गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर आचार्य श्री को मेरा शत शत नमन
पंचम काल भी भाग्य पर अपने ?
मन ही मन इतराता है ?
ब्रहद हिमालय अपनी गोद मैं ?
पा हर्षित हो जाता है ?
चट्टानों पर पग रखें तो ?
पुष्प वहाँ खिल जाते है ?
मरुथल मैं विहार करें तो ?
नीर कुण्ड मिल जाते है ?
चरण धूलि जिनकी पाने को ?
अम्बर तक झुक जाता हो ?
सिद्ध शिला पर बैठे प्रभु से ?
जिनका सीधा नाता हो ?
वर्तमान के वर्द्धमान की ?
छवि मैं जिनमें पाता हूँ ?
ऐसे गुरू विद्यासागर को ?
अपना शीश नवाता हूँ ?
नमोस्तू भगवन ?