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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सिद्धोदयसार 7 - वतन को बचाओ पतन से

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    आज लोगों को अपने तन की चिन्ता है। वतन की नहीं, इसलिए वतन का पतन हो रहा है। यदि वतन को पतन से बचाना चाहते हो तो वतन की बात करो तन की नहीं। वतन की रक्षा के लिए हमको अपने ऐतिहासिक प्रसंगों को याद करना होगा। अपना इतिहास खोलना होगा, अपनी संस्कृति को सामने रखना होगा। इतिहास और संस्कृति को भूलकर हम अपने देश का नव निर्माण नहीं कर सकते, क्योंकि हमारी संस्कृति अहिंसा प्रधान रही है जबकि आज हम अहिंसा को भूलकर हिंसा को पसंद कर रहे हैं कैसे कहें कि हम अपने देश को सुरक्षित रख सकेंगे। संस्कृति को मिटाकर, इतिहास को भुलाकर देश का सुधार नहीं किया जा सकता। संस्कृति को आदर्श मानकर ही हम अपने कदम आगे बढ़ा सकते हैं अन्यथा हम अपना कोई आदर्श स्थापित नहीं कर सकते। 

     

    भारतीय साहित्य कहता है पानी को कपड़े में छानकर पियो, रास्ते पर नीचे देखकर चलो मुँह से सत्य कहो और मन को पवित्र रखो। लेकिन आज तो लोग खून को छानकर पीने की बात कर रहे हैं! यह कितना बुरा दिन है इस देश का कितनी बड़ी अहिंसा का भाव कि पानी छानकर पियो ताकि सूक्ष्म जीवों की रक्षा हो सके, उनका घात न हो, उनकी हिंसा न हो लेकिन आज तो बड़ी हिंसा को भी ध्यान में नहीं रखा गया, पशु-वध होने लगा, पशुओं का मांस निर्यात होने लगा, कहाँ गई वह हमारी भारतीय आचार संहिता की सत्यता? आज सत्य ही लुप्त हो रहा है, पवित्रता ही लुप्त हो रही है, अहिंसा ही लुप्त हो रही है, दया, करुणा ही लुप्त हो रही है। क्या होगा इस देश का? यह आज एक विचारणीय बिन्दु है।

     

    याद रखो। जिस दिन दया का समापन हो जायेगा यह धरती शमशान बन जायेगी। दिल में दया के रहते ही हम आपस में रहकर कुछ कर सकते है, दया के अभाव में मात्र आपसी टकराव ही होगा, हिंसा ही होगी इसलिए हिंसा को रोकने के लिए दिल में दया को पैदा करना होगा, दया हिंसा को रोकती है, जबकि दया की कमी हिंसा को जन्म देती है। देश में दया की कमी के कारण ही कत्लखाने खुल गये हैं यदि हम दया की कमी को दूर कर देंगे तो देश के सारे कत्लखाने बंद हो जायेंगे और अब समय आ गया है दिल में दया को जागृत करने का यदि हमने दया की उपेक्षा की तो यह हमारे लिए खतरनाक सिद्ध हो सकती है। आज आवश्यकता है पशुओं को बचाने की जो बेमौत मारे जा रहे हैं। बेकसूर, निर्दोष प्राणियों की हत्या महापाप है, यह महापाप हमको रोकना चाहिए। यदि हम जीव-जन्तुओं की रक्षा नहीं कर सके तो इतने बड़े राष्ट्र की रक्षा कैसे करेंगे? जीव जन्तुओं को मारना जघन्य अपराध है। पशु-वध जैसे हिंसक, क्रूर कार्य करके हम अपने राष्ट्र को उन्नत नहीं बना सकते। हिंसा से उन्नति संभव नहीं है, हिंसा को छोड़े बिना राष्ट्र उन्नत हो ही नहीं सकता।

     

    बोलना सबको आता है लेकिन सत्य बोलना सबको नहीं आता, लाइट जलाने मात्र से जीवन में उज्ज्वलता नहीं आ जाती, जीवन में डी-लाइट (सुख) भी होना चाहिए, जीवन में मात्र रास्ता नहीं साथ-साथ आस्था भी चाहिए, वस्तुत: जिस दिन मांस निर्यात रुकेगा उसी दिन सही 'स्वतंत्रता दिवस' होगा। यह स्वतंत्रता नहीं है कि हम मनमानी करें स्वतंत्रता का अर्थ तो सभी जीवों को जीने का समान अधिकार दिलाना होता है यह कौन-सी स्वतंत्रता है कि हम अपने लिए तो मानवाधिकार की बात करें और पशुओं को अनुपयोगी कहकर उनका कत्ल कर दें। यह मानवाधिकार भी नहीं है। मानव को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी की जान पर हमला करके किसी का जीवन छीने। जीने का अधिकार सबको है मृत्युदण्ड भी उसी को मिलता है जिसने कोई क्रूर अपराध किया हो लेकिन ये बेकसूर पशु निरपराधी हैं। इन्होंने कोई अपराध नहीं किया है फिर इनको बेमौत क्यों मारा जा रहा है? इस अपराध की भी सजा होना चाहिए।

     

    भारत वह राष्ट्र है जिसने हमेशा सारे विश्व को दिशा बोध दिया है और अहिंसा का सन्देश दिया है लेकिन वही भारत आज अपनी दिशा से भटक गया है। अहिंसक देश को आज अहिंसा का उपदेश देना पड़ रहा है। क्योंकि उसने हिंसा को विकास का साधन समझ लिया है। जो गलत कदम है। मात्र अर्थ नीति ही सब कुछ नहीं है परमार्थ नीति भी होना चाहिए। अर्थ नीति देश को समृद्ध नहीं कर सकती, भौतिक सुख सुविधाएँ आदमी को सुखी नहीं बना सकती। सुखी बनने के लिए परमार्थ नीति की आवश्यकता है। केवल अर्थ नीति व्यक्ति को सन्तुष्ट नहीं कर सकती उसके साथ परमार्थ भी होना चाहिए परमार्थ का अर्थ न्याय नीति का सहारा लेकर जीवन विकास है। हम न्याय की बात करते हैं लेकिन न्याय का काम करना नहीं चाहते। हमारे न्यायालय किसलिए हैं? न्याय और कानून की व्यवस्था हिंसा और अपराध को रोकने के लिए ही तो हैं न कि 'शो' के लिए। फिर हमारे न्याय का क्या अर्थ जो हिंसा पर प्रतिबंध न लगा सके। क्या न्यायालय कत्लखाने नहीं रुकवा सकता? हिंसा को रोकने में न्यायालय की क्या भूमिका है? ये कत्लखाने हिंसा और कत्ल के ठिकाने हैं, ये कत्लखाने पर्यावरण के लिए घातक हैं। प्रदूषण, गन्दगी फैलाने वाले हैं इन पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए कत्लखाने मुक्त भारत का निर्माण करो यही भारत की सही स्वर्ण जयन्ती है।

    Edited by admin


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