सभी जनों को पढ़ने का संकेत* भी किया।_ _*प्रवचन के 19 वे मिनट* के बाद सुनें कि *चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इजरायल ने बिना अंग्रेजी का स्पर्श किये अपनी मातृभाषा में पूरे विश्व मे अपना ध्वज* लहराया।_ _इसी *प्रवचन 32 वे मिनट के बाद आचार्यश्री* ने बताया कि सौ डेढ़ सौ वर्ष पूर्व *भारतीय भाषा मे विज्ञान विषय पर शोध एवम अनुसन्धान हुआ था जिसमे 500 विमानों को तैयार किये जाने पर अनुसन्धान किया गया था इस शोध एवं अनुसन्धान की विशेषता थी कि प्रत्येक विमान को तीस से भी अधिक प्रकार से बनाया जा सकता है।*_ _प्रवचन के ठीक एक घण्टे बाद *मातृभाषा हिंदी को अपनाने वाले सी ए अध्ययन संस्थान के मुखिया का उल्लेख* किया जिसके *मात्र हिंदी में अध्ययन करवाने से उस संस्थान में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की एकाएक संख्या* बढ़ गई।_ _मैंने *इतने वर्षों बाद पहली बार देखा कि आचार्यश्री ने शिक्षाविदों, प्राचार्यो, शिक्षण संस्थान के संस्थापको संचालकों की जिज्ञासा का सारगर्भित समाधान* दिया।_ _मेरा *निजी आग्रह* है कि अपने व्यस्त समय मे से कुछ *समय निकाल* कर *आचार्यश्री के मातृभाषा पर ऐतिहासिक हृदयस्पर्शी प्रवचन अवश्य सुनें* न केवल सुने बल्कि सभी को सुनने का आग्रह भी इस आशा से करें कि हमारे एक छोटे से प्रयास से यदि *मातृभाषा को उच्च स्थान* मिलता है तो यह *हमारे लिये गर्व की बात* होगी_ _आपका अपना_ *_• राजेश जैन भिलाई •_* 21 फरवरी 2020 *अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस* आचार्यश्री विद्यासागरजी प्रवचन एवं कार्यक्रम (इन्दौर) आचार्य श्री विद्यासागर मोबाइल एप्प डाउनलोड करें | https://play.google.com/store/apps/details?id=com.app.vidyasagar
  5. माँ आर्यिका रत्न १०५ पूर्णमति माताजी द्वारा रचित भजनों कि श्रंखला के भजन को सुन मन आनन्दित हो झूम उठता है इन भजनों के शब्दों भावो और उच्च स्तरीय संगीत सुनकर पैर अपने आप थिरक उठते है आप सभी एक बार अवश्य सुने.
  6. हमारे पहनावे हमारे भोजन बेकार साहित्य का हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है मैंने आचार्यश्री के प्रवचन सुने मन आनन्दित हो गया मेरा निजी आग्रह है किएक बार जरुर सुने अन्यथा आप आचार्यश्री के विशाल चिंतन से वंचित रहेगे
  7. छोटे बाबा बड़े बाबा से ज्यादा दिन दूर नही रह पाते शायद इसी लिए बड़े बाबा कि ओर ही विहार करेंगे
  8. कुछ "बड़ा " होने की सुगबुगाहट या फिर अटकलें....... विगत दिनों हमारे यहां पुलवामा में हुई अमानवीय आतंकी घटना की प्रतिक्रिया की आशंकाओं को देखते हुए विश्व की नज़र भारत की ओर लगी है शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका के मुखिया ट्रम्प भी कह चुके कि कुछ बड़ा होने जा रहा है। इन दिनों सुख चैन सरिता तट पर अवस्थित अतिशयक्षेत्र बीना बारह में श्रमणोत्तम आचार्यश्री ससंघ विराजित है कुछ दिनों से इसी दिशा में पूज्यवर मुनिराजों सहित वन्दनीया आर्यिका संघो के सतत अनवरत सरितावत प्रवाहमान विहार आगामी दिनों में इस अतिशय क्षेत्र में महाकुम्भ का संकेत दे रहे है। देश विदेशों के जैन समाज के बुजुर्गों से लेकर किशोरों तक और पढ़ी लिखी उच्चशिक्षित बिटिया लोगो से लेकर अनपढ़ या कम पढ़ी लिखी लेकिन अनुभवी माँ लोगो मे सुबह सन्ध्या एक ही चर्चा है कि आगामी इस महाकुम्भ में कुछ बड़ा होने जा रहा है। एक ओर बहुसंख्यक वर्ग का मानना है कि बरसों से प्रतीक्षित दीक्षा के प्रत्याशियों को शुभ सूचना मिल सकती है और इस गुरुकुल और विशाल आकार ले सकता है। वही दूसरी ओर कुछ लोग दबी जुबान से कहते पाए जा रहे है कि इन दिनों आचार्य प्रवर क्षमा, संयम, तपस्या के अस्त्र शस्त्र के संग बचे हुए कर्म सैन्यबल को नेस्तनाबूद करने की ठान चुके है सो सम्भव है कि कुछ उपसंघो को निर्यापक जिम्मेदारी मिल जाये। अब ये तो बाते है और बाते तो बातों ही बातों में बनती रहती है इन बातों का क्या ठिकाना इन ज्ञानविद्या के विशाल प्रशांत महासिंधु की थाह कोई जान पाया है सुनते है कि इन दिनों अमरकंटक की मुडेरों में कौओं की टोलियों की कांव कांव बढ़ने लगी है सो छतीसगढ़ भी इसी आशा में हर्षित है कि हमारे यहां भी अच्छे दिन...... आ सकते है। ◆ राजेश जैन भिलाई ◆ 🌈🌈🌈🏳‍🌈🏳‍🌈🌈🌈🌈
  9. वज्र पाषाण हृदयी, निर्मोही, निर्दयी, निष्ठुर, निर्मम, आचार्यश्री...... प्राणिमात्र के हितंकर, दयावन्त, श्रमणेश्वर,साक्षात समयसार, मूलाचार के प्रतिबिम्ब समस्त चर ,अचरो के प्रति आपकी दया, करुणा, हम मानवों में ही नही स्वर्गों के इंद्रो देवताओं में भी जगजाहिर है आप अनुकम्पा के विशाल महासागर अथवा चारित्र के उत्तुंग हिमालय जाने जाते हो ऐसे में उपरोक्त शीर्षक में आपके प्रति कठोर सम्बोधन लिखते समय मेरी उंगलियां कांप रही है लेकिन मैं क्या करूं जो है, सो है...... मेरे आपके हम सबके सामने है। भला कभी ऐसा होता है क्या..... जो पूज्यवर, यतिवर, गुरुदेव अपने दिव्यदेह के प्रति कर रहे है...... अक्सर कहा जाता है कि जो अपने प्रति सहयोग करे उसका ध्यान रखना चाहिये अपने अनुचर, सहयोगी, उपकारी पर भी करुणा करना चाहिए लेकिन पिछले इक्यावन वर्षो से आचार्यश्री अपनी दिव्यदेह के प्रति ज़रा से भी करुणावान, दयालु नही दिखते चाहे ग्रीष्मकाल में सूरजदादा 48 डिग्री तापमान पर भी कीर्तिमान गढ़ने ततपर हो वह आपके सामने पानी पानी हो जाता है | लेकिन आप अपने करपात्र में दूध, फल, मेवा तो बड़ी दूर की बात, कुछ ही अंजुली जल और कुछ गिने नीरस ग्रास का आहार उदर तल तक तो दूर कंठ से उदर तक ही नही पहुचता और आपके आहार सम्पन्न हो जाते है। शीतकालीन तुषारी ठंड में भी आप अपनी दिव्यदेह को 3 से चार घण्टे विश्राम करने निष्ठुर पाटा ही देते हो। हम सभी पथरीले, हठीले, कटीले तपते विहार पथ में आपके कोमल कोमल लाल लाल, मृदुल पावन चरणयुगलो को छालों युक्त, रक्तरंजित देख चुके है और आप ऐसे निर्दयी है कि उनकी ओर नज़र तक नही उठाते और आज हम सबने देख और सुन भी लिया कि पिछले दिनों से आपकी दिव्यदेह जर्जर हो चुकी है सप्ताह हो चुके दिव्यदेह के अस्वस्थ हुए और आपके निराहार के लेकिन आप तो ठहरे निर्मोही, अनियतविहारी, वीतरागी महासन्त आपको भला कोई रोक पाया है और वह बेचारा रोकने का विचार ही कैसे कर सकता है...... क्योंकि इन दिव्यदेहधारी ने अपनी दिव्यदेह के माता पिता भैया बहनों की नही मानी तो फिर हम दूसरों की क्या बिसात.... हमने माना कि चौथेकाल में ऐसे ही श्रमण होते थे उस काल मे वज्र सहनन क्षमता भी होती थी लेकिन इस महा पंचमकाल में जर्जर, वार्धक्य, दिव्यदेह के संग आपकी यह साधना, तपस्या सन्देश दे रही है कि कुछ ही भवों में दिव्यदेह धारी आचार्यश्री तीर्थंकर बन समोशरण में विराजित होंगे ऐसे कालजयी महासन्त के पावन चरणयुगलो में हृदय, आत्मा की असीम गहराइयों से कोटि कोटि नमोस्तु....... हे गुरुदेव! मेरी भी सुबुद्धि जागे काश..... मैं भी आपके समोशरण बैठ अपना भी कल्याण कर सकू..... क्षमाभावी एक नन्हा सा गुरुचरण भक्त..... राजेश जैन भिलाई
  10. कठिन परीक्षा और मोक्षपथ के कठोर परीक्षक...….. कड़कड़ाती, कम्पकपाती, सुई सी चुभोने वाली तुषार सी बर्फीली हवाओ की सहेली महारानी "ठंड" महादेवी जो हिमालय से उतर कर कुछ गिने चुने दिनो के लिए अपने मायके उत्तर भारत में आई है आरम्भ के कुछ दिनों में तो बड़ी संस्कारी आज्ञाकारी नई बहु सी लगती है लेकिन कुछ ही दिनों में अपने तेवर दिखाते दुर्दान्त आतंकवादी सी लगने लगती है यहां तक इसके रौब ख़ौफ़ देख बेचारे सूरजदादा भी से डरे सहमे से एक कोने में दुबके रहते है। कल जब आधी रात में मेरी नींद खुली तो.…. दोहरे तिहरे कम्बलों की परतों से झांकते हुए.... डरते डरते मैंने ठंड से कहा हे माते! तू तो महीने भर से देश मे बढ़ती, महंगाई, आतंकवाद भ्रष्टाचार सी पसर कर बैठ ही गई। तूने कभी विचार किया कि इस समय यथाजात दिगम्बराचार्य,आचार्यश्री लकड़ी के निष्ठुर पाटे पर अपनी आत्मा में लीन साधनारत विराजित है और तू अनुशासनहीन गुरुभक्त की तरह बिना अनुमति लिए बिना कपाट खटखटाए, खिड़की दरवाजो के छिद्रों से चोरों की तरह कक्ष में घुस जाती हो ऐसा पाप क्यो करती हो तुम उनके पास जाती ही क्यो??????.......। मुझ पर तेज हवा के तीर फेकते हुये ठंड ने आंखे तरेरते हुए कहा हे! "कम बल " वाले "कंबल " के दास अरे बावले ! तुम क्या जानो....मैं तो सिर्फ उनके दुर्लभ दिव्य दर्शन करने आती हूँ..... मेरी परदादी परनानी बताया करती थी कि चौथे काल मे दिगम्बर मुनिराज कैसी तपस्या करते थे ऐसे चौथेकाल के ऋषिराज की तरह साक्षात आचर्यश्री के दिव्य दर्शन कर आंखे, मन, हृदय अतृप्त ही रहता है.... मैं तो ठगी ठगी सी वहीं ठहर जाती हूँ उनके दिव्य अतिशयकारी आभामंडल के समीप पहुच कर मेरा जीवन धन्य हो जाता है उनकी साधना तपस्या, कठोर परीक्षक की कठिन परीक्षा देख मैं खुद कांप जाती हूं। और सुन! जब आचार्यश्री आत्मगुफ़ा में तपस्या साधना करने वाले आचार्यश्रेष्ठ जब बाहर आते है तब मुझ पर मोहक मुस्कानों से युक्त आशीषों की ऐसी वर्षा कर देते है मानो मैं उनके चरणों की शिष्या होऊ.....। मैं तो उनके पावन पुनीत चरणों मे लज्जित सी सिर झुकाए बैठी रहती हूँ ऐसे दुर्लभ गुरुचरणों से वापस दूर जाने का मन ही नही करता भला कुछ दिनों के लिए पीहर आई बेटी अपने जगतपिता से इतनी जल्दी दूर कैसे जा सकती है। और सुन तुम जैसे डरपोक भक्तो को डरा कर मुझे बड़ा ही आनन्द आता है। भयानक सी ठंड भरी आधी रात में मुझे डराती कम्पाती वह देवी कब वापस लौट गई पता ही न चला सुबह सुबह बंद आंख नाक गले ने छीकते हुए शिकायत की और कहा ..... मालक इन ठंड देवी से पंगा आप लेते हो भुगतना हमे पड़ता है.... भावाभिव्यक्ति ◆ राजेश जैन भिलाई ◆ विनम्र अनुरोध : कभी मध्यरात्रि में नींद खुल जाए तो हम आप ऐसे चरणों को साक्षात मान नमोस्तु अवश्य करें🙏🏻 🌈🌈🌈🏳‍🌈🏳‍🌈🌈🌈🌈🌈
  11. आज जब मै पूज्यवर गुरुदेव के स्वावलम्बन एवम आत्मनिर्भरता के चिंतन पर आधारित हथकरघा पर विचार करता हूँ तब लगता है कि हथकरघा के बारे में इतना सब कुछ तो वे बचपन से जानते समझते थे जितना हम आज भी नही जान पाते मेरा सभी से आग्रह अनुरोध निवेदन है कि एक बार इस ग्रन्थ का स्वाध्याय अवश्य करे
  12. खजुराहो में आयोजित सयम स्वर्णजयंती आयोजन में आचार्य विद्यासागर डॉट गुरु की पूरी टीम सहित टीम के सक्रिय सदस्य भाई सौरभ जैन को भी आचार्यश्री के समक्ष मंच पर आमंत्रित किया गया था लेकिन शायद वे संकोच वश मंच पर नही आये थे
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