बंधन कोई भी हो वह आकुलता कराता है। जीव को कोई भी बंधन रुचता नहीं। आने जाने रहने उठने-बैठने आदि सभी बंधन आकुलता देते हैं। पर वस्तुत: क्षेत्र का या शरीर का बंधन मात्र हो जाना बंधन नहीं, वह तो भीतरी भावों से होता है। संसार के बंधनों में पड़े जीव को मुक्ति प्राप्ति के योग्य वाणी देने वाली महान् आत्मा, इस युग के अंतिम तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी को आज बंधन से मुक्ति स्वरूप मोक्ष सुख निर्वाण प्राप्त हुआ था। इस तिथि के माध्यम से हम सभी प्रेरणा प्राप्त करें और संसार में रहते हुए भी विषय भोगों के प्रति विमुखता लाकर इस जीवन को मुक्ति के लिए एक साधन बना लें यही इसकी सार्थकता है।
आज चारों ओर अंधकार ही अंधकार छाया है उजाले का ठिकाना नहीं। सूर्य-चन्द्रमा के कारण दिन एवं रात का विभाजन होता, किन्तु मोह के कारण दिन में भी रात होती है। मोह का अभाव हो जाने पर रात्रि में भी अंधकार सा नहीं अपितु दिन जैसा प्रकाश प्रतिभासित होता है। विषयों के प्रति लगाव को समीचीन ज्ञान के साथ ही शांत किया जा सकता है। यह सावधानी रखना आवश्यक है कि आज जो संयोग संबंध है कल उसका नियम से वियोग होगा। इस तिथि से हम शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। जिसे हम प्रभु का निर्वाण - दिवस कहते हैं, वास्तव में उनका आज जन्म हुआ है।
अविद्याभिदुरं ज्योतिः परं ज्ञानमयं महत्।
तद्प्रष्टव्यं तदेष्टव्यं तद्द्रव्यं मुमुक्षुभिः॥
(इष्टोपदेश-४९)
अर्थ-अज्ञान अन्धकार को नष्ट करने वाले उत्कृष्ट ज्ञान के मोक्षाभिलाषी प्राणी उसे पाकर एवं चर्चा कर एक दिन आत्म सात हो जाते हैं।
महावीर जयंती को तो शरीर धारी बालक का जन्म हुआ था किन्तु आज उनका युवावस्था में ऐसा जन्म हुआ जो आगामी अनन्त काल तक व्यय नहीं होगा। अथवा भविष्य के जन्मों का आज ऐसा व्यय हुआ जिनका पुन: अब उत्पाद नहीं होगा। उनके कारण हम सभी को जो ज्ञान की किरण मिली वह दुर्लभ है। अब उसका सदुपयोग कर उन जैसे अनर्घपद का हम संवेदन करें यही प्रयास करना है। आचार्य श्री कहते हैं कि-केवलज्ञान और मुक्ति में उतना ही अंतर है जितना १५ अगस्त और २६ जनवरी में। केवलज्ञान का होना स्वतंत्रता दिवस और मुक्ति का होना गणतंत्र दिवस है।
सभी ने अनंत बार पूर्व में शरीर को धारण किया है। जन्म लेने के बाद युवा-प्रौढ़ एवं वृद्धावस्था आ जाने पर हमें क्या करना चाहिए, यह नहीं सोच पाते। आयु समाप्ति के उपरांत आगे क्या होगा। यह समस्या सबके सामने है, पर इसका समाधान पाने का प्रयास नहीं करते। तीन लोक को हित की दिव्यध्वनि प्रदान करने वाले तीर्थकर प्रभु इस पर घर को छोड़कर आज अपने घर को चले गये। हम लोगों को अपने निज घर प्राप्ति की चिंता ही नहीं है। इस भौतिक नश्वर मकान या शरीर को ही अपना घर मान लिया है, यही अज्ञान है। सर्वकर्म विप्रमोक्षो मोक्ष: अर्थात् समस्त कर्मों की समाप्ति का नाम ही मोक्ष है।
इस अवसर्पिणी में इस भूपर, वृषभ-नाथ अवतार लिया,
भर्ता बन युग का पालन कर, धर्म-तीर्थ का भार लिया।
अन्त-अन्त में अष्टापद पर, तप का उपसंहार किया,
पाप-मुक्त हो मुक्ति सम्पदा, प्राप्त किया उपहार जिया।
(नंदीश्वर भक्ति हिन्दी-२९)
आगे दो तोतों का उदाहरण देते हुए कहा कि एक तोता पिंजड़े में बंद परतंत्रता का अनुभव करता हुआ उसे ही अपना आवास समझ बैठा है। किन्तु दूसरा तोता पिंजड़े के ऊपर बाहर बैठा हुआ मुक्ति स्वतंत्रता का संवेदन कर रहा है। इस तोते को देख भीतरी तोते को वास्तविकता का बोध प्राप्त होता और वह शीघ्र ही पिंजड़े से मुक्त होने की कामना एवं प्रयास करता है। ऐसे ही प्रभु के मुक्ति गमन से हम सभी अपने कल्याण के लिए प्रयास करें, यही दिशा बोध एक न एक दिन अवश्य ही हमें संसार के बंधन रूपी पिजड़े से मुक्ति दिलायेगा।
इस मोह रूपी ग्रहण को एक बार समाप्त करने पर ही दिव्य ज्ञान रूप केवलज्ञान की प्राप्ति होगी। ज्ञानी जीव को दुख/कष्ट का अनुभव होते हुए भी भविष्य में सुख की प्राप्ति अवश्य होगी ऐसा दृढ़ विश्वास हैं और इसी पथ पर आगे बढ़ते हुए एक दिन प्रभु के लिये परम निर्वाण की प्राप्ति हुई थी।
"महावीर भगवान् की जय!"
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