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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सिद्धोदयसार 9 - विराट कवी सम्मेलन

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    बचाओ पशु-धन, नहीं तो मिट जायेगा वतन श्री दिगम्बर जैन रेवा तट सिद्धोदय तीर्थ नेमावर में पावन पयुर्षण पर्व के उपलक्ष्य में आचार्य विद्यासागर जी महाराज के सान्निध्य में "मांस निर्यात बन्द करो, अत्याचार का अन्त करो' 'बचाओ पर्यावरण नहीं तो अकाल मरण'बचाओ पशु-धन, नहीं तो मिट जायेगा वतन" आदि अहिंसा, पर्यावरण, करुणा, शाकाहार के चर्चित विषयों को लेकर एक विराट कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ। जिसमें विभिन्न स्थानों से आये कवियों ने अपनी जोशीली बुलन्द आवाज में कविता पाठ किया सारे कवियों ने खचाखच भरी धर्म-सभा को मोहित कर लिया सबके मन में पशुओं पर हो रहे अत्याचार के विरोध में एक अहिंसक भावना पैदा हुई। इस विराट कवि सम्मेलन का संचालन प्रसिद्ध कवि सत्य नारायण 'सतन' ने किया।


    मंगलाचरण के दौर पर सत्य नारायण 'सतन' की गुरुभक्ति की पंक्तियों ने जन मानस के हृदय गद्गद् कर दिये।

     

    धर्म देशना विद्यासागर जी की हृदय से स्वीकार करो,

    बंद करो मांस निर्यात पशु संहार बन्द करो।

    तुम बने महाराज हो गए नंगे,
    जिधर रखे पैर वहीं हो हर-हर गंगे ||

    कवि कैलाश जैन ने मंगलाचरण करते हुए अपनी कविता की-


    ठहर गया विद्यासागर नर्मदा के तीर

    स्वयं नर्मदा बोल उठी ये इस युग के महावीर।

    दूध की नदियाँ लोप हो गई

    धरा खून से लाल-लाल,

    कृष्ण कन्हैया की गैय्या भी,

    हो गयी आज यहाँ हलाल.....

    क्या कल बुचाद्खानो में

    इंसान को कटा जायेगा

    पशु मांस खाने वाला क्या,

    इंसानों को खायेगा |

    ये पंक्तियाँ केवल पंक्तियाँ नहीं इसमें एक सच्चाई भी निहित है कत्लखानों में जो पशु काटे जा रहे है उनकी बेहद संख्या है इसी रफ्तार से पशु कटते रहे तो एक दिन देश में पशु समाप्त हो जायेंगे। हम गाय, बैल, भैंस, आदि जानवरों के चित्र मात्र कैलेंडर में देखेंगे और उनके नाम शब्दकोशों में पढ़ेंगे। स्थिति बहुत भयानक है जिस देश में कृष्णजी की पूजा होती है। उसी देश में कन्हैया की गैय्या कत्ल हो रही है, उसी का मांस निर्यात हो रहा है आवश्यकता इस बात की है कि हम जनता को इस पशु हत्या का बोध करायें, पशुओं की हत्या का विरोध करायें। यदि हमने इस हत्याकाण्ड को अनदेखा कर दिया तो आने वाले समय में हमको महा संकट से गुजरना होगा देश में कोई संकट न आये इससे पहले ही हम अपनी सुरक्षा कर लें। वस्तुत: यदि इंसान इसी प्रकार मांस का भक्षण करता रहा तो एक दिन सारे पशु समाप्त हो जायेंगे फिर नम्बर आयेगा इंसान का। आदमी, आदमी को न खाये इसके लिए हमको अभी से वह शाकाहार क्रांति लाना है जिसमें हम भी सुखी रहें और पशु पक्षी भी मस्त रहें।


    कवि सुरेश वैरागी मन्दसौर ने भी लोगों को हिन्दुस्तान की पहचान बताई -


    जिन्हें पूजता राम, महावीर, गौतम का देश,

    उनके मांस का निर्यात कर दिया भारत से विदेश।

    सोचो समझो भारत माँ के मुँह में आज मुस्कान नहीं,

    पशु मांस निर्यात करें यह अपना हिन्दुस्तान नहीं।

    ठीक ही है भारत कृषि प्रधान देश है अहिंसा प्रधान देश है यहाँ गाय की पूजा होती है, यहाँ हीरा,मोती, स्नों का निर्यात होता था यहाँ पशुपालन होता है। आदि ब्रह्मा ने युग के आदि में भारतीय जन मानस को यह नारा दिया था कि 'कृषि करो या ऋषि बनो।' भारत ने यह नारा भुला दिया, पशु पालन करने वाला देश आज पशुओं का कत्ल कर रहा है यह भारत के लिए कलंक है। भारतीयो! जागो मांस निर्यात करना भारत की संस्कृति नहीं है। भारत की गरिमा को बताते हुए एक अन्य कवि ने कहा।


    देखो शंकर तेरा नन्दी कत्लखानों में काटा जाता है।

    राजनीति के अन्धों द्वारा, देश मिटाया जाता है।

    मंगल पाण्डेय के इतिहास को दुहराया जाता है।

    और गौ माता का खून बहाया जाता है।

    आप अपनी आजादी के इतिहास को जरा याद करें, भारत की आजादी का इतिहास ही गौ रक्षा से प्रारम्भ हुआ था। कारतूस पर गाय की चर्बी लगाकर अंग्रेजी सरकार ने भारतीयों का धर्म भ्रष्ट करना चाहा लेकिन मंगल पाण्डेय ने इसको सहन नहीं किया और विद्रोह कर दिया। वस्तुत: वह विद्रोह नहीं था वह तो अहिंसा की लड़ाई का मंगलाचरण था। हिंसा को रोकने के लिए हम जो कदम उठाते हैं वह हिंसा नहीं कहलाती वह तो अहिंसा का कदम है। हमको भी आज आवश्यकता है एक अहिंसा की लड़ाई लड़ने की। सरकार ने जो कत्ल घर, बूचड़खाने खोल रखे हैं उन तमाम बूचड़खानों को समाप्त करना है। भारत को गौ शालाओं की आवश्यकता है कत्लखानों की नहीं।


    जीवों की रक्षा करना ही हमारी संस्कृति है इसी बात को कहता है एक कवि-


    जो जलचर, थलचर, नभचर हैं

    उनकी रक्षा करना ही हमारी कल्चर है।

    और अब हमको जीवों की रक्षा के लिए एक जंग छेड़ना होगी सरकार को समझाना होगा, जनता को जगाना होगा। अपनी भारतीय संस्कृति और इतिहास का अध्ययन करना होगा और इसके लिए एक कवि कहता है |


    बहुत सहा हमने अब तक,

    अब नहीं सहन करेंगे।

    खून की धारा भारत में,

    अब नहीं बहने देगे।

    बन्द करो मांस निर्यात,

    नहीं तो, हिन्दुस्तान में नहीं रहने देंगे।

    वस्तुत: यह संकल्प है हमको अब सचेत हो जाना है हमारा देश वीरों का देश है, रणवीरों का देश है, बहादुरों का देश है शहीदों का देश है। हम मौत से डरने वाले नहीं है हम तो पाप से डरते हैं। क्षत्रिय वही कहलाता है जो निर्बलों की रक्षा करता है। हथियार चलाने वाला क्षत्रिय नहीं, अपितु सच्चा क्षत्रिय तो वह है जो दूसरों की जान बचाता है, सच्चा वीर तो वह है जो दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान भी कुर्बान कर देता है। इसी बात को कहता है एक कवि


    पशुओं की रक्षा के खातिर, कुर्बान जवानी कर देंगे,

    इस धरती से बूचड़खानों की, खतम कहानी कर देंगे || 

    मेरे प्रिय जवानों जागो उठो, अपनी चेतना को जागृत करो, और भारत को हिंसा से मुक्त करो, हमको हिंसा मुक्त भारत का निर्माण करना है कत्लखानों से मुक्त भारत का निर्माण करना है, मांस निर्यात मुक्त भारत का निर्माण करना है। कुछ करो-


    भाई-बहिनो कुछ नई बात कर लो,

    हिन्दुस्तान से भ्रष्ट नेताओं का निर्यात कर दो।

    भ्रष्ट नेताओं का निर्यात करने में कोई हिंसा भी नहीं है, क्योंकि उनको तो जिन्दा निर्यात करना है, वे तो पशुओं को कत्ल करके उनका मांस निर्यात कर रहे हैं। हमको उनका जिन्दा निर्यात करना है। वस्तुत: आज भारत को अहिंसा की आवश्यकता है, यदि हिंसा को फाँसी लगाना चाहते हो, हिंसा को कालापानी भेजना चाहते हो तो अहिंसकों की फौज तैयार करो और एक जन आन्दोलन करके तमाम हिंसा के कार्य को रोक दो और एक गीत में सारी जनता की लयबद्ध कर दो वह गीत यह है कि-


    एक कलंक लग रहा है आदमी की जात को,

    बंद करो, बंद करो, मांस के निर्यात को।

    क्या हो गया, ये गाँधी के देश को,

    रुपये के बदले खून बेचता विदेश को॥

    और भी कवियों ने अपनी ओजस्वी वाणी के द्वारा सारे जन मानस में एक चेतना जागृत कर दी, कवियों का संचालन कर रहे सत्यनारायण सत्तन ने शाकाहार की बात करते हुए उसकी गरिमा बढ़ाई एक प्रसंग उन्होंने सुनाया कि एक व्यक्ति ने उनसे कहा -


    मैं मुर्दा खाता हूँ

    लेकिन अण्डा नहीं खाता,

    क्योंकि अण्डे का

    जन्मस्थान ठीक नहीं ???

    वस्तुत: अण्डा तो मांसाहारी ही है उसको शाकाहार नहीं कहा जा सकता अत: 'सण्डे हो या मण्डे कभी न खाओ अण्डे' अन्त में जब भी कवियों ने अपनी-अपनी कविताएँ पढ़ीं तदुपरांत कवियों के कवि,महाकाव्य'मूक माटी' के रचयिता मनीषी महाकवि आचार्य विद्यासागर महाराज ने अपनी अमृतवाणी रूपी झरने से तीन घंटे से आस लगाये बैठे श्रोताओं को तृप्त किया। आचार्य श्री ने कहा कि- हमारा देश सत्य का पुजारी है, हमारे देश में अहिंसा की ध्वजा फहराती है फिर भी आज सरकार जो मांस का निर्यात कर रही है यह बड़ी पाप की बात है। अब हमको इस हत्याकांड का विरोध करना है, इसके लिए डरना नहीं है। हिंसा को रोकने के लिए जो हिंसा हो जाये वह हिंसा नहीं है वह तो अहिंसा है। प्रतिदिन कत्लखानों में लाखों जीवों का खून हो रहा है ऐसी स्थिति में हम धर्म की बात कैसे कर सकते हैं? सबसे पहले पशु हत्या के इस अधर्म को रोक लो फिर धर्म की बात करो।

     

    माँ के मरने पर बच्चे का पालन गौ माता के दूध से होता है। दुनियाँ में दो ही दूध हैं- पहला माँ का दूध दूसरा गौ माता का दूध। आज गाय भी खतरे में है और दूध भी। अब कायरता को छोड़ दो और पशु-हत्या को रोकने के लिए आगे आओ।
     

    यह भारत योग प्रधान है भोग प्रधान नहीं, अब उपयोग लगा कर योग की साधना करो, यहाँ आत्मा परमात्मा की साधना होती है और यह आत्मा सभी के पास है पशुओं के पास भी है फिर पशुओं का कत्ल क्यों? यह पापाचार कब तक चलेगा याद रखो। जब किसी की अति हो जाती है जो उसकी इति भी होती है अब पाप की इति करना है कीमत पैसों की नहीं कीमत तो जीवन की है किसी के जीवन को छीनने का हमको कोई अधिकार नहीं सबको जीने का अधिकार है। अत: किसी को मत मारो सबको जीने दो जीवन सबको प्यारा है। चाहे वह जानवर हो या आदमी अत: किसी भी जीव को मत मारो ।

    Edited by admin


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