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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि मरण के द्वारा आत्मा का उपकार होता है । साधारणतया मरण किसी को प्रिय नहीं है तो भी व्याधि (रोग), पीड़ा, शोक आदि से व्याकुल प्राणी को ऋण भी प्रिय होता है । अतः उसे उपकार की श्रेणी में ले लिया । जिसने एक बार भी समाधि मरण किया है, ऐसा जीव अधिक से अधिक 7 – 8 भवों में मुक्ति प्राप्त कर लेता है । सर्वश्रेष्ठ समाधि मरण से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है । अतः मरण भी उपकारक है। जीव परस्पर में उपकार करते हैं । जैसे मालिक मैनेजर को वेतन देकर उपकार करता है, मैनेजर भी ईमानदारी से काम करता है तो बिजनेस (व्यापार) में चार चाँद लग जाते हैं अर्थात मालिक को ज्यादा लाभ होता है। यह मैनेजर का उपकार मालिक के ऊपर है। इसी प्रकार गुरू – षिष्य, भगवान – भक्त आदि करते हैं।
  2. चंद्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि अखबार वाले दुनिया की खबर तो लेते हैं लेकिन आत्मा से बेखबर रहते हैं। न्यूज का अर्थ होता है नार्थ, ईस्ट, वेस्ट, साउथ, चारों दिषाओं की खबर को न्यूज कहते हैं। आचार्य श्री ने पद्म पुराण का सीता की अग्नि परीक्षा संबंधी प्रसंग सुनाया और कहा कि अग्नि परीक्षा नहीं थी कर्मों की सही परीक्षा थी वह धधकती अग्नि थी और जैसे ही प्रवेष हुआ वह जल कुण्ड में परिवर्तित हो गया सारी जनता देखते रह गयी और राम भी देखते रह गये और भवन की ओर चले गये। यह दृष्य महत्वपूर्ण था। यह पुण्य की परीक्षा थी । दिल्ली वाले टेªन की टिकिट लेकर आये हैं आने जाने की । ऐसे ही जिस भव में जाना है उसकी आयु बंध हो जाता है। रिजर्वेषन जैसा होता है। इसलिये अच्छे कर्म करते रहना चाहिये जिससे हमें देव आयु, मनुष्यायु का बंध हो । आप भगवान से सब कुछ मांगते हो, आज तक ऐसा नहीं सुना कि किसी ने कहा हो कि मेरा पूरा धन ले लो, यह क्यों नहीं कहते। मांगते तो सब कुछ हो देते नहीं हो। आँखे बंद करके ध्यान करो, भक्ति करो भगवान की सब ठीक हो जायेगा । पुण्य के उदय से रोग, शोक, संकट सब दूर हो जाते हैं। यह ध्यान रखे की हमारे कर्म ही सब करते हैं, पुरूषार्थ के द्वारा आयु कर्म को घटा बढ़ा सकते हैं लेकिन परिवर्तन नहीं होता है।
  3. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की संसारी प्राणी भ्रम के सांथ ही यात्रा करता रहता है | प्रत्येक व्यक्ति अपराधी सिद्ध होता है तो दंड संहिता लागू ही नहीं हो पायेगी | मोक्ष मार्ग में शब्दों और भावों से ही मार पड़ती है | जिसकी दृष्टि में इन्द्रिय विषय है तो आत्मस्थ कैसे कह सकते हैं | केवल ज्ञानी के ज्ञान में अनंतानंत विषय आ रहे हैं वह दूर नहीं होते हैं बस राग द्वेष नहीं करते हैं | भाव होने के बाद भी राग द्वेष नहीं करना यही सही पुरुषार्थ है | मान को रखोगे तो अपमान और सम्मान होगा | मान अधिक हो जाता है तो धरती नहीं दिखती वह आकाश की ओर देखता है | क्रोध, मान, माया, लोभ सम्बन्धी विषय पर प्रकाश डाला गया | मकान में मशीन लगते ही पता चल जाता है धन कहाँ – कहाँ छिपा रखा है | शरीर में भी कहाँ छिपा कर रखा है धन यह भी पता चल जाता है | जब शरीर ही मेरा नहीं है तो हम क्यों चिल्लायें, शांत रहे और इसे ऊपर उठायें, शरीर से काम लो इसको भोग सामग्री नहीं बनाओ |
  4. चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की चित्त में महान विकार पैदा करते हैं इसलिए इन्हें महाविकृति कहते हैं | शराब जीवन ख़राब करती है | भोग की इच्छा पैदा करती है, परिवार को बर्बाद कर देती है, रोगों को उत्पन्न करती है और शरीर को ख़राब कर देती है | सर्वज्ञ की आज्ञा के प्रति आदरवान, पाप भीरु और तप में एकाग्रता के अभिलाषी ये महा विकृतियाँ त्याग करते हैं | इस आज्ञा का आदर करना चाहिए और पालन करना चाहिए नहीं तो संसार के मध्य में पतन हुआ है और होगा | पाप से जो डरता है तथा जो तप में एकाग्रता का अभिलाषी है वह त्याग करें | 6 रसों का भी देखकर क्रमशः त्याग करना चाहिए | साधू आहार में जाते हैं तो नियम / प्रतिज्ञा लेते हैं की इतने घर तक जाऊँगा, एक कलश , श्रीफल , अन्य वस्तु , अन्य रंग के वस्त्र , बालक , वृद्ध आदि करोडो भेद हो सकते हैं | यह विधि आहार से पहले मंदिर आदि में निकलते समय लेते हैं | आहार और शरीर गृहस्थों से राग घटाने के लिए यह तप किया जाता है | विधि मिलती है तो आहार ग्रहण करते हैं नहीं तो उपवास हो जाता है फिर दूसरे दिन ही आहार को उठते हैं, यह वृत्ति परिसंस्थान तप कहलाता है |
  5. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महारज जी ने कहा की जिनेन्द्र भगवान् की भक्ति से प्रलय, भूत पिशाच, विघ्न, शाकिनी, विष का प्रभाव आदि नष्ट हो जाता है | हमारे जन्म – जरा – मृत्यु के कष्ट समाप्त नहीं हो रहे हैं | तृष्णा सर्पिणी की भांति है वह हमारे अन्दर प्रवेश कर रही है | जिनेन्द्र भगवान् का गंधोदक सब रोग, कष्ट हर लेता है, सर्वश्रेष्ठ औषधि है | भावों का खेल है भाव अच्छे रखेंगे तो सब अच्छा हो सकता है | पदम् पुराण में कैकई और दशरथ का दृष्टान्त देते हुए कहा की मान सम्मान की भूख प्रत्येक व्यक्ति में रहती है | संसारी व्यक्ति तो कर्म पर विश्वास करता है पर कर्म नहीं करता है | मन सबसे ज्यादा अविश्वास का पात्र है | संबोधन के लिए अच्छे व्यक्ति की आवश्यकता होती है | करंट एक रहता है जीरो से हेलोजन में प्रकाश अलग – अलग रहता है | आत्मा करंट की भांति है और शरीर बल्ब की भांति है | सब बीज नष्ट हो सकते हैं लेकिन कर्म बीज नष्ट नहीं होते हैं | जो अनुभवी होते हैं उनका अनुभव सुनने से अनुभव बढ जाता है |
  6. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की जब व्यक्ति उठता है प्रातः तो ताजगी महसूस करता है सूर्योदय के कारण और सूर्यास्त के समय बेहोशी जैसी लगती है | एक विषयों की नींद है और एक दिन अस्त होने की नींद है | महान पुरुष विपरीत परिस्तिथियों में भी अपने आपको संयत बनाये रखते हैं | तीन घंटे तक हम कोई कार्यक्रम देखते हैं तो वह याद में बना रहता है | जब स्वाभाव का बोध होता है तो पश्चाताप होता है | हमारी दिशा, दशा भगवान् की भांति हो जायेगी जिस दिन बोध हो जाएगा | दिन और रात की तरह ही जन्म – मरण का सम्बन्ध है | हमारा मन कही न कही से कमजोर रहता है | दुखानुभूती क्षणिक होती है | कथा और गाथा के सही कथाकार भगवान् होते हैं |
  7. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की जिस घोड़े को शब्द के संकेत में चलने , भ्रमण, लंघन आदि की शिक्षा नहीं दी गयी है और चीरकाल तक सुख पूर्वक लालन – पालन किया गया है | वह घोडा युद्ध भूमि में सवारी के लिए ले जाया गया कार्य नहीं करता है | वैसे ही सभी जनों बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहिए | बाहर पढने जाता है क्या खा रहा है, क्या पी रहा है पता नहीं चलता है | विज्ञान के युग में विश्वास नहीं रहा है | करोड़ों रुपयें खर्च हो रहे हैं शिक्षा के क्षेत्र में लेकिन आत्मा के बारे में बात बताने वाला नहीं है “हम दो हमारे दो ” अब लिखा हुआ नहीं मिलता है | “हम ही सब कुछ है ” यह दिख रहा है | अब पैकेज भी कम हो रहा है | आज बच्चे , जवान आस्था में बूढ़े हो रहे हैं | घोडा हार्स पावर वाला भी काम में नहीं आता | अकोड़े के बिना हांथी भी सांथी नहीं रहेगा | इन्द्रियों पर लगाम लगाओ, भाडा दो और काम लो | निश्चिंतता में भोगी सो जाता है और योगी खो जाता है | घर में यदि छोटी बहु अच्छा कार्य करती है तो सभी तारीफ़ करते हैं हो सकता है बड़ी बहु की तारीफ़ नहीं करें | आर्डर मन देता है फिर इन्द्रियां कार्य करती है | मन अधिष्ठाता है वही संकेत करता है तब कार्य होता है, वह उस्ताद है | आत्मा रूप, रस, गंध, वर्ण आदि से रहित है | प्रबल अभ्यास के बल से स्मृति बिना खेद के अपना काम करती है |
  8. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की जो प्राणियों में दया नहीं करता तथा दूसरों को पीड़ा पंहुचा कर भी पछताता नहीं है वह दुर्भावना करता है | कई लोगो को कुछ भी करने के बाद भी पश्चाताप नहीं होता है | ऋण और बैर भव – भव में पीछा करते हैं | आज मुक्ति नहीं होती है लेकिन संबर और निर्जरा भी मोक्ष का कारण है | परिग्रह कम करते चले जाओ तो सुख मिलेगा | वेट कम करो धन और शरीर का | तीन लोक की सम्पदा मिलने पर भी साधू को कुछ नहीं होता | अशुधि के भाव रखोगे तो विशुधि नहीं बढेगी| बार – बार सेवन किया गया विषय सुख राग को उत्पन्न करता है | द्रव्य और भाव रूप तप की भावना से पाँचों इन्द्रियां दमित होकर उस तप भावना वाले के वश में हो जाती है | इन्द्रियों के पोषण के लिए नहीं लगाम लगाने के लिए तप किये जाते हैं | मदोन्मत्त हांथी भी भोजन नहीं मिलने से वश में हो जाता है |
  9. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की शरीर गंदगी की फैक्ट्री है, बड़े – बड़े डाक्टर, भी शरीर को देखकर कुछ नहीं कर पाते उसको शुद्ध नहीं कर सकते | कर्म को एक्सरे और फोटो ग्राफी से भी नहीं पकड़ सकते| पुलिस रक्षा भी करती है और अपराधी को पकडती भी है ऐसे ही कर्म द्विमुखी होते हैं | विज्ञान भी मानता है 50 वर्ष के बाद मीठा, नमक लेने की आवशयकता नहीं रहती है, अपने आप शरीर से मिलते हैं रस | यह शरीर जन्म मरण से युक्त , असार, अपवित्र, कृतघ्न, भार रूप रोगों का घर है | दुखदायी शरीर से क्या लाभ ऐसा विचार साधू शरीर से निस्पृह होकर चिंतन करते हैं | जो श्रमण आत्मा में रमण करता है वह कालजयी बन जाता है |
  10. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की आज विज्ञान ब्रह्माण्ड की खोज कर रहा है | हर बात में विस्फोट करता है | कई लोगो ने समर्थन भी दिया है | पृथ्वी की रचना भगवान् ने कैसे की है यह खोज की है 27 किलोमीटर की सुरंग में की है खोज लेकिन हमें तो नहीं लगता है की यह ठीक है | योग्य का ग्रहण ही अयोग्य को त्याग है | थेओरी तो ज्यादा पढते हैं लेकिन प्रेक्टिकल (प्रयोग) नहीं करते हैं | रोटी में नज़र न लग जाये इसलिए काले धब्बे हैं ऐसा एक व्यक्ति ने कहा अपनी बात छुपाने के लिए कहा की तिल जैसा है | प्रयोग के अभाव में आस्था का विकास नहीं हो पा रहा है | “मूकमाटी” की बाते कई लोगों को अच्छी लग रही है | अपने किये हुए दोषों की आलोचना अपने गुरु के सामने करना चाहिये | एक व्यक्ति ने कहा था की माँ,डाक्टर, वकील , गुरु को अपनी बात सही नहीं बताओगे तो आपकी समस्या का हल नहीं होगा , उपचारक भी ठीक होना चाहिये | अनंत बार अकाल मरण हुआ है जीवों का | माया और झूट सगी सहेली है, एक – दूसरे के समकक्ष रहती है | सिंथेटिक दूध से लीवर, दिल आदि के रोग होते हैं, यह मायाचार है | आज फास्ट लाइफ, फास्ट फ़ूड, फास्ट डेथ का जीवन चल रहा है |
  11. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की संसार में सबसे ज्यादा इमानदार हैं तो वह है कर्म | मुनि हो, गृहस्थ हो, राजा हो या रंक हो, युवा हो या वृद्ध हो कर्म किसी के साथ पक्षपात नहीं करते, जीव जैसा कर्म करता है वैसे ही उसे फल मिलता है | जिसके द्वारा आत्म परतंत किया जाता है, उसे कर्म कहते हैं | जीव और कर्म का अनादिकाल से सम्बन्ध चला आ रहा है | मैं हूँ इस अनुभव से जीव जाना जाता है | संसार में कोई गरीब है, कोई अमीर है, कोई बुद्धिमान है , कोई बुद्धिहीन है , कोई रोगी है , कोई स्वस्थ्य है ! इस विचित्रता से कर्म के अस्तित्व को जान सकते हैं | जैसे अग्नि से गर्म किये हुए लोहे का गोला पानी में डालते ही सब तरफ से पानी को ग्रहण करता है, वैसे ही संसारी आत्मा मन, वचन, काय की क्रियाओं से प्रति समय आत्म प्रदेशों से कर्म ग्रहण करता है, हमारे ही राग – द्वेष परिणाम से कर्म आते हैं |
  12. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की ज्ञात हो – दिगम्बर जैन धर्म के अनुसार रक्षाबंधन के दिन 700 मुनिराजों का उपसर्ग (विघ्न) दूर हुआ था | विष्णु कुमार मुनि ने रिद्धियों के द्वारा किया था उसी की ख़ुशी में यह पर्व मनाया जाता है | आज के दिन मंदिर में पैसा दान करके राखी लेकर बांधते हैं और भाई की कलाई पर बहिन राखी बांधती है | आज के दिन चन्द्रगिरि में प्रतिभा स्थली की ब्रह्मचारिणी बहिने एवं छात्राओं ने आचार्य श्री के शास्त्रों की चौकी पर भी राखी बाँधी यह पर्व “वात्सल्य पर्व” के रूप में मनाया गया | सभी लोगो ने अलग – अलग तरह की राखी प्रदर्शित की | आचार्य श्री ने कहा की मित्र, शत्रु, लाभ, अलाभ, कांच, कनक में समता रखना साधू का गुण है | विष्णु कुमार मुनि की कथा का दृष्ठांत देते हुए कहा की वीतरागी संत प्रतिकार नहीं करते हैं सहन करते हैं !
  13. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की शरीर का त्याग करना सुख, शांति की प्राप्ति का कारण है ! उसके तीव्र वेदना होने पर जीवन की आशा नष्ट हो जाती है ! मुक्ति को खोजने वाला साधू परिग्रह को मन, वचन, काय से त्याग कर देता है ! गाडी में पेट्रोल सप्लाई बंद कर दो तो सब ठीक हो जाता है ! हांथी को भी जब मद आता है तो तीन उपवास करवा देते हैं तो ठीक हो जाता है ! जैसे परीक्षा देना कठिन है ऐसे ही संलेखना कठिन है ! अच्छे – अच्छे घबडा जाते हैं ! कितने भी हार्स पावर की मशीन हो चढ़ाव पर सभी परेशान कर देती है ! ढलान पर बिना पेट्रोल के भी गाडी चलती है ! पंचंम काल में भाव में कमी आ रही है ! आयु, शरीर की क्षमता आदि कम होती जा रही है ! 400 -500 वर्ष पुराने प्रासाद का मटेरिअल मजबूत होता था और आज इतना मजबूत नहीं है ! पुराने तजुर्बों की हड्डी मजबूत होती थी ! कहते थे की “यह पुराना घी है “! शरीर के प्रति लगाओ कितना है उसके अनुसार ही कर्मों की निर्जरा होती है ! जिनका जीवन सुख पूर्वक, विलासिता पूर्वक व्यतीत होता है उनको शरीर छोड़ते समय परेशानी ज्यादा होती है इसलिए सहन करना चाहिए ! शरीर के आश्रित रत्नत्रय सुरक्षित रहे इसको ध्यान में रखकर संलेखना लेते हैं! पुराने वस्त्र भी छुटते नहीं है ! भाव नगर में जहाज रात में तोड़ते हैं क्योंकि मोह रहता है परिग्रह से मोह होता है तो छूटता नहीं है !
  14. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की उचित स्मृति रहती है तो विषयांतर नहीं होता है ! यह समझ भी आ जाता है की ठोस ज्ञान कितना है ! आप कई पृष्ठ पढ़ लो लेकिन उपयोग में नहीं आया तो क्या मतलब ! प्रतिभा संपन्न विद्यार्थी हमेशा परीक्षा को लेकर अलर्ट रहता है ! खूब लिखने से भी कुछ नहीं होता सही लिखोगे तो ही नंबर मिलेंगे ! शब्द जो आप बोलते हैं तीन लोक तक जाता है ! नदी कभी घर तक नहीं आती हमें जाना पड़ता है ! लोग कहते हैं नल आ गया पर नल तो वहीं रहता है ! आज लोग चाहते हैं की हमारे मुख में बटन दबाते ही पाने आ जाए ! आचार्य ज्ञान, दर्शन और चारित्र में विशुद्ध होना चाहिए ! जैसे वस्त्र आदि से बनी पताका जय को प्रकट करती है ! वैसे ही आराधना भी संसार में विमुक्ति को प्रकट करती है ! जिसका जीवन वर्गीकृत नहीं है वह निश्चित फेल होगा ! किसी कार्य को करने से पहले कर्मठता जरुरी है !
  15. चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की आयु के थोडा रह जाने पर आहार ग्रहण करने पर भी शरीर नहीं ठहरता! एक बार श्रधा के नष्ट हो जाने पर उसका पुनह प्राप्त होना दुर्लभ है ! तप में दोष लगने पर बहुत निर्जरा नहीं हो सकती ! बड़ा धंधा करने में जैसे बड़ी पूंजी लगती हैं उसी प्रकार संलेखना में पूरी शक्ति लगानी पड़ती है ! प्रशासन सम्बन्धी परीक्षाओं में संकेत दिया जाता है की तयारी करें और लाखों की संख्या में परीक्षार्थी परीक्षा में बैठते हैं लेकिन उसमे से लगभग 10 प्रतिशत (10000 ) को ही सेलेक्ट किया जाता है, उसमे से भी कई छट जाते हैं और इंटरव्ह्यु में क्रीम बच जाती है ! यह उदहारण है, ऐसे ही संलेखना में होता है, इसको मामूली नहीं समझों, इसमें सुप्प्लिमेंट्री ही नहीं फेल हो जाते हैं ! पेट भरने के बाद कई लोग त्याग करते हैं भोजन ! यहाँ प्रसंग चारो प्रकार के आहार का आजीवन नियम का चल रहा है ! उन मुनिराज के पास दूर – दूर से दर्शन करने आते हैं लोग ! जैसे विद्यार्थी को परीक्षा का ध्यान रहता है ऐसे ही व्रती को संलेखना स्मृति में रहना चाहिए ! जीवन में कभी भी कोई घटना, दुर्घटना हो सकती है ! मरण को मांगलिक समझें, मरण भी उत्साहपूर्वक होना चाहिए ! संकल्प का महत्त्व होता है ! यहाँ वेलकम नहीं वेलगो होता है !
  16. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की वचनों की प्रमाणिकता वक्ता की प्रमाणता से आती है ! आचार्य श्री जी ने अनेक दृष्ठांत देते हुए समझाया की जब तैरना सीखते हैं तो लकड़ी का सहारा लेते हैं ! इसी प्रकार मोक्ष मार्ग में कई चीजों का सहारा लेना पड़ता है ! अपने किये हुए अनर्थों पर रोने से अन्दर ही अन्दर जलने से, पश्चाताप करने से पाप कम होते हैं ! यह धर्म हीरे ( डायमंड ) की भांति है उसे अच्छे ढंग से पालन करो ! आत्मा की अनुभूति श्रधान के माध्यम से होती है ! जितना आप कल के विषय में सोचते हैं उतना आप आज के विषय में नहीं सोचते हैं ! इस अज्ञान से छुटकारा मिल जाए तो सारे संघर्ष छूट जाते हैं ! मुक्ति आती नहीं है हमें जाना है मुक्ति के पास ! हमारे पास पूरा मसाला है बस पुरुषार्थ करना बाकी है ! प्रभु के गुणानुवाद से हमारी सारी वक्ता बढ जाती है ! अज्ञानी कभी रोता नहीं, रोता है तो स्वार्थ के लिए ! सम्यग्ज्ञानी इसलिए रोता है कि मेरा इतना काल अज्ञान में निकल गया ! बुरे को बुरा समझाना ही सम्यग्ज्ञान है ! आत्म तत्त्व का उपभोग कीजिये ! यदि उपभोग नहीं हो रहा हो तो विश्वास कीजिये ! इतनी बारिश में भी आप आयें हैं आपके विश्वास की सराहना करते हैं हम, इसी प्रकार धर्म लाभ लेते रहें !
  17. चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की गुरुओं के सन्मुख आलोचना करके अपने व्रतों की अच्छी तरह विशुधि करते हैं ! संयम के लिए पिच्छी ग्रहण करते हैं ! शरीर से ममत्व छोड़कर चार प्रकार के उपसर्ग को सहते हैं ! दृढ धैर्यशाली तथा निरंतर ध्यान में चित्त लगते हैं ! जैसे कक्षा में छात्र पास होते जाते हैं तो निकलते जाते हैं और छात्रों का प्रवेश होता रहता है, ऐसा ही संघ में होता है ! उच्च साधना के लिए अलग व्यवस्था होती है, जैसी व्यवस्था अस्पताल में होती है वैसी यहाँ होती है ! यहाँ गंभीरता आनी चाहिए समझना चाहिए प्रत्येक बात को ! ड्रेस और एड्रेस अलग होते हैं! कोर्स में कमी रखोगे तो हम कुछ नहीं सिखा सकेंगे ! जैसे मिलिटरी आदि में थोडा भोजन दिया जाता है, ऐसे ही साधू भी कभी – कभी थोडा भोजन लेते हैं ! णमोकार मंत्र भी अंतिम समय याद रह गया तो समझो सौभाग्य है ! जो परीक्षा देने वाला होता है वह इधर – उधर की बातें नहीं करता अतिपरिचय करने से अवज्ञा होती है !
  18. चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की किसने कहा हम गृहस्थों को दीक्षा नहीं देते, देखकर दे सकते हैं ! ३० वर्ष दीक्षा का समय लिखा है क्योंति ३० वर्ष तक ऊंचाई शरीर में वृद्धि होती है ! एक दिन में ही इंजिनियर बनता है क्या कोई ? कई – कई एक्साम देने के बाद बनते हैं ! आज कालेजों की भरमार हो गयी है ! उन मुनिराजों को विक्रिया – चारण और क्षीरा – स्रवित्व आदि रिधियाँ उत्पन्न होती है किन्तु राग का अभाव होने से उनका प्रयोग नहीं करते ! थोड़ी सी साधना होने के बाद चमत्कार होने लगते हैं lekin उससे प्रभावित नहीं होंगे तो शक्तियां बढेगी और प्रयोग करेंगे तो वह समाप्त हो जाती है ! पहले वैद्य दवाओं के बारे में सीखते थे और सेवा करते थे और रोगी दान देते थे, औषधि दान के रूप में वह वैद्य हाँथ नहीं लगाते थे ! एलोपेथिक में यही गड़बड़ी हो रही है बड़े – बड़े लोग भी यह मेडिकल कालेज खोल रहे हैं ! लाखों रुपयों में एम.बी.बी.एस. होती है ! भावों में कलुषता नहीं होनी चाहिए ! पहले भारत को ऋषि, साधक, संत उपदेश के माध्यम से चलाते थे ! पार्शवनाथ मोक्ष कल्याणक निर्वाण दिवस मनाया गया :- आज यह महावीर भगवान् से पूर्व पार्शवनाथ के निर्वाण कल्याणक को सूचित करने वाला दिन है यह एक ऐसी परम्परा है जिसको किसी ने रोका नहीं यह धारा निरंतर बहती रहती है ! यह धारा वीतराग धारा है जो टूट नहीं सकती अपनी मंजिल तक पहुचकर विश्राम पा लेती है ! विकृति का मिटना ही संस्कृति है ! नीर के मंथन से नवनीत की प्राप्ति नहीं होती है ! आत्मा मरती नहीं यह किसी को ज्ञात नहीं है ! सब लोग धन के चक्कर में पड़ गए हैं इसलिए आत्मा को भूल गए हैं ! आत्मा की उपलब्धि भू-शयन वालों को ही हुई है ! राम-राम रटने से कुछ नहीं होता है राम जैसा काम करो ! आत्मराम का चिंतन करो ! इसके पहले अनंत प्रभु हो चुके हैं, यह धारा टूटी नहीं है ! अब नींद की धारा को तोडना है वह है मोह की नींद ! माया के कारण उठ नहीं पा रहा है व्यक्ति ! धन के पीछे पड़ोगे तो दिमाग खराब होगा ! सोना ज्यादा रखने से पीलिया हो जाता है !
  19. चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी कहते है की अपना हित करना चाहिए, यदि शक्ति हो तो पर का हित भी करना चाहिए, किन्तु आत्महित और पर हित में से आत्महित अच्छे प्रकार से करना चाहिए ! प्राणी संयम को पालने के लिए और जिनदेव का प्रतिरूप रखने के लिए पिच्छि (मोर पंख की बनी) रखते हैं ! शरीर का संस्कार नहीं करते, धैर्य बल से हीन नहीं होते ! रोग से या चोट आदि से उत्पन्न हुई वेदना का प्रतिकार नहीं करते, मौन के नियम का पालन करते हैं, यह होती है मुनि की साधना ! आचार्य श्री ने कहा हमारी आई साईट ठीक है ! जैसे डाक्टर लोग इलाज करते समय बोलते नहीं है कार्य में लगे रहते हैं ! जैसे पेपर में इधर – उधर नहीं देखते हैं बच्चे परीक्षा के समय ऐसा ही मुनि चर्या में होता है ! यहाँ मिलिट्री जैसा शासन चलता है ! आज दीक्षा दिवस में मुनियों द्वारा दिए गए प्रवचन इस प्रकार हैं – मुनि भावसागर जी – मुनि भावसागर जी ने कहा की आचार्य श्री विद्यासागर जी सर्वश्रेष्ठ आचार्य हैं वह छत्तीसगढ़ की भूमि पर दूसरी बार प्रवास कर रहे हैं ! मुनि श्री समयसागर जी स्वाध्याय, साधना में लीन रहते हैं ! मुनि श्री योगसागर जी एक उपवास एक आहार करते हैं एवं सभी साधुओं को वात्सल्य देते हैं ! मुनि श्री अनंत सागर जी को भी याद किया ! मै करूँगा, करूँगा, करूँगा यह चिंतन करता रहता है लेकिन यह भूल जाता है की मैं मरूँगा, मरूँगा, मरूँगा, यह मुनि मार्ग मोक्ष प्राप्त करने का साधन है ! जन्म, जरा और मृत्यु से छुटकारा पाने का साधन है ! आचार्य श्री विद्यासागर जी जैसे चतुर्थकाल में अतुलनीय साधक हैं ! आचार्य श्री विद्यासागर जी की चर्या स्वयं में चमत्कार और अतिशय से कम नहीं है ! दीक्षा, आचार्य श्री, जिनशासन की अनेक बातें बताई ! इस अवसर पर हम मुनि श्री विराट्सागर जी, विशद सागर जी, अतुल्सागर जी, को भी याद करते है ! मुनि श्री शैल सागर जी – मुनि श्री शैल सागर जी ने कहा की मुनि श्री भावसागर जी ने मंगलाचरण में कहा की काया में कितना रहना इसी प्रसंग को लेकर हम प्रारंभ करते हैं ! एक माटी का टीला है और एक पूजक का दृष्टान्त दिया ! आचार्य महाराज बहुत सरल हैं ! आचार्य श्री को संघ का अनुशासन बनाने के लिए कठिन होना पड़ता है ! जब भी मरण हो, अंतिम समय आचार्य श्री जी के चरणों में निकले ! मुनि श्री विनम्र सागर जी – मुनि श्री विनम्र सागर जी ने कहा की मुनि श्री भावसागर जी ने कहा की कई लोग आचार्य श्री से तुलना करते हैं लेकिन आचार्य श्री तुला हैं, उनसे किसी की तुलना नहीं हो सकती ! आचार्य श्री कहते हैं की काल थोडा है जल्दी कल्याण करो ! एक दृष्टान्त देते हुए कहा की जन्म और मृत्यु को जितने वाली विद्या सीखना है ! आचार्य महाराज हमारे एक – एक श्वास के आराध्य हैं हमें उनकी तुला में तुलने का मौका मिला, उनके दर्शन देवताओं को भी दुर्लभ है ! आचार्य श्री ने कहा था एक विद्वान् से की यह हमारी नाव में बैठे हैं निश्चिन्त पार होंगे ! मुनि श्री धीर सागर जी – मुनि श्री धीर सागर जी ने माँ जिनवाणी को नमन करते हुए कहा की शारदे मुझे सार दे ! आचार्य श्री जी की हर चर्या निराली है हम भावना करें की वह आगामी तीर्थंकर बने ! उनका गुणगान हरपल दिल की धडकनों में हुआ करता है ! वाणी वीणा का कार्य करे वाण का नहीं ! भक्ति में हो शक्ति इतनी की कर्म पिघल जाएँ ! आचार्य श्री कोहिनूर से भी कीमती रत्नों का दान करते हैं ! मुनि श्री वीर सागर जी – मुनि श्री वीर सागर जी ने कहा की मुनि भावसागर जी, मुनि श्री विनम्र सागर जी ने गुरु जी के बारे में बहुत सी बातें बताई है ! गुरु जी में बहुत सी विशेषताएं हैं प्रत्येक जीव उनके आगे – पीछे रहना चाहते है ! उनके बहुत अच्छे चारित्र , आचरण है ! गुरु का ऐसा आकर्षण होता है, जिसे गुरुत्वाकर्षण कहते हैं ! सुबह आचार्य श्री ने सूत्र दिए थे , उन्होंने कहा था की समीचीन दृष्ठि बनाना ! व्यक्ति भौतिक सुख को सभी कुछ मानता है ! मनुष्य एक दीपक की तरह है जिसमे दीपक भी है और ज्योति भी है ! मुनि श्री योगसागर जी – मुनि श्री योगसागर जी ने कहा की आचार्य श्री ने पांच मुनिराजों को बोलने (प्रवचन) के लिए कहा था, अब समय हो गया है ! मैं समय का और आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहता हूँ और जिनवानी की स्तुति की
  20. प्रभु का जन्मोत्सव लोक रूपी घर में छिपे हुए अन्धकार के फैलाव को दूर करने में तत्पर होता है ! अमृतपान की तरह समस्त प्राणियों को आरोग्य देने वाला है ! प्रिय वचन की तरह प्रसन्न करता है ! पुण्य कर्म की तरह अगणित पुण्य को देने वाला है ! प्रभु का जन्म होता है तो तहलका मच जाता है तीनो लोको में ! निरंतर बजने वाली मंगल भेरी और वाद्यों की ध्वनि से समस्त भुवन भर जाता है ! भगवान् के जन्म के समय इन्द्र का सिंहासन कम्पायमान हो जाता है ! भेरी के शब्द को सुनकर इन्द्रादि प्रमुख सब देवगण एकत्र हो जाते हैं ! जन्माभिषेक के समय जिन बालक को लाने के लिए आई हुई इन्द्राणी के नूपुरों के शब्द से चकित हुई हंसी के विलास से राजमंदिर का आँगन शोभित होता है ! ऐरावत हांथी से उतरकर इन्द्र अपनी वज्रमयी भुजाएं फैला देता है ! गमन करते समय बजाये जाने वाले अनेक नगारों का गंभीर शब्द होता है ! इन्द्रों का समूह अपूर्ण चन्द्रमा की किरणों के समान शुभ चमरों को दक्षतापूर्वक ढोरता है ! इन्द्रानियाँ जिन बालक का मुख देखने के लिए उत्कंठित होती है ! श्वेत छत्र रूपी मेघों की घटाओं से आकाश ढक जाता है ! पताकाएं बिजली की तरह प्रतीत होती है ! इन्द्रनील्मय सीढियों की तरह देव सेना गमन करती है !
  21. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की भिक्षा के लिए जाते समय सावधानी रखना चाहिए! त्रस और स्थावर जीवों को पीड़ा न पहुचे इसलिए अन्धकार में प्रवेश नहीं करते हैं ! आत्मा की विराधना नहीं होनी चाहिए, इधर – उधर अवलोकन करके घर में प्रवेश करना चाहिए संयम की विराधना न हो यह ध्यान रखना चाहिए ! वंदना करने वालों को आशीर्वाद देते हुए निकलते हैं साधू ! आहार के समय कोई नियम (विधि लिकर) जिनमन्दिर आदि से आहार के लिए निकलते हैं ! इतिहास उपहास का पात्र होता है या तो हँसते हैं या रोते हैं ! आचार्य श्री ने प्रधुमन की कथा सुनाई और कहा की तीन दिन के बालक का अपहरण हो जाता है ! कोई चमत्कार नहीं करता अपने कर्म ही चमत्कार करते हैं ! सब भावों का खेल है ! आस्था जब तक दृढ नहीं होती तब तक पैर डगमगाते हैं ! आस्था दृढ होती है तो वह अडिग होकर चलता है ! आदर्श को देखते हैं तो मेरा – तेरा नहीं होता वीतरागता में भेद नहीं होता ! यह मंदिर मेरा, मेरे पूर्वजों ने बनवाया था , यह प्रतिमा मैंने विराजमान करवाई ऐसा भाव नहीं आना चाहिए ! उसकी पूजा आदि व्यवस्था तो करना चाहिए |
  22. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी कहते हैं की भगवान् के वैराग्य रूपी हवा के झकोरों से इन्द्र का सिंहासन कम्पित होता है ! तब इन्द्र अवधि ज्ञान रूपी दृष्ठि का उपयोग करके भगवान् के द्वारा प्रारंभ किये जाने वाले कार्य को जानता है ! सौधर्म इन्द्र के पास ही मोबाइल नंबर रहता है उसी के पास यह रेंजे है जिसका सम्बन्ध हो जाता है ! इसी प्रकार अवधि ज्ञान का होता है ! सौधर्म इन्द्र सिंहासन से उठ , जिस दिशा में भगवान् है , उस दिशा की ओर सात पद चलकर नमस्कार करता है ! समीचीन धर्मरूप तीर्थ के प्रवर्तन के लिए उद्यत , शरणागत भव्य जनों की रक्षा करने वाले और अलौकिक नेत्रों से विशिष्ट जिनदेव को नमस्कार हो ! जैसे राष्ट्रपति को राजनंदगांव आना है तो सुरक्षा हेतु यहाँ के कलेक्टर से अनुमति लेना पड़ता है ! ऐसे ही तीर्थंकर भगवान् की रक्षा के लिए देव होते हैं ! इन्द्रिय सुख – सेवन के बाद खेद ही होता है ! वैराग्य का वर्णन करते हुए कहते हैं की न किसी का कोई मित्र है और न धन और शरीर ही स्थाई हैं ! बंधू और बांधव और परिवार यात्रा में मिलने वाले पुरुषों के समान हैं ! धन के कमाने में और कमायें हुए धन के नष्ट हो जाने पर बहुत दुःख होता है ! धन के कारण अन्य जनों से विरोध होता है !
  23. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की सभी जिन्देवों का अभिषेक कल्याणक बड़ी विभूति के साथ मनाया जाता है ! इन्द्र की आज्ञा से कुबेर उनके लिए अंगराग, वस्त्र, भोजन, वाहन, अलंकार आदि सम्पति प्रस्तुत करता है ! मन के अनुकूल क्रीडा करने में चतुर देव कुमारों का परिवार रहता है ! वह चक्र के माध्यम से देव, विद्याधर और राजाओं के समूह को अपने अधीन कर लेते हैं ! काल, महाकाल आदि नौ निधियां उनके राजकोष में उत्पन्न होती हैं ! चक्ररत्न आदि 14 रत्न होते हैं ! प्रत्येक रत्न की एक हज़ार देव रक्षा करते हैं ! 32000 राजाओं के द्वारा उनके पाद पीठ पूजे जाते हैं ! देव कुमार भेटें ले लेकर उनकी सेवा में सदा उपस्थित होते हैं ! वह विचार करते हैं की यह मोह की कैसी महत्ता है की तुरंत संसार समुद्र के दुःख रूपी भवरों को प्रत्यक्ष अनुभव करने वाले हम जैसों को भी आरम्भ और परिग्रह में फसाता है ! इस भोग सम्पदा में भी सार नहीं है ! पूज्य पुरुषो की पूजा न करना भी स्वार्थ का घोतक है ! चक्र का मैनेजमेंट यह है की देव भी सुरक्षा करते हैं ! तीर्थंकर सभी वैभव होने के बाद भी उनमे रचते नहीं है ! हमे बार – बार बोलना पड़ता है निचे चावल नहीं चढ़ाएं क्योंकि चीटियाँ होती है ! लोग पास आने का साधन ढूंढते हैं, पासपोर्ट लेकर आते हैं पास आने को! चौके में भी आज तक फर्स्ट क्लास फर्स्ट नहीं आये ! एक बार भगवान् के तप कल्याणक की जय तो बोलों ऐसा कहा आचार्य श्री ने !
  24. आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जैसा साधक मिलना कठिन है इस काल में! वे गर्मी में बहुत दिनों तक कमरे में स्वाध्याय करते थे जहाँ का तापमान 46 डिग्री के आस-पास था और अभी रात में दहलान में खुले में शयन करते हैं कई बार बारिश के कारण ठंडा भी हो जाता है मौसम फिर भी वह खुले में ही रहते हैं वह शाम से सुबह तक एक ही पाटे पर रहते हैं चलते – फिरते नहीं हैं अँधेरे में ! उनके संघ के सभी साधू मौन साधना में रत हैं 02 जुलाई से 02 सितम्बर 2012 तक की मौन साधना गुरु के उपदेश से सभी साधू पालन कर रहे हैं ! मुनि श्री योगसागर जी महाराज चातुर्मास में एक आहार एक उपवास की साधना करते हैं अन्य साधू भी सप्ताह में 1 – 2 उपवास करते हैं ! इस वर्षाकाल में जठ रागनी गंध पड़ जाती है शरीर में बीमारियाँ होती है इसलिए प्रकृति एवं धर्म ग्रंथों के अनुसार उपवास, एकासन करने से शरीर की विकृति समाप्त हो जाती है ! दिगम्बर जैन धर्म के अनुसार साधुओं को उपवास पहले और बाद में 48 घंटे बाद भोजन लेना होता है बीच में कुछ भी खाया पीया नहीं जाता कई लोग जल उपवास भी करते हैं लेकिन एक बार ही जल लेते हैं बार – बार नहीं वैसे भी वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है की अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी, अष्टमी इन तिथियों में समुद्र में 5 बार भाठा आते हैं क्योंकि जल की मात्रा बढ जाती है इसी प्रकार हमारे शरीर में भी वर्षाकाल में जल की मात्रा बढ जाती है जिससे बीमारियाँ होती है जो उपवास, एकासन करने से ठीक हो जाती है ! वैज्ञानिकों, डाक्टर ने यह भी सिद्ध किया है उपवास के दिन विशेष रसायन का स्राव होता है मुख में जिससे विशेष एनर्जी मिलती है !
  25. चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा की गुरु के पीछे इस प्रकार बैठे की अपने हाँथ पैर आदि से गुरु को किसी प्रकार की बाधा न पहुचे ! आगे बैठना हो तो सामने से थोडा हटकर गुरु के वाम भाग में उधतता त्याग कर और अपने मस्तक को थोडा नवाकर बैठे आसन पर गुरु के बैठने पर स्वयं भूमि में बैठे ! गुरु के नीचे आसन पर सोना जो ऊँचा नहीं हो ऐसे स्थान में सोना , गुरु के नाभि प्रमाण पात्र भूभाग में अपना सिर रहे इस प्रकार सोना ! अपने हाँथ पैर वगरह से गुरु आदि का संघठन न हो इस प्रकार शयन करे, गुरु को बैठना हो तो आसन दान करें पहले जीव को देख ले ! उसे मार्जन (साफ़) करें या गुरु को उपकरण भी दे सकते हैं ! गुरु को पुस्तक आदि भी दे सकते हैं ! गुरु को यदि शीत, ग्रीष्म, आदि की बाधा है तो उन्हें आवास दान की व्यवस्था करें ! गुरु से थोडा हटकर बैठे ! गुरु को शीतलता प्रदान करें सेवा के माध्यम से एवं ठण्ड के समय में हवा से बचाव का प्रबंध करें !
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