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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सिद्धोदयसार 31 - सत्य की जान है अहिंसा

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    हरदा निकटस्थ नेमावर में स्थित सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र में रविवार १७ अगस्त को आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा- जिसके द्वारा अहिंसा की पुष्टि नहीं हो सकती वह सत्य नहीं कहला सकता। सत्य वहीं है जहाँ अहिंसा है और अहिंसा वहीं है जहाँ सत्य है। सत्य और अहिंसा एक-दूसरे के पूरक हैं। सत्य को छोड़कर अहिंसा नहीं और अहिंसा को छोड़कर सत्य नहीं, हमारे जीवन में सत्य और अहिंसा दोनों होना चाहिए। अहिंसा के अभाव में हमारा जीवन कोई मायना नहीं रखता। आज असत्य ही सत्य सा सिद्ध हो रहा है जब सत्य असत्य के रूप में ढल जाता है तब दर्द होने लगता है। मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम सत्य अहिंसा को अपने जीवन में स्थान दें आज हमारे जीवन से अहिंसा निकल गई सत्य चला गया उसी का परिणाम है कि भारत में हिंसा का दौर तेजी से शुरू हो गया। यदि देश की दशा सुधारना है, उन्नति करना है तो जीवन में अहिंसा को स्थान दीजिए।

     

    आचार्यश्री जी ने फिर कहा हमारे जीवन में प्रशम, संवेग आस्तिक्य और अनुकंपा ये चारों होना चाहिए। अनुकंपा के बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं, मनुष्य की मनुष्यता अनुकंपा यानि करुणा से ही पहचानी जा सकती है। यदि मनुष्य में मनुष्यता है तो करुणा ही उस मनुष्य का मापदण्ड है दूसरा और कुछ नहीं। आज हमको आवश्यकता है कि हम अपनी मरी मनुष्यता को जिंदा करें। मनुष्य के पास जब दया रहती है तब वह भेद नहीं करता कि यह जानवर है या आदमी है, दया में भेद नहीं होता। दया समान रूप से सभी के साथ एक समान की जाती है। दया के अभाव में आज मनुष्य जानवरों से भी गया बीता हो गया, वह आज जानवरों को खाने लगा। जानवरों को खाना या जानवरों को मारना मनुष्यता की हत्या है। जीवन तो सबको प्यारा होता है फिर किसी का जीवन क्यों छठीना जाये?

     

    यह भारत विश्व प्रसिद्ध था इसने अपना आदर्श कभी न खोया। भारतीय संस्कृति बड़ी गौरवपूर्ण संस्कृति है यहाँ के लोग बड़े अहिंसक थे। एक समय था जब भारत में गाय का दूध भी लोग नहीं बेचते थे, दूध नहीं बेचने का मतलब दूध को नि:शुल्क बांट देते थे लेकिन बेचते नहीं थे। कहाँ गया वह भारत? आज तो वह गाय का खून बेच रहा है। भारत को अपनी अहिंसा को समझना होगा अपने अतीत के भारत को याद करना होगा, और इसका दायित्व हम सबका भी है। यहाँ के लोग खेती करते थे पशुओं का पालन करते थे। पशुओं का पालन करने वाला देश आज पशुओं को ही कत्ल कर रहा है जो ठीक भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं है। यह तो सरासर अन्याय है कि अनुपयोगी पशुओं को काटा जाता है। कोई भी जीवन अनुपयोगी कैसे हो सकता है जीवन तो मूल्यवान होता है जीवन को अनुपयोगी नहीं कहना चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि आज हमको हिंसा के विरोध में अपना अभियान चलाना होगा। लोगों को जागृत करना होगा। करुणा, दया को जागृत करना होगा तभी हम देश में कत्लखानों में हो रही इस भयानक हिंसा को रोक सकते हैं अन्यथा हिंसा बढ़ती ही जायेगी और देश का पतन होता ही जायेगा।

     

    आदमी धर्म को जानता है इसलिए तो उसे रात्रि के बारह बजे भी पूछेगे कि क्या दीक्षा लेना है? तो वह मना कर देगा। दीक्षा लेने के लिए मना क्यों कर दिया? इससे सिद्ध है कि वह अच्छी तरह जानता है कि धर्म क्या है अधर्म क्या है? आज धर्म को समझने की आवश्यकता है लेकिन धर्म को वही समझ सकता है जो अधर्म को अच्छी तरह जानता है क्योंकि अधर्म को समझना ही धर्म की पहचान है। हम धर्म को समझने की बात बहुत करते हैं लेकिन अधर्म को छोड़ने की बात नहीं करते। यदि हम धर्म को समझना चाहते हैं तो हमको धर्म के अंगों को पहले समझना होगा तभी हम धर्म अर्थात् चारित्र की बात को दूसरे के सामने कह सकते है अन्यथा नहीं।

     

    निरीह होकर, निभीक होकर बोलना तो सबको आता है लेकिन निरीह होकर, निभीक होकर चारित्र पालना सबको नहीं आता, यह तो बहुत कम लोगों को आता है। निरीह होकर वही चारित्र पाल सकता है जो निभीक रहेगा, जिसको संसार की कोई चाह नहीं, जो न ख्याति चाहता है, न पूजा,न अपना मान-सम्मान। अपने सम्मान की चाह करने वाला व्यक्ति निभांक होकर चारित्र का पालन नहीं कर सकता, निभीक होकर चारित्र पालने में स्वार्थ सबसे बड़ी बाधा है सबसे पहले हमको स्वार्थ का त्याग करना होगा स्वार्थ को त्यागे बिना हमारा कल्याण संभव नहीं। स्वार्थ परमार्थ को बिगाड़ देता है, परमार्थ के लिए स्वार्थ को पहले छोड़ना होगा। स्वार्थ को छोड़े बिना परमार्थ की साधना संभव हो ही नहीं सकती।

     

    आज हम २१ वीं सदी के प्रवेश का इंतजार कर रहे हैं लेकिन हम २१ वीं सदी में प्रवेश करें इसके साथ हमारे पास कौन से आदर्श हैं? शायद हम कत्लखाने मुक्त भारत, मांस निर्यात मुक्त भारत के साथ यदि हम २१ वीं सदी में प्रवेश करें तो बहुत अच्छा होगा। अहिंसा के साथ प्रवेश करें, अहिंसा हमारा आदर्श हो यदि हमारे साथ अहिंसा है तो समझ लेना सब कुछ हमारे साथ है और यदि हमारे पास अहिंसा नहीं तो समझो हमारे पास कुछ भी नहीं। अहिंसा का अर्थ दया है, दया के क्षेत्र में किया गया कार्य कभी भी फालतू नहीं जा सकता, जीवन का सही सदुपयोग तो यही है कि हम करुणावान हों। आप मनुष्य हैं विकासशील हैं लेकिन आपके विकास का क्या अर्थ है आपने जानवरों को क्या समझा है? अरे! जानवर भी जीव है उसके पास भी आत्मा है उसके पास भी संवेदना है।

     

    जानवरों के साथ संवेदना का व्यवहार रखो यदि संवेदना नहीं रही तो फिर आपके पास मात्र जड़ता है। आप चेतन हैं चेतना की बात करो चेतना का काम करो। मानव जीवन कल्याण के लिए है। कल्याण इसी में है कि हमारे अंदरकरुणा होदय हो, सत्य हो, बस इसी में हम सबका कल्याण है।

    Edited by admin


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