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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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Posts posted by संयम स्वर्ण महोत्सव

  1. 30 जून को विद्योदय फिल्म किशनगाढ़ राजस्थान   में दिखाई जाएगी |
    संपर्क सूत्र : एन. के. वैद 
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  2. 30 जून को विद्योदय फिल्म कोटा राजस्थान  में दिखाई जाएगी |
    संपर्क सूत्र : अजय बाकलीवाल एवं विनोद जी 
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  3. 30 जून को विद्योदय फिल्म सीकर राजस्थान  में दिखाई जाएगी |
    संपर्क सूत्र : संजय जी बडजात्या
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  4. 30 जून को विद्योदय फिल्म टोंक राजस्थान  में दिखाई जाएगी |
    संपर्क सूत्र : धर्म चंद जी 
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  5. 30 जून को विद्योदय फिल्म केकड़ी राजस्थान  में दिखाई जाएगी |
    संपर्क सूत्र : अशोक जी 
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  6. 30 जून को विद्योदय फिल्म जयपुर राजस्थान   में दिखाई जाएगी |
    संपर्क सूत्र : आर. के. गोधा 
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  7. 30 जून को विद्योदय फिल्म जोधपुर राजस्थान   में दिखाई जाएगी |
    संपर्क सूत्र : आर. के. सेठी 
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  8. 30 जून को विद्योदय फिल्म बाँसवाड़ा राजस्थान  में दिखाई जाएगी |
    संपर्क सूत्र : सुशांत  
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  9. 30 जून को विद्योदय फिल्म भीलवाड़ा राजस्थान  में दिखाई जाएगी |
    संपर्क सूत्र : नरेश जी गोधा 
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  10. 30 जून को विद्योदय फिल्म अलवर राजस्थान  में दिखाई जाएगी |
    संपर्क सूत्र : अशोक जी 
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  11. संयम स्वर्ण महोत्सव प्रश्नोत्तरी दिनांक 22 जून २०१८


    संयम स्वर्ण महोत्सव प्रतियोगिता क्रमांक 8 अ - कल सुबह 7 बजे तक भाग ले सकते हैं 

    08.jpg

    भाग ले प्रतियोगिता में और दावेदार बने आकर्षक उपहार के |

     


     

  12. श्रुत पंचमी महोत्सव के उपलक्ष्य में आर्यिका 105 श्री  दृढ़मति  माता जी ससंघ के सानिध्य में श्रुत पंचमी महोत्सव,बड़ा जैन मंदिर हनुमानताल जबलपुर में, सफलतापूर्वक  सानन्द संपन्न हुआ | संयम स्वर्णिम दीक्षा  महोत्सव के उपलक्ष्य में हनुमानताल के इतिहास  में प्रथम बार श्रुत पंचमी का कार्यक्रम भव्य तरीके  से सफलता पूर्वक हनुमानताल, जबलपुर,मध्य प्रदेश  समाज में मनाया  गया |

     

    कार्यक्रम में सर्वप्रथम, संयम स्वर्णिम विद्यासागर संस्कार पाठशाला हनुमानताल के बच्चो के द्वारा मंगलाचरण किया गया |फिर आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज की फोटो के समक्ष  द्वीप प्रज्जवलन ,चित्र  अनावरण  किया गया |कार्यक्रम का संचालन अमित जैन पड़रिया के द्वारा सफलतापूर्वक किया गया | आर्यिका 105 श्री दृढ़मति माताजी के द्वारा श्रावको को श्रुत पंचमी की कहानी ,कविता और कथानक के माध्यम से श्रुत पंचमी का महत्व समझाया गया  |आचार्य श्री के 50वें संयम स्वर्णिम महोत्सव के बारे में बताया  गया |माताजी ससंघ को  सभी श्रावको ने शास्त्र भेंट किया किया |

     

    माताजी ने हथकरघा ,प्रतिभा स्थली  के विषय में भी श्रावको को बताया |श्रुत पंचमी के उपलक्ष्य में हनुमानताल पाठशाला के बच्चो की बैंड पार्टी के द्वारा रैली और जिनवाणी जी की शोभा यात्रा निकाली गयी |इस प्रकार संपूर्ण कार्यक्रम सानन्द संपन्न हुआ |श्रुतपंचमी महोत्सव का पूरा कार्यक्रम हनुमानताल ट्रस्ट कमेटी,संयम स्वर्णिम साधु सेवा समिति ,संयम स्वर्णिम विद्यासागर संस्कार पाठशाला समिति ,महिला  परिषद् द्वारा आयोजित किया गया और सभी भाइयो ,बहनो के उपलक्ष्य में सानंद सफलता पूर्वक संपन्न हुआ |

     

     

  13. ps.jpg

     

    27-11-1997 में जिनिव्हा, स्विट्जरलैंड में विश्व धर्म परिषद हुई थी| उस परिषद में विश्व शान्ति निर्माण करने वाले महामंत्र के रूप में णमोकार मन्त्र को मान्यता दी गई| इस णमोकार मन्त्र को पूरे विश्व में शांति के लिए और इस ब्रह्माण्ड को सकारात्मक ऊर्जा से भरने के लिए णमोकार मन्त्र की ध्वनि से उत्पन्न तरंगो की आज बहुत आवश्यकता है|णमोकार मन्त्र में उच्चरित ध्वनियों से धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों प्रकार की विद्युत शक्तिया उत्पन्न होती है, जिससे कर्म कालिमा नष्ट हो जाती है|
    मन्त्र की ध्वनियों के संघर्ष से आत्मिक शक्तियाँ प्रकट होती है, मन्त्र का निर्माण अनेक बीजाक्षरों से होता है| ऊँ, ह्रीँ , क्लीं आदि ये सभी बीजाक्षर कहलाते हैं । इन सभी में प्रधान ऊँ बीजाक्षर है, इसी तरह अर्हं है जो बीजाक्षरों से मिलकर बना हुआ मन्त्र है| अर्हं में प्रथम अक्षर "अ" अंतिम अक्षर "ह" है जो अ से ह तक की पूरी वर्णमाला के अक्षरो की शक्तियों को समेटे हुए है| अर्थांत् ज्ञान से पूर्ण भरा हुआ मन्त्र| 

    आचार्य "शुभचन्द्र" ध्यान के महाग्रंथ ज्ञानार्णव में लिखते है कि- बुद्धिमान योगी को ज्ञान के लिए बीजभूत संसार में वंदनीय जन्म, मरण रूप अग्नि को शांत करने के लिए मेघ सामान पवित्र एवं महान ऐश्वर्यशाली इस मन्त्र का ध्यान करना चाहिए| यह सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धियों को देने वाला है| यह अर्हं - अ से अरहंत और नमो लोए सव्वसाहूणं में साहू शब्द के ह कार को ग्रहण करके बना है| इसलिए यह ऊँ कार की तरह पांच परमेष्ठी का वाचक है| इसे सिद्ध परमेष्ठी का वाचक भी कहा है ।

    योग का अर्थ जुड़ना होता है| अर्हं मन्त्र के माध्यम से या णमोकार मन्त्र के माध्यम से अपने शरीर, मन एवं वचन को शुद्ध एवं ज्ञान से परिपूर्ण आत्माओं से जोड़ना "अर्हम् योग" कहलाता है| जिसके फल स्वरूप अपने ही आत्म तत्व से जुड़ना होता है| इसलिए यह आत्म योग / परमात्म योग भी है|

    अर्हम् योग = परमात्म योग = आत्म योग

     

    शुरू करें / Start

     

     

     

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  14. आईये ज़रूर देखिये आचार्य 108 श्री विद्या सागर जी महाराज के श्री चरणों मे मैत्री समहू, आगरा की प्रस्तुति "आत्मान्वेषी" संयम स्वर्ण महोत्सव समिति आगरा (अन्तर्गत आगरा दिगम्बर जैन परिषद) के अन्तर्गत मैत्री समूहू, श्री शान्ति नाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, हरीपर्वत, आगरा के सहयोग से आयोजित नाटिका - "आत्मान्वेषी" की बेहतरीन प्रस्तुति


    दिनांक -  24 June, 2018, 
    समय - सायं 7 बजे से, 
    स्थान - सूर सदन,एम जी रोड, आगरा

    Maitri Samhoo Agra ke dwara prastut hai acharya Vidhya Sagar Ji Maharaj ke shri charno me.
    "Aatmanveshi"

    इस लिंक पर क्लिक करें??
    https://youtu.be/SfeTqdYans4

    जय जिनेन्द्र

  15. अर्हं ही चिज्ज्योति है, अर्हं अर्हत् सिद्ध।

    अर्हं साधु मंगलं, अर्हं लोक प्रसिद्ध ।।1।।

     

    अर्हं से सब स्वर सधे, व्यंजन होवें व्यक्त।

    अर्हं पूरण ज्ञानमय, करता चित्त सशक्त।।2।।

     

    अर्हं के सन्नाद से, भागें रोग विकार।

    चित्त शान्ति शक्ति भरे, जानें शुद्ध विचार ।।3।।

     

    श्वेत वर्ण अरिहन्त ध्या, लाल वर्ण में सिद्ध।

    पीत वर्ण आचार्य ध्या, करता चित्त विशुद्ध ।।4।।

     

    उपाध्याय ध्या नील में, ज्ञान विचार उदार।

    हरे रंग में साधु ध्या, सुख समृद्धि अपार ।।5।।

     

    अहं भाव ही मोह है, भ्रम माया अज्ञान।

    अर्हं नाशे अहं को, सत्य मिले सज्ज्ञान।।6।।

     

    चन्द्रसूर्य सा तेजमय, अर्हं ध्याता संत।

    ज्ञानकेन्द्र पर नित्य ही बन जाता अरिहन्त ।।7।।

     

    चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय जायक रूप।

    यह अनुभव ही सार तो, दिखता जग जड़ रूप ।।8।।

     

    चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

    निज गुण-गण में लीन हूँ, गगन शून्य बेरूप।।9।।

     

    चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

    काम क्रोध-मद-लालसा, भाव सभज्ञी जड़ रूप।।10।।

     

    चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

    देह भला कब हो सकी, आतम सी चिद्रूप ।।11।।

     

    चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

    इष्ट अनिष्ट जग कल्पना, है अज्ञान स्वरूप।।12।।

     

    चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

    हर्ष-वेद आवागमन, ज्यों छाया अरू धूप ।।13।।

     

    चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

    औपाधिक पर भाव हैं, मैं गरीब मैं भूप ।।14।।

     

    चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय जायक रूप।

    अच्छा हो यह सोचना, अविवेकी प्रारूप ।।15॥

     

    चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय जायक रूप।

    मान और अपमान तो, मान कषाय स्वरूप ।।16।।

     

    चिदानन्द चिद्रूप हूँ, चिन्मय ज्ञायक रूप।

    किया,करूँगा, कर रहा, मन का तृष्णा कूप ।।17।।

     

    दुर्लभ गुरु का दर्श है, दुर्लभ गुरु संस्पर्श।

    दुर्लभ गुरु दर्शन पुन:, दुर्लभ गुरु से हर्ष ।।18।।

     

    दुर्लभ गुरु मुख से वचन, दुर्लभ गुरु मुस्कान।

    दुर्लभ गुरु आशीष है, दुर्लभ गुरु से ज्ञान ।। 19।।

     

    दुर्लभ से दुर्लभ रहा, गुरु गरिमा गुणगान।

    गुरु आज्ञा पूरण पले, दुर्लभतम यह जान ।।20।।

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  16. Muni Pranamya Sagar Ji

     

    अर्हं ओं अर्हं

    Supreme power in the World

    You have knowledge

    You have bliss

    Inherent power of the Soul

    Every day practice gives to all

     

    अर्हं ओं अर्हं

    Who lies free from all bondage

    Who is beyond manhood age

    Who is eternal, pious at all

    I want attain to that God

     

    अर्हं ओं अर्हं

    Nectar of love flows in you

    Perfume of truth blows in you

    Supreme Divinity an other name

    Who seek your refuge finds fame

     

    Poem - 2

    Peace starts within human mind.

    'You and Me' thinking of divine.

    Develop this idea to stop violence.

    For this required inner deep silence.

    Through by evolution is Humanity

    Will be find by Humility.

    This is possible only by Meditation

    For all types of illness is one Medicine

     

    P - Positivity

    E - Energy

    A - Activity

    C - Creativity

    E - Evolution

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  17. मेरे मन में तेरे मन में सबके मन में हो

    वैर न होवे पाप न होवे भाव क्षमा का हो ।। 1 ।।

     

    मेरे मन में तेरे मन में सबके मन में हो

    मेरा मंगल तेरा मंगल सबका मंगल हो ।। 2 ।।

     

    मेरे मन में तेरे मन में सबके मन में हो।

    मेरा जीवन तेरा जीवन सबका उत्तम हो ।। 3 ।।

     

    मेरे मन में तेरे मन में सबके मन में हो

    प्रभु के चरणा गुरु के चरणा सबको शरणा हो ।। 4 ।।

     

    मेरे मन में तेरे मन में सबके मन में हो

    तन नीरोगी मन हो निर्भय बोधि समाधि हो ।। 5 ।।

     

    मेरे मन में तेरे मन में सबके मन में हो

    दुखियारा ना कोई होवे मन ज्योतिर्मय हो ।। 6 ।।

    • Like 4
  18. प्रतिदिन सभी व्यक्तियों को अपने जीवन में अपने गुरू एवं भगवान से प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। इसी श्रृंखला में गुरूदेव श्री प्रणम्य सागर जी द्वारा रचित यह प्रार्थना अहम् योग के अन्त में अवश्य बोलनी चाहिए। जिससे हमारे जीवन में शांति एवं सुगमता आकर हमारा स्वभाव सरल एवं सहज बन सकें तथा हम ईश्वरीय शक्ति को अपने जीवन में पाकर अपने इस नरभव को सफल बना सकें।

     

    णमोकार मय सारा जीवन बना लो।

    महामंत्र से चेतना को सजा लो।।

     

    1. णमोकार के पंच परमेष्ठी प्यारे।

    भरे शुद्ध भावों से जग में हैं न्यारे।।

    महामंत्र की शक्ति निज में मिला लो।

    महामंत्र से चेतना को सजा लो।। णमोकार..

     

    2. रहे ज्ञान ही ज्ञान में मेरा ध्यान।

    महामंत्र सब दु:ख हर ले महान।।

    सभी हो सुखी और सबका भला हो।

    महामंत्र से चेतना को सजा लो।। णमोकार..

     

    3. न तन में हो रोग, न मन में अशांति।

    हो सारे जहां में परम शांति-शांति।।

    परम शांति अर्हम सभी को मिला लो।

    महामंत्र से चेतना को सजा लो।। णमोकार....

     

    शांति पाठ

    सम्पूजकानां प्रतिपालकानां यतीन्द्र सामान्य तपो धनानाम्।

    देशस्य राष्ट्रस्य पुरस्य राज्ञः करोतु शांतिं भगवान् जिनेन्द्रः।।

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  19. भगवान महावीर ने गौतम गणधर से कहा

    हे गौतम!

    जो समस्त सारों में सारभूत है, वह सारभूत तत्त्व ध्यान नाम से ही है। यही बात सभी अन्य तीर्थंकरों ने भी कही है।

     

    आचार्य श्री कुन्दकुन्द देवजी

    ध्यान रूपी अग्नि में छ: आवश्यक कर्मों की क्रियाओं से जो निरंतर व्रत रूपी मंत्रों के द्वारा कर्मों का होम करते हैं ऐसे आत्मज यज्ञ में लीन साधु को मैं वंदन करता हूँ।

     

    आचार्य पूज्यपाद - ‘इष्टोपदेश' ग्रंथ में कहते हैं- “व्यवहार से बाहर दूर रहने वाले और आत्मा का अनुष्ठान करने वाले योगी को कोई अपूर्व आनन्द उत्पन्न होता है।'' |

     

    आचार्य गुणभद्र स्वामी - ने ‘आत्मानुशासन' ग्रन्थ में कहा है- “मैं अकिंचन हूँ, मेरा कुछ भी नहीं, बस ऐसे होकर बैठे रहो और तीन लोक के स्वामी हो जाओ। यह तुम्हें बड़े योगियों के द्वारा जाने जा सकने लायक परमात्मा का रहस्य बतला दिया है।''

     

    आचार्य नागसेन - ‘तत्त्वानुशासन ग्रन्थ' में कहते हैं- “जो सदा ही ध्यान का अभ्यास करने वाला है परन्तु तद्भव मोक्षमार्गी हीं है तो भी उस ध्याता को अशुभ कर्मों की निर्जरा व संवर होता है। अर्थात् वह पाप से मुक्त हो जाता है।

     

    आचार्य श्री विद्यासागर जी - ध्यान काल में, ज्ञान का श्रम कहां, पूरा विश्राम

     

    मुनि श्री प्रणम्यसागर जी - ध्यान एक (Portable) पोर्टेबल यान है। जिसकी ऊर्जा के साथ हम कहीं भी विचरण कर सकते हैं।

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  20. तू ऊपर से सब भरता रहा, पर भीतर से तो खाली है।

    ऐसा कुछ निश्चित करना है, मन को भीतर से भरना है।

    तो, अर्हं योग को करना है...।।

     

    1. पानी में डूबे कलशे का, जब तक मुख उलटा रहता है।

    पानी है चारों ओर मगर, भीतर से खाली रहता है।

    पानी से भरा आए बाहर, मुख को बस सीधा करना है।

    तो, अर्हं योग को करना है...।।

     

    2. मछली पानी में प्यासी है, मन में क्यों भरी उदासी है।

    जो दास बने धन के तन के, उनकी मति जग में दासी है।

    जो दास बना वो मालिक था, मालिक चेतन को बनना है।

    तो, अर्हं योग को करना है...।

     

    3. खिलते हुए कोमल पौधे को, पानी ऊपर से देता रहा

    मुरझाता गया धीरे-धीरे, खुशबू उसकी तू खोता रहा

    फिर से यह पौधा खिल जाए, जड़ में जल सिंचन करना है।

    तो, अर्हं योग को करना है...।

     

    4. तन की तृष्णा मन की इच्छा, पूरी करते-करते आया

    धन वैभव पद सम्मान सभी, पाया पर मन खाली पाया

    भीतर से तृप्त ये आतम हो, आतम में तृप्ति करना है।

    तो, अर्हं योग को करना है...।

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  21. अर्हम् योग एवं ध्यान हेतु शाकाहार आहार ही सर्वश्रेष्ठ आहार है। आपने सुना होगा तथा पढ़ा होगा कि जीवन में आहार का महत्त्व कितना है। हम अपने प्रतिदिन के जीवन में यह अनुभव करते हैं कि यदि हमें उचित आहार नहीं मिले तो असंभव है। क्योंकि आहार ही हमारे जीवन की समस्त गतिविधियों के संचालन का ऊर्जा स्रोत है। इसलिए जिस प्रकार का ऊर्जा स्रोत हम उपयोग में लेगें उसी प्रकार हमारे जीवन की गतिविधियां संचालित होती है। मानवीय जीवन, मशीनी जीवन से भिन्न है। मशीनें कार्य तो करती है, उन्हें भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है लेकिन मशीनों में न तो ज्ञान होता है न ही उनका कोई स्वभाव होता है, और ना ही वह कोई अनुभव करती है। इसलिए मशीनों में किसी भी प्रकार का ऊर्जा स्रोत का उपयोग किया जाए कोई भी दिक्कत नहीं है। लेकिन मानवीय जीवन में जहां सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य के आहार का प्रश्न है, एक उचित, संतुलित आहार की अत्यधिक आवश्यकता है। क्योंकि मानवीय जीवन में ज्ञान, स्वभाव और अनुभव का समावेश है। वही उसे संसार की सर्वश्रेष्ठ कृति बनाता है।

     

    एक मनुष्य ही है, जो अपने ज्ञान का प्रकाश इतना बड़ा सकता है कि वो सृष्टि की तीन लोक की समस्त गतिविधियों को एक समय में जान सके। इसलिए मनुष्य के जीवन में आहार का चयन अत्यधिक आवश्यक है, अन्यथा उसे सुखी जीवन व्यतीत करने की समस्याएं उत्पन्न होगी, तथा वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकेगा। "कहते है जैसा अन्न वैसा होवे मन" इसलिए हमारे प्राचीन ऋषियों ने मनुष्यों को सर्वश्रेष्ठ भोजन के रूप में शाकाहार का चयन किया जो उन्हें उनके जीवन में जीवन के अंतिम लक्ष्य तक पहुंचाने में मददगार हो सके तथा आजीवन सुखी एवं स्वस्थ रख सके।

     

    शाकाहार के लाभ :- शाकाहार भोजन शरीर के लिए उत्तम भोजन है। यह हमारे शरीर के पाचन तंत्र को पूर्ण रूप से ठीक रखता है। हमारे शरीर में रक्त संचार को उचित बनाएं रखने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने तथा शरीर को शक्ति प्रदान करने का उत्तम स्त्रोत है। शाकाहार भोजन उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, मधुमेह रोग, कैंसर, तनाव, मोटापा जैसी बीमारियों से हमें दूर रखता है तथा हमारे शरीर में उचित प्रोटीन, विटामिन, एन्टीऑक्सीडेंट तथा शर्करा एवं ऊर्जा का नियंत्रण बनाएं रखने में सहायक होता है। यह शरीर में ऊर्जा के संतुलन को बनाए रखते है।

     

    शाकाहार भोजन मस्तिष्क के लिए सर्वश्रेष्ठ आहार है। यह हमारे शरीर में इस तरह की ऊर्जा उत्पन्न करता है जिससे सकारात्मक भाव तरंगे उत्पन्न होती है। सकारात्मक भाव तरंगों के उत्पन्न होने से जीवन अपने श्रेष्ठ लक्ष्यों की प्राप्ति में लग जाता है तथा मानवीय गुण जैसे दया, प्रेम, समता, सद्भाव, मित्रता जैसे संवेदनशील भाव उत्पन्न होते हैं तथा ये भाव ही सृष्टि के सृजन में सहायक होते हैं। इन सकारात्मक भावों का ही परिणाम है कि सृष्टि की मानव जाति आज भी अपने विकास और उच्चतर लक्ष्यों के लिए मिलकर काम कर रही है।

     

    शाकाहार भोजन हमारे जीवन में हमें हिंसक प्रवृतियों से दूर करने में सहायक है तथा जीवन को अहिंसक बनाता है। अहिंसक जीवन ही नई सृष्टि का सृजन करता है तथा यही भाव हमें अन्य जीवों की सृष्टि में रक्षा करने का संवेदन देता है। हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने, आयुर्वेदाचार्यों ने कहा है कि यदि हमें अपने जीवन में भगवान के बताए हुए मार्ग पर चलकर जीवन को मोक्षरूपी अंतिम लक्ष्य तक पहुँचाना है, तो हमें अर्हम् योग को जीवन में अपनाना होगा। इसका सतत् अभ्यास करना होगा तथा शाकाहार के माध्यम से निरंतर प्रयास करते हुए गुरुओं के बताए मार्ग पर चलकर हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। शाकाहार ही हमारे प्रकृति के सौन्दर्य को बनाये रखने में तथा पर्यावरण को बचाये रखने में सहायक सिद्ध होगा। जो इस सृष्टि पर मानव जीवन की व अन्य जीवों की निरंतरता बनाये रखने का मार्ग प्रशस्त करेगा। अत: हमें शाकाहार को जीवन में अपनाकर मुनिश्री प्रणम्य सागर जी के अर्हम् योग ध्यान को करते हुए अपने जीवन के लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए।

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    • Meditation of 'Oham' at Nabhichakra Strengthens the body and meditation of 'Arham' at head strengthens the mind.
    • With the Continuous practice of 'Arham' meditation, we will be able to control all the negative thoughts all the time. Negative thought is problem of every student, community, organisation and sadhak today.
    • We can live together and love one another only when our physical and mental states are in sound position.
    • We want peace in globe, not pieces.
    • By the realisation of our self we can also see others beyond their colour, culture, country and creed. Then we can behave with everyone as our brother, sister, mother and father. That is the only way to create humanity in a human being.
    • Arham yoga developes an attitude to live with together. I and all are we (Hum), not onlyI. When I is discarded, we become one for all and all for one. So we stand united, i.e.nationalism.
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  22. णमो अरिहंताणं

    णमो सिद्धाणं

    णमो आइरियाणं 

    णमो उवज्झायाणं

    णमो लोए सव्वसाहूणं

     

    इसको अपराजित मंत्र, अनादि अनिधन मूल मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र आदि कई नामों से जाना जाता है। इस मंत्र को नमस्कार मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र में किसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार नहीं किया गया है किन्तु उन सभी आत्माओं को नमस्कार किया जाता है जो आत्मायें राग, द्वेष, मोह, कषाय आदि विकारी भावों को जीत चुके हैं।

     

    उन्हीं आत्माओं को "जिन" कहा जाता है। "जिन" आत्माओं में आस्था रखने वाले जैन कहलाते हैं। णमोकार महामंत्र में 5 पद हैं जिनमें पंच परमेष्ठियों को नमस्कार किया जाता है। परमेष्ठी अर्थात् परम उत्कृष्ट पद में स्थित आत्मा। यह पांच हैं - अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु।

     

    अरिहंत परमेष्ठी - जो कषायों के पूर्ण नाश के द्वारा सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी हुए हैं, वे अरिहंत आत्मा हैं, वह शरीर सहित होते हैं। 8 कर्मों में से इनके 4 कर्मों का अभाव हो जाता है।

     

    सिद्ध परमेष्ठी - जो 8 कर्मों से रहित हैं, शरीर से रहित हैं, मात्र ज्ञान स्वरूप, अदृश्य, सूक्ष्म-परिणमन को लिए हुए हैं। और लोक के सर्वोच्च स्थान पर सदैव अपने आनंद में मग्न रहते हैं। वे पुनः संसार में नहीं आते हैं। अरिहंत एवं सिद्ध परम शुद्ध आत्मायें हैं जो परमात्मा के रूप में सभी के लिए ध्येय (ध्यान करने योग्य) हैं क्योंकि शुद्ध आत्माओं के ध्यान से ही शुद्ध बना जा सकता है।

     

    आचार्य परमेष्ठी - जो पूर्ण रूप से गृह त्याग करके जीवन पर्यन्त के लिए पांच पापों से विरक्त रहते हैं, शिष्यों को शिक्षा, दीक्षा एवं प्रायश्चित देते हैं, व्यवहार कुशल एवं जिन दर्शन के मर्म को जानने वाले होते हैं, स्वकल्याण के साथ समाज, देश और राष्ट्र की उन्नति के बारे में भी प्रयत्नशील रहते हैं, संघ संचालक होते हैं एवं रत्नत्रय की आराधना स्वयं भी करते हैं एवं दूसरों को भी कराते हैं वे आचार्य परमेष्ठी हैं।

     

    उपाध्याय परमेष्ठी - जो पांच पापों से जीवन पर्यन्त के लिए विरक्त रहते हैं, रत्नत्रय के आराधक होते हैं, मुनि संघ को अध्ययन कराने का विशिष्ट कार्य करने से उन्हें उपाध्याय करते हैं।

     

    साधु परमेष्ठी - जो सभी प्रकार के व्यापार, परिगृह से मुक्त होकर जीवनपर्यन्त के लिये 28 मूलगुणों का पालन करते हैं तथा आत्म साधना में तत्पर रहते हैं, ज्ञान-ध्यान में लीन वह साधु परमेष्ठी हैं। कषायों एवं काम वासना से रहित, आत्मिक शुद्धि से पूर्ण, रत्नत्रय धारण करने वाले आचार्य, उपाध्याय एवं साधु परमेष्ठी भी ध्येय (ध्यान करने योग्य) हैं।

     

    नोट :- आचार्य एवं उपाध्याय यह विशिष्ट पदवियाँ जो उनकी कुशलता को देख कर प्रदान की जाती हैं यह दोनों ही साधु के योग्य सभी मूल गुणों का पालन करते हैं।

     

    रत्नत्रय - सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र - इन आत्मिक गुणों को रत्नत्रय कहते हैं।

    सम्यक् दर्शन - अंधविश्वासों से परे एक समीचीन आस्था

    सम्यक् ज्ञान - उस समीचीन आस्था के अनुरूप ज्ञान

    सम्यक् चरित्र - उस ज्ञान के अनुरूप ढली हुई क्रियाएँ

     

    • णमोकार मंत्र में सभी पापों को, दुर्विचारों को, विकारी भावों को एवं दुष्कर्मों को नष्ट करने की अदभुत शक्ति है।
    • वर्तमान में हिंसा, आतंकवाद, चोरी, दुराचार, भ्रष्टाचार की भावनाओं से जो ब्रह्मांड में नकारात्मक ऊर्जा प्रदूषण के रूप में फैलती है, इसी के परिणाम स्वरूप भूकम्प, बाढ़, सुनामी लहरें, दुर्भिक्ष (समय पर वर्षा एवं अनाज उत्पन्न नहीं होना) एवं अकाल की स्थिति बनती है। वैज्ञानिको ने इन Waves को आइनस्टाइन पेन व्हेवज (E.P.W.) के रूप में स्वीकार किया है। 27/11/1997 में जिनिव्हा, स्विट्जरलैंड में विश्व धर्म परिषद हुई थी। उस परिषद में विश्व शान्ति निर्माण करने वाले महामंत्र के रूप में णमोकार मंत्र को मान्यता दी गई। इसलिए इस णमोकार मंत्र को पूरे विश्व में शांति के लिए और इस ब्रह्मांड को सकारात्मक ऊर्जा से भरने के लिए णमोकार मंत्र की ध्वनि से उत्पन्न तरंगों की आज बहुत आवश्यकता है।
    • णमोकार मंत्र से उच्चरित ध्वनियों से धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों प्रकार की विधुत शक्तियाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे कर्म कालिमा नष्ट हो जाती है, इसी कारण सभी भगवंतों-संतों ने इसी महामंत्र का आश्रय लिया।
    • मंत्र की ध्वनियों के संघर्ष से आत्मिक शक्तियाँ प्रकट होती हैं, मंत्र का निर्माण अनेक बीजाक्षरों से होता है। ॐ, हां, हीं, क्लीं आदि ये सभी बीजाक्षर कहलाते हैं। इन सभी में प्रधान “ॐ” बीजाक्षर है, इसी तरह “अर्हं” है जो बीजाक्षरों से मिलकर बना हुआ मंत्र है।
    • “अर्हं” में प्रथम अक्षर “अ” अंतिम अक्षर “ह” है जो अ से ह तक की पूरी वर्णमाला के अक्षरों की शक्तियों को समेटे हुए है। अर्थात् ज्ञान से पूर्ण भरा हुआ मंत्र।
    • आचार्य “शुभचन्द्र महाराज जी” ध्यान के महानग्रंथ “ज्ञानार्णव” में लिखते हैं कि - “बुद्धिमान योगी का ज्ञान के लिए बीजभूत संसार में जन्म, मरण रूप अग्नि को शांत करने के लिए मेघ समान पवित्र एवं महान ऐश्वर्यशाली इस मंत्र का ध्यान करना चाहिए। यह सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धियों को देने वाला है। यह अर्हं- अ से अरहंत और नमो लोए सव्वसाहूणं में साहू शब्द के ह कार को ग्रहण करके भी बना है।” इसलिए यह ॐ कार की तरह पांच परमेष्ठी का वाचक है। इसे सिद्ध परमेष्ठी का वाचक भी कहा गया है।

     

    अर्हं योग - योग का अर्थ जोड़ना होता है। अर्हं मंत्र के माध्यम से या णमोकार मंत्र के माध्यम से अपने शरीर, मन एवं वचन को शुद्ध एवं ज्ञान से परिपूर्ण आत्माओं से जोड़ना “अर्हम् योग” कहलाता है। जिसके फलस्वरूप अपने ही आत्म तत्त्व से जुड़ना होता है इसलिए यह आत्म योग / परमात्म योग भी है।

     

    अर्हम् योग = परमात्म योग = आत्म योग

    सावधानी - अर्हम् योग करने से पहले पांच नमस्कार मुद्रा, स्थिर आसन और श्वासोच्छ्वास के द्वारा णमोकार मंत्र को 9 बार पढ़ना जरूरी है। इस प्रक्रिया को करने से शारीरिक रोग और मानसिक दुर्बलताओं को जीतने की अदम्य शक्ति प्राप्त होती है। अर्हं योग सभी प्रकार की सांसारिक कामनाओं की पूर्ति तो करता ही है, साथ ही चित्त की स्थिरता करके आत्मिक सुख का आनंद भी प्रदान करता है।

     

    उद्देश्य -

    1. योग शिक्षा और अभ्यास द्वारा जागरुकता।
    2. योग शिविर व ध्यान शिविर द्वारा जन कल्याण।
    3. मानव कल्याण हेतु विभिन्न शिक्षा व चिकित्सालय आयोजन।
    4. असहाय और बीमार जन को निःशुल्क/उचित दर पर चिकित्सा उपलब्ध कराना।
    5.  गरीब बालकों को उचित शिक्षा के अवसर उपलब्ध करवाना व शिक्षा सामग्री की व्यवस्था आदि।
    6. पर्यावरण सुरक्षा हेतु जनहित में कार्य व स्वच्छता अभियान।
    7. बालिकाओं की शिक्षा एवं सुरक्षा के लिए जागरुकता अभियान व कार्यशाला।
    8. किसानों को ऑर्गेनिक खेती प्रणाली की ओर अग्रसर करने के कार्यक्रम के आयोजन व कार्यशालाएं लगवाना।
    9. युवाओं में विवाह की उचित समझ देना।
    10. युवाओं का उचित मार्गदर्शन करना।
    11. अनाथ व अबोध बच्चों की सहायता।
    12. विकलांग हेतु उचित सहायता।
    13. चिकित्सा हेतु हॉस्पिटल निर्माण व उचित दरों पर चिकित्सा।
    14. नेचरोपैथी पद्धतियों का प्रशिक्षण व उपचार एवं एक्यूप्रेशर और आयुर्वेद व्यवस्था।
    15. शास्त्र ज्ञान हेतु शैक्षणिक शिविरों का आयोजन।
    16. बच्चों की पाठशाला का संचालन।
    17. विभिन्न धार्मिक आयोजनों द्वारा लोक कल्याण।
    18. विभिन्न शिविरों के माध्यम से मंत्र व योग आसनों के द्वारा आरोग्य व अभ्यास का प्रशिक्षण।
    19. जनकल्याण हेतु विभिन्न चित्रों एवं औषधियों व सामग्री की प्रदर्शनी व विक्रय।
    20. विभिन्न सामाजिक व धार्मिक आयोजन में स्वल्पाहार व जल आदि की व्यवस्था।
    21. शास्त्रों का शिक्षण व रक्षण व संरक्षण करना।
    22. विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों में प्रभावना करना।
    23. मंदिरों में जीर्णोद्धार, दान इत्यादि की व्यवस्था करना / निर्माण हेतु उचित मार्गदर्शन।
    24. बाल विकास कार्यशालाओं का आयोजन।
    25. मूक जीवों की चिकित्सा की व्यवस्था करना/चारा/ तिर्यंच पशुओं के लिए दाना।
    26. समाज में प्रचलित कुरीतियों व कुनीतियों को विराम देने हेतु प्रयासरत रहना।
    27. देश व विदेश में अर्हम् योग व ध्यान का प्रचार प्रसार हेतु उचित कार्यशालाएँ खुलवाना।
    28. धर्म प्रभावना हेतु विभिन्न धार्मिक तीर्थ स्थलों की यात्रा का आयोजन करवाना एवं अन्य जनहित के कार्य।
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    1. सर्वप्रथम अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु मुद्रा का कम से कम आधा मिनट अभ्यास करें।
    2. इन मुद्राओं का अभ्यास यथाशक्ति बढ़ाया जा सकता है।
    3. शांत बैठ जायें, ज्ञान मुद्रा में स्थित हों।
    4. थोड़ी देर अपनी श्वासों पर ध्यान दें। नासिका छिद्रों से आती-जाती श्वांस को देखते रहें।
    5. फिर अपने नाभि चक्र पर ॐ को स्थापित करें और मस्तिष्क पर अर्हं के अक्षरों को स्थापित करें।
    6. ॐ अर्हं नम: का लय बद्ध जोर से उच्चारण के साथ नाद करें।
    7. यह नाद तीन से अधिक बार जितना संभव हो करें।
    8. मन को इस प्रक्रिया से बांध कर रखें।
    9. ॐ अर्हं का प्रकाश जब बढ़ जाए तो शांत बैठकर पूरे शरीर में फैली हुई आत्मा का अनुभव करें।
    10. मन हटे तो पुन: श्वास पर टिकायें या फिर पूरे शरीर के संवेदनों को एक साथ ध्यान से देखते रहें।
    11. इस तरह 10-15 मिनट तक मन को शान्त और स्थिर करने के बाद आप अपने पूरे शरीर को और मन को स्वस्थ एवं ऊर्जावान महसूस करने लगेंगे।
    12. इसके बाद अर्हं योग क्रिया करें।
    13. मन को विशुद्ध भावों से भरने के लिए अर्हं योग प्रार्थना करें।
    14. ध्यान समाप्त करके अपने आसपास की ऊर्जा को विश्व कल्याण की भावना से विसर्जित कर दे |
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