जो ज्ञान, पूजा, कुल, जाति और बल को लेकर मद करता है, वह सम्यक दर्शन को दूषित व नेश्तनाबूद करता है। अब आचार्य ऋद्धि के बारे में कहते हैं। सुकृत का फल ऋद्धियाँ है। एक ऐसी शक्ति विद्यमान हो जाती है, जिससे अच्छे व बुरे कार्य कर सकते हैं। आज तक हमने ऋद्धियों का दुरुपयोग ही किया। ऋद्धि प्राप्त करके उसका उपयोग सांसारिक कार्यों में जो करता है, वह मोक्ष की ओर नहीं बढ़ पाता। कलंकित हो जाता है, वास्तविक मार्ग को छोड़कर बाहर की ओर दृष्टि कर देता है।
आचार्यों ने ऋद्धियों को दूर रखा है। वे ऋद्धियाँ उत्पन्न होने के बाद भी लक्ष्य दूसरी ओर रखते हैं। क्षणिक ऋद्धियों को प्राप्त करने की चेष्टा नहीं करते। ऋद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं तथा जो ऋद्धियाँ प्राप्त करने की चेष्टा करता है, दोनों में फरक है। प्राप्त करने की चेष्टा में लक्ष्य दूसरा होता है। और अपने आप प्राप्त हो जायें तो लक्ष्य उस ओर नहीं रखते, विचार नहीं लाते। आज संसारी प्राणी ऋद्धियों को जीवन का लक्ष्य बना रहे हैं। ऋद्धियों से संसार पर प्रभाव पड़ सकता है, शक्ति प्रकट हो सकती है, नाम, कीर्ति गुणगान हो सकता है। इसमें पड़कर जीवन को भी समर्पित कर दिया जाता है।
आज तक हमने उपासना बहुत की और नव ग्रैवेयक तक भी गये पर अविनश्वर सुख की प्राप्ति नहीं हुई। जब ऋद्धियों को भूल जाएँगे तब यह सुख प्राप्त होगा। श्रुत की आराधना करने पर दसवें अंग तक पहुँचने पर लगभग ७०० विद्यायें एक साथ सेवा में खड़ी हो जाती है। आज हम शक्ति का, ज्ञान का दुरुपयोग करते हैं तो फल भी उल्टा ही मिलता है। शक्तियाँ भी भिन्न प्रकार की होती हैं। वृद्धावस्था में इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती, पर विचार की-अनुभव की शक्ति चरम सीमा पर होती है, गम्भीरता भी ज्यादा होती है। यह लौकिक क्षेत्र की बात है, धार्मिक क्षेत्र की नहीं। अत: शक्ति का सदुपयोग हो दुरुपयोग नहीं। जब बाहर में रस आने लगता है, लौकिक की ओर देखता है तो आध्यात्मिक दृष्टि खत्म हो जाती है। ध्यान चरम सीमा पर होता है तो श्रुत की प्राप्ति तथा बाद में केवल ज्ञान की भी प्राप्ति हो जाती है। किसान घास फूस को लक्ष्य कर खेती नहीं करता, धान को लक्ष्य कर खेती करता है। धान के साथ उसे घास भी मिल जाता है। धान के द्वारा खुद का और घास के द्वारा जानवर का पेट भरता है।
ऋद्धियों को सांसारिक कार्यों में उपयोग करने से आत्मिक विकास रुक जाता है। जब ऋद्धियों की अपेक्षा, उसके फल की आकांक्षा न रखकर आगे बढ़ेंगे तो प्रभावना वीतरागता से होगी, उतनी असंख्यात ऋद्धियों से भी नहीं होगी। सम्यक दृष्टि भी प्रभावना अंग का धारक तब कहलाता है, जब मनोवेग (मनोरथ) को रोक कर ज्ञान रथ पर आरूढ़ हो जाता है। प्रवृत्ति बिल्कुल रुक जाये,ओझल हो जाये। शारीरिक, मानसिक और वाचनिक चेष्टा जब रुक जाती है, तब ही वास्तविक प्रभावना है। ख्याति लाभ पूजा तथा सांसारिक बातों को रोक कर तथा ऋद्धियों को गौण कर ध्यान में आगे बढ़ाना है। अगर ज्ञान रूपी रथ पर आगे बढ़ना असाध्य हो जाये तो ज्ञान दर्शन की शक्ति को, ऋद्धियों को धर्म की प्रभावना में लगाया जाये। बड़ी हानि से बचने के लिए छोटी हानि को मंजूर करते हैं। ज्यादा (पूर्ण) बन्ध का प्रसंग आ जाये तो छोटा, थोड़ा बंध हो जाये तो कोई बात नहीं, पर वापस उसी स्थिति को प्राप्त करने का लक्ष्य होना चाहिए। ऋद्धि का प्रयोग करना जो जाने, उसे बता देना तो ठीक भी है, वरना बन्दर के हाथ में हुकूमत देना जैसा होगा। ऋद्धियाँ भी सीमा में रहती हैं।
सम्यक दृष्टि के लिए सीधा काम करती हैं लेकिन उनका दुरुपयोग करने पर उल्टा फल भी देती हैं, दुखदायी हो जाती है। आज अगर निष्कषायी, निष्क्रोधी नहीं बन सकते तो अनन्तानुबन्धी का अभाव तो कर सकते हैं। सद् ऋद्धि दूसरे के कल्याण के लिए पर असद् ऋद्धि दूसरे व अपना भी नाश कर देती है। जो व्यक्ति कषायी, अज्ञानी है, वह ऋद्धियाँ पाकर भी दूसरों का अकल्याण ही करेगा। आज तक हमने कुऋद्धियाँ पाकर दुरुपयोग कर स्थावर तन ही धरा। सम्यक दर्शन के, विवेक के अभाव में विषयों की लालसा में ऋद्धियाँ तो प्राप्त की पर फल उल्टा ही मिला।
विवेक व सम्यक दर्शन के साथ ही सुख शांति मिलती है। जो ऋद्धियों पर मद करेगा, दूसरों को आकर्षित करना चाहेगा तो सम्यक दर्शन में दोष लगाएगा तथा चरम सीमा पर मद करेगा तो सम्यक दर्शन से च्युत हो जायेगा। बात-बात पर कषाय करना आत्मा को कष्ट पहुँचाना है, उसे विदीर्ण करना है। स्वर्गों में स्वर्गीय सम्पदा भोगते हुए गुलाम बना रहना पड़ता है, उसमें माफी छुट्टी नहीं है। जो सम्यक दर्शन से दूर है, उसे ऐसा मानसिक दुख होता है।
वास्तविक ऋद्धि तो वीतराग है, जिससे केवल ज्ञान प्राप्त हो सकता है, वह अनन्त है, अविनश्वर है। वीतराग की ऋद्धि को लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ेंगे तो अनादि का दुख छूट जाएगा और अविनश्वर सुख की प्राप्ति होगी। सांसारिक ऋद्धियों के लिए अनन्त समय बीत गया और केवलज्ञान की ऋद्धि के लिए अन्तर्मुहूर्त चाहिए। सम्यक दर्शन, ज्ञान, वीतरागता ही ऋद्धि है बाकी सब विषयों की वृद्धि हैं, उनसे केवलज्ञान नहीं होगा। अत: ऋद्धियों पर मद नहीं करना चाहिए। केवलज्ञान प्राप्त करने के साधनों को अपनावें और शक्ति का सदुपयोग करें।