एक कार्य की सिद्धि के लिए अनेक कारण चाहिए। वीर मरण, समाधि-मरण बहुत टेढ़ी खीर है। पहाड़ दूर से बढ़िया व मामूली चढ़ाई वाला दिखता है। पर पास जाने पर कंकड़-पत्थर, चट्टानें आदि देखने पर चढ़ाई कठिन मालूम देती है। इसी प्रकार समाधिमरण दूर से सरल दिखता है, पर जब समाधिमरण को धारण करते हैं, तब मालूम पड़ता है। बारह व्रतों के साथ तेरहवां व्रत सल्लेखना है। पंच नमस्कार मंत्र का ध्यान करते हुए मुनियों, आचार्यों के सान्निध्य में जो मरण होता है, वही समाधि-मरण है। वैयावृत्य पार्थिव शरीर का नहीं, उसमें उपयोग का था। आचार्य महाराज कहते थे कि जिस चीज से डर है उस चीज के पास बार-बार जाने पर वह डर भाग जाता है। मरण से डर रहे हो, जब उसको अपना पड़ोसी बना लोगे, तो मरण से डर नहीं रहेगा। मरते वक्त लुकमान भी यह कह गया, यह घड़ी हरगिज न टाली जायेगी। अत: वीर मरण जब आप करेंगे तभी मृत्युंजयी बन जाओगे | कहा भी है कि Death Keeps no Calender.
जीवन भर तपस्या करना, यह एक मन्दिर का निर्माण करना है, और जो अन्त में समाधिमरण धारण कर लेना है, वह मन्दिर में कलश चढ़ा देना है।