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सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • प्रवचन सुरभि 29 - सीख - सयानी

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    अनादिकाल से जो यह जीव दुख उठा रहा है, वह सुख का मार्ग अपना सके, दुख को छोड़ सके, इसके लिए गुरु करुणा करके सीख देते हैं। यह वह सीख नहीं है जो विदाई के समय बरातियों को देते हैं। दुनियादारी के प्राणी को सुख प्राप्त कराना, यही गुरुओं का कार्य होता है। सीख देने में साक्षात् प्रसिद्ध भगवान् महावीर हुए, तदनन्तर गणधर आदि हुए। उन्होंने मोक्ष मार्ग का संपादन किया। मोक्ष का संपादन अलग है और मोक्ष मार्ग का संपादन अलग। पंचम काल के अंत तक, जब तक तीर्थ चलता रहेगा, तब-तक यह भगवान् महावीर का बताया हुआ मोक्ष मार्ग चलता रहेगा। जब मोक्ष मार्ग ही छूट जायेगा, तब मोक्ष कभी नहीं मिलेगा। इसलिए इस मार्ग को अपनाने के लिए जल्दी-जल्दी करो। यह हमारे ऊपर भगवान् महावीर की असीम कृपा रही है कि उन्होंने अपने साथ ही मोक्ष मार्ग को समेटा नहीं, बल्कि खुला रखा। यह मार्ग सिर्फ जैनियों के लिए ही नहीं है, सारे विश्व के लिए है।

     

    आर्य पाँच प्रकार के बताये गये हैं -१. क्षेत्र आर्य, २. जाति आर्य, ३. कर्म आर्य, ४. चारित्र आर्य और ५. दर्शन आर्य बताये हैं। जो क्षेत्र के द्वारा पहचाना जाये वह क्षेत्र आर्य, जाति के द्वारा पहचाना जाये वह जाति आर्य, कर्म के द्वारा पहचाना जाये वह कर्म आर्य, जो कुल परम्परा से चारित्र का वहन कर रहे हो वह चारित्र आर्य हैं और ये तो Artificial है बाहरी चीजों को लेकर हैं। पर अन्तिम है दर्शन आर्य, इसका अर्थ भगवान् महावीर का जो दर्शन है कि सभी को मुक्ति मिले, जो उनके मार्ग का अवलम्बन करे तथा चले, वे सब दर्शन आर्य हैं। आप लोगों को भावों को सुरक्षित रखना है। आप दर्शन आर्य बनने की चेष्टा करो। आप तो अन्य चारों आर्यों को पकड़ने की चेष्टा कर रहे हो। दर्शन आर्य वह है जो सम्यक दर्शन से अभिभूत है। सम्यक दृष्टि यह चाहता है कि हरेक व्यक्ति आर्य बने, अहिंसक बने हिंसक नहीं।

     

    जिस प्रकार भगवान् महावीर की उदार दृष्टि थी वैसी हमारी दृष्टि हो। सभी जीव मेरे जैसे बने यही महावीर भगवान् का लक्ष्य था, उसी प्रकार उनके अनुयायियों की दृष्टि हो। इसके लिए सतत प्रयत्न होना चाहिए यही पयुर्षण पर्व का उपसंहार है। कोई महान् विद्वान् भी बन जाये तो भी हम नहीं कह सकते कि यह दर्शन आर्य है। दर्शन आर्य मिलना बहुत मुश्किल है। अन्य चारों प्रकार के आर्य तो बहुत मिल जायेंगे। भगवान् महावीर का दिव्य संदेश बाहरी पदार्थों के लिए हुए ही नहीं है। दर्शन आर्य का मतलब भाव निक्षेप है। सम्यक दर्शन को प्राप्त किया हुआ जो है, वह दर्शन आर्य है। चाहे वह म्लेच्छ ही हो। दर्शन आर्य की पूजा देव लोग भी करते हैं क्योंकि वह दर्शन आर्य सबको अपने जैसा दर्शन आर्य बनाना चाहेगा। सम्यक दर्शन की भूमिका तभी बनती है जब वह दर्शन आर्य के सम्मुख आ जाता है। सम्यक दर्शन के लिए देशना लब्धि भी आवश्यक है। वह जिनेन्द्र भगवान् की सीख को चलाने वाला होता है, देशना लब्धि देने वाला होता है। गुरु करुणा को धार कर कहते है। करुणा सदाचार के साथ होती है, बनावटी नहीं। दर्शन आर्य शरीर की ओर, पोशाक की ओर नहीं झुकेगा। वह तो सुख का अनुभव करने के लिए आत्मा की ओर झुकेगा, वह किसी बात को लेकर विस्मय भी नहीं करेगा, वह सोचेगा कि यह तो पुद्गल की चीज है। वह भगवान् की मूर्ति में जरूर विचारेगा, गुणों का चिंतन करेगा, अपनी स्थिति को पिछानेगा। वह कहीं जाएगा तो भी दर्शन आर्य बनाने के लिए ही जाएगा। आप नाम से ही जैनी बने हुए हैं, पर दर्शन की अपेक्षा से बहुत कम है। धर्म को प्राप्त करना है, तो सबसे पहले दर्शन आर्य बनना पड़ेगा। जाति माध्यम बन सकती है, पर धर्म नहीं है। मत कोई जाति या रूढ़िवाद नहीं हो सकता, मत का मतलब अभिप्राय से होता है।

     

    मात्र विषय वासना को लेकर साथीपन नहीं है। रत्नत्रय का पालन दर्शन आर्य बनने के लिए करना है। अनादि से मिथ्या दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूपी छत्र त्रय की आपने सेवा की है। आज तक आपका जीवन रूढ़िवाद को अपनाए है, इसे भूलने की चेष्टा करो और दर्शन आर्य, बनो। यही पर्व का सार है।


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    मात्र विषय वासना को लेकर साथीपन नहीं है। रत्नत्रय का पालन दर्शन आर्य बनने के लिए करना है। अनादि से मिथ्या दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूपी छत्र त्रय की आपने सेवा की है। आज तक आपका जीवन रूढ़िवाद को अपनाए है, इसे भूलने की चेष्टा करो और दर्शन आर्य, बनो।

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