आप विदेश जायें लेकिन वहाँ अपने देश की चीजें देखकर आयें, विदेश की चीजें न लायें क्योंकि भारत में किसी बात की कमी नहीं है, भारत के पास सब कुछ है। आज हम भारतीय विदेशी वस्तुओं को अपना कर अपने देश का बहुमान कम कर रहे हैं हमको अपने देश पर बहुमान होना चाहिए। लेकिन हमको तो आज विदेशी वस्तुएँ ही पसन्द आती हैं स्व-देशी नहीं। 'मेड इन इंडिया' हमको पसंद नहीं। हम तो 'मेड इन जापान' पसन्द करते हैं भले वह भारतीय चीज ही क्यों न हो लेकिन उसमें यदि लेबल जापान का लगा हो तो हम उसको पसन्द कर लेते हैं। आज हम बाहरी लेबल में अपने आपको भूल रहे हैं। भारत की प्रतिष्ठा, भारत की गरिमा को याद करो, भारत की
संस्कृति बड़ी उज्ज्वल संस्कृति है।
जो साहित्य आपके मन को दूषित करे, गन्दा करे, विकृत करे ऐसा प्रदूषित साहित्य यदि आपको मुफ्त में भी मिलता हो तो उसको मत लीजिए, क्योंकि साहित्य का मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है, अश्लील और कामुक साहित्य से विचार गन्दे हो जाते हैं, भावनाएँ खराब हो जाती हैं और हम नैतिकता से बहुत नीचे गिर जाते हैं, अपने कर्तव्य भूल जाते हैं लज्जा और मर्यादा खो जाती है अत: हमको ऐसे अश्लील, खोटे दूषित साहित्य नहीं पढ़ना चाहिए। साहित्य तो वही कहलाता है जिसके द्वारा हमारा हित होता हो, जो साहित्य हमको अहित की ओर ले जाये, कुपथ में ले जाये ऐसे असत् साहित्य से हमको बचना चाहिए और अच्छे साहित्य का अध्ययन करना चाहिए। मूल्यवान किताब नहीं मूल्यवान तो समय है, यह हमारी कमजोरी है कि हम किताबों के मूल्य में ही बह जाते हैं और जिस किताब की कीमत जितनी अधिक होती है उसको हम उतनी ही अधिक मूल्यवान समझते हैं। हमने समय से अधिक किताबों को समझ रखा है। क्या कभी आपने सोचा कि समय का कोई मूल्य नहीं होता वह तो अमूल्य होता है। लेकिन हम पाँच सौ रुपये की किताब को एक वर्ष में पढ़ते हैं और एक वर्ष के लम्बे समय को पाँच सौ रुपये में ही बड़ा समझते हैं। आप किताबों को अलमारी में रखते हैं फिर आप अपने आपकी सुरक्षा नहीं कर पाते। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने समय को सुरक्षित रखें, समय की कीमत करें, समय का सदुपयोग करें, समय का आदर करें, यदि आप समय की कीमत समझ लोगे तो निश्चित ही आपका जीवन महान् बन सकता है, आदर्श बन सकता है। बस! आप अपनी आत्मा को समझते हुए अपने और पराये दोनों के कल्याण में लगें।
वाणी की शुद्धि अलग है और मुँह की शुद्धि अलग है। वाणी की शुद्धि व्याकरण से होती है जबकि मुँह की शुद्धि नीम की दातौन आदि से हो जाती है जीवन में दोनों शुद्धियाँ अनिवार्य हैं, वचन शुद्धि और मुखशुद्धि। हम अपने शरीर की शुद्धि जल से कर लेते हैं लेकिन हम अपने चित्त को, मन को, पानी से साफ नहीं कर सकते। मन की शुद्धि के लिए योग की आवश्यकता है। योग के बिना हमारा चित्त शुद्ध नहीं हो सकता। आज का आदमी अपने शरीर की शुद्धि तो कर रहा है लेकिन मन की शुद्धि का काम नहीं कर रहा है। पानी की सफाई कोई सफाई नहीं है, वह तो आत्मा की सफाई नहीं है वह तो शरीर की सफाई है शरीर की सफाई आत्मा की सफाई नहीं है। आत्मा की सफाई रत्नत्रय से होती है जिसके जीवन में रत्नत्रय है उसकी आत्मा पवित्र है लेकिन जिसके पास रत्नत्रय नहीं वह पवित्र नहीं। जैन दर्शन कहता है कि 'मैं' को भूल जाओ और 'मैं' को याद भी रखो। दूसरों के सामने 'मैं' अर्थात् अहं को भूल जाओ और अपने लिए 'मैं' को याद रखो। अहं को भूलो और आत्मा को याद रखी। आज का विज्ञान पर का शोध करना सिखलाता है जबकि भेद-विज्ञान सरल ज्ञान ‘स्व' की खोज करना सिखलाता है। 'स्व' की खोज ही आत्मा की शोध है। जो व्यक्ति स्वयं मलिन है वह दुनियाँ को निर्मलता का बोध नहीं दे सकता। जिसका मन अशुद्ध है वह शांति का अनुभव नहीं कर सकता। मन को सबसे पहले शुद्ध करो, आपके वस्त्र शुद्ध हैं, आपका शरीर शुद्ध है लेकिन वस्त्रों की शुद्धि मात्र से मन की शुद्धि होने वाली नहीं है। यदि हम शान्ति को चाहते हैं तो हमको अपने मन को शुद्ध करना चाहिए।
नीति का अर्थ समझो नीति का अर्थ क्या है? ‘नी' का अर्थ निश्चय और 'इति' का अर्थ विश्राम करना। अर्थात् अपनी आत्मा में विश्राम करना ही नीति का सही अर्थ है। हमने नीति की परिभाषा को क्या बना दिया है। आज हमारी नीति की परिभाषा कितनी बदनाम है, जरा सोचो इस नीति की परिभाषा को बदली। आत्मा की नीति ही सही नीति है। आज का जमाना इस नीति की परिभाषा को भूल गया है, इसीलिए तो युग भटक रहा है। आज हमको आवश्यकता इस बात की है कि हम भारतीय नीति की सात्विक परिभाषा को समझकर अपने देश को, अपने मन को शुद्ध करें। आत्म नीति ही आत्म शांति का कारण है राजनीति नहीं।
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